गोड्डा. अंगिका भाषा की लड़ाई पिछले 20 वर्षों से चली आ रही है. भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने को लेकर पहले से मंच सदस्य मांग करते आ रहे हैं. अब आंदोलन व प्रदर्शन का रुख अख्तियार कर चुके हैं. अंगिका भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने को लेकर अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच झारखंड प्रदेश व अंगिका समाज की ओर से शहीद स्तंभ परिसर से आंदोलन का आगाज करते हुए धरना के साथ किया गया. प्रतिनिधिमंडल की ओर से मांगों को लेकर राष्ट्रपति के नाम डीसी को ज्ञापन सौंपा. अध्यक्षता मंच के जिलाध्यक्ष डॉ राधेश्याम चौधरी ने की. श्री चौधरी ने कहा कि मातृभाषा से ही लोगों को सरोकार से जुड़ने का मौका मिलता है. मातृभाषा भावनात्मक और वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज, सुगम और सुस्पष्ट माध्यम है. राज्य में अपनी मातृभाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिले तो उस समाज का सांस्कृतिक, मानसिक और आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है. कहा कि अंगिका आज 28 जिलों की पांच करोड़ लोगों की प्रमुख भाषा है. अंगिका को मान्यता नहीं मिल पाना सरकार की गलत है. अंगिका भाषा को संवैधानिक दर्जा मिलते तक मंच किसी भी स्थिति में मानने को तैयार नहीं है. अंगिका मंच के लोग आंदोलन के लिए बाध्य होंगे.
पांच करोड़ लोग दमनात्मक यातना सहने को मजबूर : महासचिव
महासचिव डाॅ प्रदीप प्रभात ने कहा कि अंगिका भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाने की वजह से आज करोड़ों लोग अपनी ही क्षेत्र में दमनात्मक यातना सहने को मजबूर है. सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, प्रशासनिक एवं राजनैतिक शोषण से ग्रसित होना पड़ रहा है. अंगिका समाज अंगिका की स्मिता के लिए धरना के माध्यम से जनसंघर्ष एवं जन आंदोलन का आगाज कर चुका है. उपाध्यक्ष मनोज कुमार राही ने कहा कि अंगिका भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलती है. तब तक लड़ाई जारी रहेगी. अंगिका समाज के नेतृत्व में गांव-गांव जनजागरण अभियान चलायेंगे. मौके पर डाॅ ब्रह्मदेव कुमार, स्मिता शिप्रा, निशिकांत यादव, धनेश्वर प्रसाद पंडित, अभिमन्यु प्रसाद गुप्ता, तारिणी प्रसाद यादव, दीपक देव, राजकुमार मंडल, अनंत दुबे, नवीन कुमार, सुनील कुमार यादव, धर्मेंद्र यादव, अशोक यादव, बरुण यादव समेत दर्जनों लोग उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है