बोकारो. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि सामाजिक परिवर्तन से ही व्यवस्था परिवर्तन संभव है. इसके लिए सबसे पहले आध्यात्मिक जागरण की आवश्यकता होती है. जब आक्रांताओं ने भारत पर आक्रमण किया, तो समाज उनके अत्याचारों से त्रस्त हुआ, तब संतों ने आध्यात्मिक जागरण कर लोक में निर्भयता का भाव जगाया. हमें भी अपने व्यवहार में आत्मीयता और एकात्मता को अंगीकृत करना होगा, तभी समाज में समरसता आयेगी. डॉ भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के बौद्धिक सत्र को संबोधित कर रहे थे. आरएसएस प्रमुख स्वयंसेवकों को राष्ट्र, अनुशासन व राष्ट्रवाद की सीख देकर शुक्रवार को बोकारो से विदा लिये. तीन पूर्ण दिवस तक बोकारो में प्रवास के बाद वह सड़क मार्ग से रांची के लिए रवाना हुए. आरएसएस सूत्रों के अनुसार, इससे पहले स्वयंसेवकों के बौद्धिक सत्र में उन्होंने कहा कि हमारा समाज विविधताओं से भरा है, लेकिन सबका मूल एक ही है. सभी को एक साथ मिलकर चलना है. जब हम ये बात भूल गये, तब समाज में विकृति आयी. समाज को एकात्मता की आवश्यकता है. समाज में अन्याय के कारण एक-दूसरे के प्रति द्वेष और अविश्वास पैदा होता है. उन्होंने कहा कि हमारे ही समाज में जो लोग अन्याय के चलते हमसे अलग हो गये, उन्हें अपने साथ लाना है. सबके प्रति सद्भावना अनिवार्य है.
पर्यावरण के संबंध में भारतीय दृष्टि को रेखांकित किया :
आरएसएस सूत्रों के अनुसार, डॉ मोहन भागवत ने पर्यावरण के संबंध में भारतीय दृष्टि के बारे में भी बताया. कहा कि भारतीय परंपरा स्वयं को पर्यावरण का मित्र मानती है. हमारी मूल दृष्टि वसुधैव कुटुंबकम की है. सृष्टि हमारी माता है. इसी भाव से पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के प्रतिमान बनाने होंगे. सामाजिक समरसता, पर्यावरण, स्व-आधारित व्यवस्था, परिवार प्रबोधन व नागरिक कर्तव्य ये पंच परिवर्तन पर संघ ने कार्य प्रारंभ किया है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है