जमशेदपुर. सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां/ जिंदगानी गर मिली तो नौजवानी फिर कहां. इस वाक्य से सैर सपाटा के महत्व को समझा जा सकता है. एक तो इसके जरिये सीखने को बहुत कुछ मिलता है. दूसरा, लंबे समय तक काम करने और एनर्जेटिक बने रहने के लिए सैर सपाटा बहुत जरूरी है. 19 जून को दुनियाभर में सैर सपाटा दिवस मनाया जाता है. यह दिन याद दिलाता है कि हमेशा काम को लेकर भाग-दौड़ करने की बजाय थोड़ा सैर कर जीवन का आनंद भी लें. यह दिवस यह भी कहता है कि प्रकृति को देखने के लिए भी समय निकालें. अपने शहर में कई लोग इस दिवस के महत्व को जानते हैं. तभी तो वे सैर सपाटे के शौकीन हैं और हर साल अपने परिवार और दोस्तों के साथ वे कहीं-न-कहीं टूर पर निकल पड़ते हैं.
बजट का एक हिस्सा टूर पर खर्च
सैर सपाटे को लेकर हाल के वर्षों में शहरवासियों में जागरूकता आयी है. मानगो निवासी चित्रकार अमृता सेन हाल ही में दार्जिलिंग घूमकर लौटी हैं. उन्हें पहाड़ की वादियां देखना अच्छा लगता है. वह हर साल बाहर घूमने की प्लानिंग करती हैं. गर्मी और सर्दी की छुट्टियों में वह निकलती हैं. वह बताती हैं कि इस दौरान बच्चों की छुट्टी रहती है. इसलिए ढंग से प्लानिंग और घूमना हो जाता है. उनके पति विश्वजीत सेन प्राइवेट जॉब में हैं. वे भी साथ होते हैं. अगर वे काम में व्यस्त रहे तो अमृता अपनी बिटिया मैत्री के साथ ही किसी अच्छी जगह पर निकल जाती हैं. वह बताती हैं कि घूमने-फिरने से एनर्जी मिलती है. नये-नये आइडिया आते हैं, जिसे वह कैनवास पर उतारती भी हैं. सालभर के बजट का एक हिस्सा सैर-सपाटा में भी जाता है.
पहले से बन जाती है प्लानिंग
घूमने-फिरने की प्लानिंग पहले से बन जाती है. डिमना निवासी राघव मिश्रा को प्राय: दोस्तों के साथ घूमना अच्छा लगता है. वे दोस्तों के ह्वाट्सएप ग्रुप पर टूर की प्लान साझा करते हैं. इसके साथ लोग जुड़ते जाते हैं. दस-पंद्रह दोस्त इकट्ठा हो गये तो सामूहिक रेल टिकट लिया जाता है. इसके बाद जहां जाना है, वहां अच्छे और सस्ते होटल बुकिंग की प्लानिंग बनती है. सब कुछ पहले से तैयार रहने पर घूमने में आनंद मिलता है. वे धार्मिक टूर के बीच भी प्रकृति का आनंद उठा लेते हैं. पिछले वर्ष केदारनाथ-बदरीनाथ दर्शन के दौरान वे लोग घूमने चोपता निकल गये. वे बताते हैं कि चोपता को स्वीटजरलैंड ऑफ इंडिया कहा जाता है. वहां के पहाड़ और वादियों को देखकर लगातार काम में व्यस्त रहने की थकान मिट जाती है.
पहाड़ी इलाकों में बसती है प्रकृति
अपने शहर में कई लोगों को घूमने का शौक इस कदर चढ़ा है कि वे साल में पांच-छह बार कहीं-न-कहीं घूमने निकल जाते हैं. मणिफीट निवासी धर्मेंद्र शर्मा टाटा मोटर्स में कार्यरत हैं. उन्हें अपने मित्रों के साथ घूमना अच्छा लगता है. उन लोगों की साल में पांच-छह ट्रिप लग ही जाती है. भूटान, नेपाल और अपने देश में पहाड़ी इलाके में घूमना उन्हें पसंद है. धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण साल में दो-तीन बार तो तारापीठ कोलकाता ही चले जाते हैं. वे बताते हैं कि पहाड़ी इलाकों में तो माने प्रकृति बसती है. यहां घूमना काफी अच्छा लगता है. लगातार एक जगह काम करते-करते बोरियत हो जाती है. इसे तोड़ने के लिए घूमना बहुत जरूरी है. वे लोग हर बार नया साल कहीं-न-कहीं बाहर ही मनाते हैं. इससे एनर्जी मिलती है. काम करने में मन लगता है. उनकी टीम में कुलवंत सिंह, राजेश सिंह, बिशन सिंह आदि हैं.टूर से हमें मिलती हैं नयी-नयी जानकारियां
गर्मी की छुट्टी में प्राय: लोग पहाड़ों पर घूमना पसंद करते हैं. टेल्को निवासी तनुश्री दास को पहाड़ों पर घूमना अच्छा लगता है. वे अपने परिवार के साथ हिमाचल प्रदेश में मनाली, कुल्लू कई बार जा चुकी हैं. सर्दियों में मनाली में गिरते बर्फ का मजा ले चुकी हैं. उत्तराखंड में देहरादून, नैनीताल, रानीखेत जैसी जगह को भी देख चुकी हैं. वह बताती हैं. पहाड़ों में नॉर्थईस्ट बच गया है. जहां अगले साल जाने की प्लानिंग अभी से बन रही है. वहां कामाख्या देवी के दर्शन के बाद शिलांग, चेरापूंजी व अन्य इलाके को देखना चाहती हैं. वह बताती हैं कि चित्रकार, रचनाकार और क्रिएटिव व्यक्ति को घूमने से बहुत कुछ हासिल हो जाता है. उनका मनाना है कि बच्चों को भी घुमाना चाहिए. वह हर टूर में अपनी बिटिया आहोना को जरूर ले जाती हैं.स्वस्थ दिल व मस्तिष्क के लिए सैर जरूरी
सीनियर फिजिशियन डॉ आरएल अग्रवाल का कहना है कि स्वास्थ्य के लिए सैर सपाटा अच्छा माना गया है. एक जगह रहते-रहते बोरियत हो जाती है. नयी जगह जाने पर फ्रेशनेस हो जाता है. नये लोगों से मिलना-जुलना होता है. वहां के रहन-सहन, खान-पान की जानकारी मिलती है. स्वस्थ दिल और मस्तिष्क के लिए भी सैर करना जरूरी है. सैर के दौरान चलने-फिरने से शरीर का एक्सरसाइज भी हो जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है