25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

व्यापक विकास हो सरकार की प्राथमिकता

इन क्षेत्रों में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है. पूंजी क्षमता में तो भारत की सकारात्मक तुलना अधिकतर देशों से हो सकती है, पर श्रम उत्पादकता में हम बहुत पीछे हैं.

लोकसभा चुनाव के नतीजे अचरज भरे रहे हैं. आर्थिक मुश्किलों, रोजगार के मौकों की कमी और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आंच के साथ-साथ संविधान में संशोधन करने के आख्यान आदि का खासा असर नतीजों पर दिखता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में. भारतीय मतदाता आर्थिक बेहतरी के साथ लोकतंत्र की भी चिंता करता है. यह सकारात्मक स्थिति है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नयी सरकार, जो अब गठबंधन की सरकार है, ने कार्यभार संभाल लिया है. अब सबकी नजरें उसके एजेंडे पर है. मुझे अंडमान एवं निकोबार द्वीप पर स्थित राष्ट्रीय स्मारक सेलुलर जेल की तीर्थयात्रा की याद आती है. यहां ब्रिटिश शासन ने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर अमानवीय अत्याचार किया था. यहां एक जगह मृत्युदंड की सजा का इंतजार कर रहे एक सेनानी द्वारा अपने ग्रामवासियों को लिखा संदेश है- ‘मैंने अपना फर्ज अदा कर दिया है, अब तुम्हारी बारी है.’ हमारा कर्तव्य है कि हम मिलकर भारत को आर्थिक अभाव एवं कठिनाई से मुक्त करायें तथा समृद्धि के युग की ओर अग्रसर हों.

मोदी सरकार को भारत को एक विकसित समाज बनाने और सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार से लड़ने के महत्वपूर्ण संदेश को अनदेखा नहीं करना चाहिए. स्वतंत्रता सेनानियों का संदेश तभी सही साबित होगा, जब भारत का विकास एकदम नीचे, सबसे कमजोर और गरीब तक पहुंचेगा. यह तभी संभव हो पायेगा, जब अगले दो दशकों तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की औसत सालाना वृद्धि दर सात फीसदी से अधिक रहे. ऐसा कर पाना एक कठिन कार्य है. पारंपरिक साहित्य में जीडीपी वृद्धि मुख्य रूप से उत्पादन के तीन कारकों- भूमि, श्रम एवं पूंजी- की उपलब्धता एवं उत्पादकता से प्रभावित होती है. वर्तमान भू-राजनीतिक और वैश्विक परिदृश्य में हमें इन कारकों को सोच-समझकर और मेहनत से उपयोग में लाना होगा. इसके लिए इन क्षेत्रों में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है.

पूंजी क्षमता में तो भारत की सकारात्मक तुलना अधिकतर देशों से हो सकती है, पर श्रम उत्पादकता में हम बहुत पीछे हैं. वर्ष 2022 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2017 की क्रय शक्ति समता के आधार पर श्रम क्षमता के मामले में भारत को 126 स्थान पर रखा था. भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 के प्रावधानों के अनुसार, निजी कंपनियों तथा सरकारी-निजी भागीदारी के लिए जमीन अधिग्रहण की मंजूरी के लिए समुदाय के 80 प्रतिशत लोगों की सहमति जरूरी है. समुचित मुआवजे के अधिकार के साथ-साथ जमीन की खरीद बहुत कठिन और खर्चीली हो गयी है. ऐसे में इंफ्रास्ट्रक्चर और उद्योग के विकास के लिए जमीन की उपलब्धता एक गंभीर बाधा बन गयी है. भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया अक्सर नकारात्मक होती है. हमें अधिग्रहण के अधिक मानवीय तरीकों को अपनाना चाहिए, जिसमें लोगों के हित सुरक्षित रहें.

जीडीपी वृद्धि मुख्य रूप से उत्पादन के तीन कारकों- भूमि, श्रम एवं पूंजी- की उपलब्धता एवं उत्पादकता से प्रभावित होती है. वर्तमान भू-राजनीतिक और वैश्विक परिदृश्य में हमें इन कारकों को सोच-समझकर और मेहनत से उपयोग में लाना होगा. इसके लिए इन क्षेत्रों में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है. पूंजी क्षमता में तो भारत की सकारात्मक तुलना अधिकतर देशों से हो सकती है, पर श्रम उत्पादकता में हम बहुत पीछे हैं.

