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जिस बिलग्रामी साहब ने बनवाया था पीजी बॉटनी विभाग, आज उसके बॉटनिकल गार्डन से उनका नाम तक मिटा दिया

प्रो केस बिलग्रामी. तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय ही नहीं, देश के वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में यह नाम ही काफी है. इनकी उपलब्धि को टीएमबीयू भूलना भी चाहे, तो भूल नहीं सकता. इस विश्वविद्यालय के साइंस कैंपस में बिलग्रामी साहब का नाम यहां के हरेक पेड़-पौधे की जड़ों-पत्तों तक में घुला हुआ है. प्रो बिलग्रामी टीएमबीयू के पीजी बॉटनी विभाग के संस्थापक विभागाध्यक्ष और राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक थे.

संजीव झा, भागलपुर प्रो केस बिलग्रामी. तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय ही नहीं, देश के वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में यह नाम ही काफी है. इनकी उपलब्धि को टीएमबीयू भूलना भी चाहे, तो भूल नहीं सकता. इस विश्वविद्यालय के साइंस कैंपस में बिलग्रामी साहब का नाम यहां के हरेक पेड़-पौधे की जड़ों-पत्तों तक में घुला हुआ है. प्रो बिलग्रामी टीएमबीयू के पीजी बॉटनी विभाग के संस्थापक विभागाध्यक्ष और राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक थे. उन्हीं की देखरेख में इस विभाग का वर्ष 1970 में मकान बनना शुरू हुआ था. साथ में बॉटनिकल गार्डन बनना शुरू हुआ. उनके निधन के बाद बॉटनिकल गार्डन का नाम ”बिलग्रामी वनस्पति उद्यान” रखा गया. गार्डन के मुख्य द्वार पर एक खूबसूरत बोर्ड पर बिलग्रामी वनस्पति उद्यान लिखा गया. लेकिन हाल ही में यह बोर्ड बदल दिया गया और उस जगह पर नया बोर्ड लगा कर उसमें सिर्फ ”वनस्पति उद्यान” लिख दिया गया. बिलग्रामी नाम हटा दिया गया.

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वर्ष 1970 में स्थापित हुआ था गार्डन

बॉटनिकल गार्डन की स्थापना वर्ष 1970 में हुई थी. इस संदर्भ में विभाग के पूर्व शिक्षक व टीएमबीयू के पूर्व प्रतिकुलपति प्रो एके राय ने बताया कि वे वर्ष 2014 से 2020 तक टीएमबीयू के प्रतिकुलपति रहे. इसी कार्यकाल में बॉटनी के डिपार्टमेंटल काउंसिल की बैठक हुई थी. बिलग्रामी साहब के इस विभाग में अमूल्य योगदान को ध्यान में रखते हुए उनकी स्मृति में गार्डन, म्यूजियम व ऑडिटोरियम में बिलग्रामी नाम जोड़ने का निर्णय लिया गया था. वर्तमान में बॉटनिकल गार्डन से बिलग्रामी साहब का नाम हटाना कतई उचित निर्णय नहीं है. वर्तमान विभागाध्यक्ष को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए.

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इस वर्ष बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम गार्डन का निरीक्षण करने आयी थी. टीम के सदस्यों का कहना था कि यह गार्डन ”बॉटनिकल गार्डन ऑफ टीएमबीयू” के नाम से रजिस्टर्ड है. इस कारण इसका यही नाम रहेगा, तभी इसके विकास की राशि देने की अनुशंसा की जा सकती है. इसी मजबूरी के कारण न चाहते हुए भी बिलग्रामी साहब का नाम हटाना पड़ गया. लेकिन म्यूजियम और सभागार से नाम नहीं हटाया है. प्रो बिलग्रामी के योगदान को हमलोग समझते हैं. उनके साथ इस विभाग का भावनात्मक रिश्ता जुड़ा है.

–प्रो एचके चौरसिया, विभागाध्यक्ष, पीजी बॉटनी, टीएमबीयू

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