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पंडित रामस्वरुप यादव तीन दशक से जगा रहे हैं शास्त्रीय संगीत की अलख

पंडित रामस्वरुप यादव तीन दशक से जगा रहे हैं शास्त्रीय संगीत की अलख

मधेपुरा. संगीत से हर किसी को प्यार होता है. कई लोग तो ऐसे होते हैं, जो संगीत को ही अपनी जिंदगी बना लेते हैं. ऐसे ही एक शख्स हैं. सहरसा जिले पतरघट निवासी 60 वर्षीय पंडित रामस्वरुप यादव मधेपुरा में रहकर लगातार तीन दशक से जिला मुख्यालय व ग्रामीण इलाकों में शास्त्रीय संगीत की अलख जगा रहे हैं. मालूम हो कि प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा लेने के बाद पंडित रामस्वरुप यादव के पिता बैधनाथ प्रसाद यादव ने उच्च शिक्षा के लिए टीएनबी कॉलेज भागलपुर में दाखिला करवाया, लेकिन पंडित रामस्वरूप यादव को तो तबतक दिमाग में संगीत सीखने और सिखाने की जुनून सवार हो गया था. कई वर्षों तक भागलपुर से रामपुर आकर लेते रहे संगीत शिक्षा कुछ दिन बाद से ही पंडित रामस्वरुप यादव ने टीएनबी कॉलेज भागलपुर रहते हुए सहरसा जिले के रामपुर निवासी पंडित उपेंद्र यादव के पास आकर संगीत सीखना शुरू कर दिया. कई वर्षों तक भागलपुर से रामपुर आकर संगीत शिक्षा लेते रहे. इसी दौरान सहरसा जिले के धबोली निवासी पंडित शैलेंद्र नारायण सिंह से उनकी मुलाकात हुई तो, उन्हेंने टीएनबी कॉलेज भागलपुर को छोड़कर धाबोली गांव आकर गुरु के समक्ष रहकर संगीत सीखने लगे. दरअसल, बचपन से ही संगीत के प्रति लगाव रखने वाले पंडित रामस्वरुप यादव ने पहले खुद प्रशिक्षण लिया और फिर कोसी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके के युवाओं को मुफ्त में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देना शुरू किया. घर के बरामदे पर ही लगाते हैं संगीत का स्कूल पंडित रामस्वरुप यादव आर्थिक तंगी व गरीबी को झेलते हुए अपने घर के बरामदे पर ही संगीत का स्कूल लगाते हैं. प्रशिक्षण लेने वाले छात्र भी कहते हैं कि पंडित रामस्वरुप नहीं होते तो वे लोग संगीत की शिक्षा नहीं ले पाते. पतरघट प्रखंड के एक छोटे से गांव सखौड़ी के रहने वाले पंडित रामस्वरुप यादव की बिहार समेत संपूर्ण कोसी में खास पहचान है. पंडित रामस्वरुप एकमात्र शख्स हैं, जो शास्त्रीय संगीत के जानकार हैं. यही नहीं, जानकार होने के साथ-साथ वह गुरु की भूमिका निभाते हुए इलाके के लड़के-लड़कियों को मुफ्त में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देते आ रहे हैं. सरकार द्वारा बहाल किये गये संगीत शिक्षकों में हैं इनके शिष्य- पंडित रामस्वरुप ने शास्त्रीय संगीत के प्रशिक्षण के बाद प्रयागराज संगीत समिति इलाहाबाद से प्रभाकर की डिग्री भी हासिल की. प्रभाकर की डिग्री हासिल करने के बाद शास्त्रीय संगीत को ही अपनी जिंदगी बना कर इलाकों में शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने की ठान ली. कोसी के ग्रामीण इलाके में लड़के-लड़कियों को इन्होंने मुफ्त में शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. इनके सिखाये हुये कई लोग आज अच्छी जगहों पर पहुंच चुके हैं. कई टेलीविजन के रियलिटी शो में भी शामिल हुये. बिहार सरकार द्वारा बहाल किये गये संगीत शिक्षको में कई इनके शिष्य हैं. जो बिहार के विभिन्न स्कूलों में संगीत शिक्षक के पद पर पदस्थापित हुये हैं. कोसी क्षेत्र में की कई संगीत महाविद्यालय की स्थापना पंडित रामस्वरुप ने कहा कि शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ने का उन्होंने बीड़ा उठाया है. शास्त्रीय संगीत के बिना कोई भी संगीत पूरा नहीं है. गरीबी व आर्थिक तंगी से जूझने के बाद भी पंडित रामस्वरुप जिला मुख्यालय के बेल्हा घाट स्थित अपने घर के बरामदे पर ही शास्त्रीय संगीत की क्लास लगाते हैं. उन्होंने कोसी क्षेत्र में पंडित ओमकार नाथ ठाकुर संगीत महाविद्यालय पतरघट, मां उमा संगीत सदन मधेपुरा, विजय मेमोरियल संगीत महाविद्यालय बेलो चमगढ़, गंधर्व महाविद्यालय मधेपुरा, संगीत महाविद्यालय सिमराही सुपौल की स्थापना की है. जहां उनके नेतृत्व में उनके शिष्यों के द्वारा निःशुल्क संगीत शिक्षा दी जा रही है. जबकि उन्होंने खुद की दर्जनों धुन भी बनाई हैं. वर्ष 2000 में आकाशवाणी पूर्णिया में अपने भजन की प्रस्तुति दी. उसके बाद वर्ष 2011 में दरभंगा आकाशवाणी में भी अपनी प्रस्तुति दी.

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