वृद्धि दर बढ़ाने में कमतर कृषि क्षमता भी एक अवरोध है. यदि मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन जैसे क्षेत्रों की तरह कृषि क्षेत्र ने भी योगदान दिया होता, तो वित्त वर्ष 2023-24 की वृद्धि दर 10 प्रतिशत से अधिक होती. ग्रामीण आबादी कृषि आय पर निर्भर है, जिसके कारण अधिक वृद्धि दर के आर्थिक लाभों से वह वंचित रह जाती है. भूमि, श्रम एवं खेती भावनात्मक मुद्दे हैं. ऐसे मुद्दों पर भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक सहमति बनाना एक लंबा संघर्ष है, जिसके लिए गंभीर धैर्य तथा विभिन्न हितों एवं विचारों को समायोजित करने की आवश्यकता होती है.

नागालैंड में जब मुख्यमंत्री के पूर्ण समर्थन से तत्कालीन मुख्य सचिव आरएस पांडे ने स्वास्थ्य, शिक्षा एवं ऊर्जा के ‘सामुदायिककरण’ को लागू किया था, तब उन्होंने समुदायों के नेताओं, राजनीतिक दलों, मीडिया और अधिकारियों को साथ लाने के लिए सात चरणों की कठिन प्रक्रिया अपनायी थी. संयुक्त राष्ट्र ने भी उस पहल की प्रशंसा की थी. वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने के लिए कठिन प्रक्रिया से राष्ट्रीय सहमति बनाने का प्रयास किया था, जो पहले की कुछ सरकारें नहीं कर सकी थीं. फिर भी इस मुद्दे पर टकराव था और अभी भी है.

वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ बनाने का राष्ट्रीय संकल्प आर्थिक मुक्ति के एक ‘महायज्ञ’ जैसा होना चाहिए. स्वतंत्रता सेनानियों के संदेश तथा मतदाताओं की भलाई से सभी राजनीतिक रंगों के नेताओं को प्रेरित होना चाहिए तथा संकीर्ण हितों को छोड़कर सहमति के लिए प्रयासरत होना चाहिए. कारोबारी सहूलियत के मामले में असली कांटा संविदा को लागू कराना है. इसमें औसतन 1,445 दिन लगता है और दावे के मूल्य में 31.3 प्रतिशत अधिक की वृद्धि हो जाती है. लोग न्यायिक अक्षमता से थक जाते हैं. न्यायपालिका में बड़े सुधारों की दरकार है. देरी से तंत्र के प्रति भरोसा भी घटता है. यहां भी संबंधित पक्षों में सहमति बनानी होगी. आर्थिक विषमता बढ़ने को लेकर भी चिंता बढ़ी है.

हमारे देश में धनी और गरीब के बीच विषमता है, तो राज्यों के बीच भी ऐसा है. थॉमस पिकेटी और अन्य अर्थशास्त्रियों की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वतंत्रता से अस्सी के दशक के शुरू तक विषमता में कमी आयी थी, परंतु 2000 से इसमें तेज बढ़ोतरी हुई है. इससे इंगित होता है कि उच्च जीडीपी से गरीबों का भला नहीं हुआ है. आर्थिक असमानता ‘समान अवसर’ की कमी से उत्पन्न होती है, जिसकी गारंटी संविधान की प्रस्तावना में अभिव्यक्त है. नीतियों को समुचित ढंग से लागू करने का उत्तरदायित्व प्रशासन का है, पर उसकी न्यूनतम क्षमता से लोग, विशेषकर वंचित, क्षुब्ध हो जाते हैं. प्रशासनिक व्यवस्था में भी व्यापक बदलाव होना चाहिए.

राज्यों के प्रति व्यक्ति घरेलू उत्पादन में भी विषमता है. साल 2022-23 में नॉमिनल मूल्यों पर गोवा का प्रति व्यक्ति घरेलू उत्पादन 5,32,854 रुपये था, जबकि बिहार का मात्र 54,111 रुपये. उत्तर प्रदेश और ओडिशा में यह क्रमशः 83,664 और 1,45,202 रुपये रहा था. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी यह अंतर 90 हजार रुपये का है. असंतुलित आर्थिक विकास से उत्पन्न इस विषमता का उपचार होना चाहिए. अतिरिक्त संसाधनों का आवंटन, निवेशकों में भरोसा पैदा करना तथा बेहतर क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इन सुधारों के बिना ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य सपना ही रह जायेगा. लोग नयी सरकार की पहलों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. ध्यान रहे, लोगों की निराशा भीषण गर्मी में वोट देने की तकलीफ को अनियंत्रित रोष में बदल सकती है. आम नागरिकों की आर्थिक दशा में बेहतरी करना निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों का दायित्व है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें