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लाइब्रेरी : नये जमाने ने बदल दिये इसके भी मायने

किताब कॉपी से है दूर इंटरनेट का केवल प्रयोग

किताब कॉपी से है दूर इंटरनेट का केवल प्रयोग विष्णु स्वरूप, सहरसा लाइब्रेरी का नाम जेहन में आते ही सबसे पहले किताबों का बड़ा सा भंडार, छात्र-छात्राओं की भीड़ और किताबों पर नजर गड़ाये व भविष्य की तैयारी करते बच्चों की एक तस्वीर उभर आती है. वर्तमान समय में लाइब्रेरी का पूरा कॉन्सेप्ट बदल चुका है. पुरानी लाइब्रेरी को छोड़कर इन नये लाइब्रेरियों में अब किताबें नहीं दिखती. बस बंद कमरे में एसी और तेज इंटरनेट ही बच्चों की जरूरत को पूरा करते दिखाई देती है. स्थानीय गुरुकुल लाइब्रेरी चलाने वाले करण कहते हैं कि यहां आठवीं कक्षा से बीपीएससी और यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्र तक आते हैं. लाइब्रेरी बना व्यवसाय शहर के अमूमन सभी मोहल्ले में लाइब्रेरी खुल चुकी है. अनुमान किया जाता है कि इसकी संख्या शहर के विभिन्न भागों में 35 से 45 के आसपास है. महज 15 गुणा 15 फीट के कमरे में लोगों ने लाइब्रेरी खोल रखी है. तेज इंटरनेट और चिल्ड एसी के अतिरिक्त किताबों की यहां कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. कुछ लाइब्रेरी में दर्जन भर किताबें भी रखी रहती है तो कहीं-कहीं एक दो मैगजीन और एक दो पेपर ही उपलब्ध हैं. सही मायने में इसे लाइब्रेरी के बजाय स्टडी कैफे कहना ही बेहतर होगा. कई जगहों पर बदबूदार बाथरूम के बगल से गुजर कर बच्चे स्टडी कक्ष तक पहुंचते हैं. पीने के पानी की व्यवस्था तो है, लेकिन चाय कॉफी जैसी कोई सुविधा नहीं है. अग्निशमन यंत्र या फर्स्ट एड की भी कोई व्यवस्था कहीं नजर नहीं आती है. लाइब्रेरी नहीं कैफे घर से दूर बच्चा जाकर लाइब्रेरी में पढ़ाई कर सकता है. इसके लिए 4 घंटे की कीमत 300 रुपया मासिक देनी पड़ती है. लाॅज में रहने वाले छात्रों के लिए यह बेशक एक अच्छी व्यवस्था है. इन लाइब्रेरियों में गर्मी के दिनों में काफी भीड़ रहती है. व्यवस्थापक कहते हैं कि यह चार से सात महीने हाउसफुल जाता है. फिर बच्चों की संख्या धीरे-धीरे कम हो जाती है. वह कहते हैं कि कई तरह के छात्र यहां आते हैं. कुछ छात्र यहां वातानुकूलित व्यवस्था में चार घंटे की अच्छी नींद लेते हैं,तो कुछ छात्र-छात्राएं तेज इंटरनेट होने के कारण फिल्म डाउनलोड करते हैं और रिल्स देखते हैं. अच्छे और मेधावी छात्र शिक्षकों के लेक्चर और ज्ञानवर्धक वीडियो भी देख कर उसका संग्रह करते हैं. इन लाइब्रेरियों का काम काज बेशक एक स्टडी कैफे की तरह ही है, जहां किताबों से दूर ले जाती दुनिया में इंटरनेट का व्यापक प्रयोग दिखाई देता है. किताबें व कॉपी दोनों से ही छात्र दूर हो रहे हैं. शिक्षाविद कहते हैं कि यह भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. कुछ छात्रों के लिए लाइब्रेरी महज चार घंटे का टाइम पास है. कुछ छात्र ऐसे भी हैं जो इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं. यह व्यवसाय का एक केंद्र बना हुआ है जहां लोग महीने पर कमरे देने के बजाय घंटो पर कमरे का स्पेस छात्रों को मुहैया करा रहे हैं, और इसे एक अच्छी आमदनी का जरिया बना लिया है. फोटो – सहरसा 07 – लाइब्रेरी फोटो – सहरसा 08 – लाइब्रेरी में अंदर का दृश्य फोटो – सहरसा 09 – घर के अंदर बना लाइब्रेरी

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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