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इस्लाम में नमाज की क्रियाएं साधारण योग की तरह, 48 रकत में 17 फर्ज और हर रकत में 7 प्रक्रियाएं

नमाज से योग की तरह ही शरीर और मन तरोताजा होता है और खोई शक्ति वापस प्राप्त होती है. समाज नमाज के दौरान कयाम, रुकू, सजदा, जलसा- सलाम फेरना प्रक्रिया से सिर से पांव के अंगूठे का व्यायाम होता है.

जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : वर्तमान में योग की शिक्षा पूरी दुनिया में दी जा रही है. योगासन मानव के शरीर और मन को स्वस्थ एवं संतुलित बनाता है. आधुनिक युग में योग का बड़ा महत्व है, क्योंकि वर्तमान में लोग अत्यधिक व्यस्तता, तनाव, अव्यवस्थित जीवनचर्या और मन की व्यग्रता से ग्रसित हैं. योग मनुष्य को आंतरिक एवं बाह्य रूप से स्वस्थ, सुडौल और सुंदर बनाता है. मनुष्य के चौमुखी विकास के लिए योग एक अहम हिस्सा बन चुका है. कीताडीह मस्जिद के इमाम कारी इसहाक अंजूम बताते हैं कि इस्लाम में नमाज की क्रियाएं साधारण योग की तरह ही है. पांच अजानों में पढ़ी जाने वाली पांच वक्त की नमाज इस्लाम के पांच स्तंभों में एक है. पांच वक्त की नमाज का समय निर्धारण सूरज की गतिविधियों पर निर्भर है. सूरज निकलने से पहले फर्ज, सूरज सिर पर आ जाये तो जोहर, ढलना शुरू हुआ और प्रत्येक चीज का साया अपने जैसा हो तो असर, सूरज अस्त हो तो मगरिब और सूरज डूबने के बाद सुर्खियां सुर्खी गायब होने पर ईशा. इस तरह इस्लाम में सूरज के महत्व को समझा जा सकता है.

नमाज से बीमारी होती है दूर

नमाज से योग की तरह ही शरीर और मन तरोताजा होता है और खोई शक्ति वापस प्राप्त होती है. समाज नमाज के दौरान कयाम, रुकू, सजदा, जलसा- सलाम फेरना प्रक्रिया से सिर से पांव के अंगूठे का व्यायाम होता है. एक दिन में पांच बार पढ़ी जाने वाली नमाज में कुल 48 रकत (नमाज का पूरा चक्र) है, जिनमें से 17 फर्ज है और हर रकत में 7 प्रक्रियाएं (मुद्राएं) होती है. एक नमाजी 17 अनिवार्य रकत करता है, तो लगभग वह एक दिन में करीब 50 मिनट में 119 मुद्राएं करता है. जिंदगी में यदि कोई व्यक्ति पाबंदी के साथ नमाज अदा करता है, तो कई प्रकार की बीमारी से दूर रहेगा.

नमाज पढ़ने से मिलती है तनाव से मुक्ति व बढ़ती है एकाग्रता

कारी इसहाक अंजम ने बताया कि योग की तरह पांच वक्त की नमाज पढ़ने से जीवनचर्या अनुशासित एवं व्यवस्थित होती है. तनाव से मुक्ति मिलती है. नमाज में बंदा केवल अपने परवरदिगार से मुखातिब होते हैं, जिससे उसकी एकाग्रता एवं ध्यान लगाने की क्षमता का विकास होता है. हर नमाज से पहले वजू (चेहरा, हाथ-पांव धोना) करने से स्वच्छता एवं सफाई की अहमियत का अहसास होता है. नमाजी को शारीरिक एवं मानसिक संतुलन बनाने में सहायता मिलती है. जब से उन्होंने होश संभाला है, तब से वे नमाज के साथ बंधे हैं. नमाज से जुड़े रहने से शारीरिक स्फूर्ति हमेशा बनी रहती है, साथ ही किसी से बात करने में रुचि बनती है. चेहरे पर तनाव नहीं दिखता है. वे हल्का खान-पान करते हैं, जिसके कारण उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है.

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