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बरसात के मौसम में भी नदियों में नहीं है पानी, नाले में तब्दील हुई बांसलोई नदी

बालू माफियाओं द्वारा नदी में बने हुए पुल के समीप से ही धड़ल्ले से उठाव के कारण आज बांसलोई नदी के सूखने के साथ-साथ नदी पर बनाये गये पुल पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है.

महेशपुर. आये दिन यह चर्चा होती है कि लोग अपने-अपने फायदे के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं. इसका जीता जागता उदाहरण है, पाकुड़ जिले के महेशपुर प्रखंड के बीचोंबीच गुजरने वाली बांसलोई नदी. नदी में बने चार पुलों पर संकट के बादल मंडराते हुए दिख रहे हैं. बालू माफियाओं द्वारा नदी में बने हुए पुल के समीप से ही धड़ल्ले से उठाव के कारण आज बांसलोई नदी के सूखने के साथ-साथ नदी पर बनाये गये पुल पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है. इतना ही नहीं प्रखंड की ढाई लाख की आबादी की सुविधा के लिए बनाये गये पुल के साथ-साथ प्रखंड में पेयजल की किल्लत दूर करने को लेकर इंटेकवेल व पानी टंकी बनाया गया था. वहीं पानी टंकी के लिए बांसलोई नदी में 10-15 फीट का कुआं (इंटेकवेल) 15 मीटर चौड़ा और 6 करोड़ 38 लाख 52 हजार 350 रुपए खर्च कर बनाया गया था. वहीं बालू माफियाओं की बुरी नजर पुल के साथ-साथ बांसलोई नदी में बनाये गए कुएं में पड़ते ही इंटेकवेल के समीप से बालू का उठाव कर वहां के जलस्तर को ही खत्म कर दिया. बालू माफिया इस तरह अपने कारोबार में मशगूल व प्रशासन से बेखौफ हो चुके हैं, उन्हें नदी पर बनाये गये पुलों के अस्तित्व व पानी टंकी का ध्यान नहीं रहा. बालू माफियाओं के कारण नदी का धारा अब समाप्त हो चुकी है. बांसलोई नदी अब नाले की रूप ले चुकी है.

बता दें कि प्रशासन ने बालू माफियाओं के खिलाफ नकेल कसने में देर कर दी है. लेकिन एक बात साफ है कि इस तरह से नदी खत्म होती रही तो नदी से सटे हुए गांव के लोग एवं किसान को खेतीबाड़ी में उनको काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. साथ ही पशु-पक्षी ही नहीं, इंसान पानी पीने के लिए मौहताज हो जाएंगे. बताते चलें कि तीन बड़े पुलों पर कई जगहों पर अत्यधिक बालू का उठाव के कारण पानी टंकी आज तक यहां के लोगों को एक बूंद पानी दे नहीं सकी. एनजीटी लगते ही बांसलोई नदी में ट्रैक्टर दिख नहीं रही है. बालू माफिया एनजीटी लगते ही अपने इस बालू खनन कारोबार को बंद रखा हुआ है. इससे बांसलोई नदी में कहीं- कहीं पानी दिख रहा है.

बांसलोई नदी में इन जगहों पर है पुल :

पहला पुल ग्वालपाड़ा के समीप. दूसरा पुल बलियाडंगाल के समीप परियादहा में बना हुआ है. तीसरा पुल घाटचोरा के समीप बना था. लेकिन वह पुल तेज बाढ़ को सह नहीं पाया और खिलौने की तरह नदी में बहते हुए वर्तमान सरकार पर कई सवाल खड़ा कर दिया था. लेकिन सरकार दोबारा इस पुल को स्वीकृति देते हुए पुल का निर्माण करा रही है. इधर, चौथा पुल गढ़बाड़ी गांव के समीप बना हुआ है. ये चारों पुल झारखंड राज्य अलग होने के बाद वर्ष 2017 तक महेशपुर प्रखंड में बना हुआ है, जबकि नुराई- अमृतपुर गांव के समीप बांसलोई नदी के बीचों बीच नये पुल का निर्माण किया जा रहा है.

क्या कहते हैं किसान :

बांसलोई नदी महेशपुर की जीवन रेखा कहा जाता था. कभी इतना पानी नदी में भरा हुआ रहता था कि हम किसान नदी के पानी से ही खेतीबाड़ी करते थे. अब हमलोगों को बोरिंग का पानी खरीदकर खेतीबाड़ी करना पड़ता है. सरकार यदि बांसलोई नदी में बांध बनाती है तो किसानों को काफी लाभ मिलेगा.

– आसारी शेख, किसान

बांसलोई नदी का पानी इर्द-गिर्द आबाद दर्जनों बस्तियों के हजारों लोग पीते थे. नहाने-धोने, मवेशियों को पिलाने और खेतों की सिंचाई के लिए नदी का पानी ही इस्तेमाल होता था. लेकिन आज के दिन नदी सूखी पड़ी है. इससे हमलोगों को खेतीबाड़ी करने के लिए बिजली व बोरिंग के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है.

– राजू लेट, किसान

आज बांसलोई नदी नाम का ही है. नदी में ना पानी है, ना ही बालू की रेत है. कुछ सालों पहले यह नदी एक अलग धारा में बहती थी. यह बालू माफियाओं की वजह से नदी घुट- घुट कर खत्म होने के कगार पर है.

– साईमुद्दीन शेख, किसानB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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