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Champai Soren Warning: सीएम चंपाई सोरेन ने दी चेतावनी, जानबूझकर वनपट्टा के आवेदनों को रद्द करने पर होगी कार्रवाई

Champai Soren Warning: रांची के श्रीकृष्ण लोक प्रशासन संस्थान (एटीआई) में सोमवार को अबुआ वीर, अबुआ दिशोम अभियान को लेकर कार्यशाला का आयोजन किया गया. झारखंड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि ये महत्वपूर्ण अभियान है. वनपट्टा के आवेदनों को जानबूझकर रद्द नहीं करें.

Champai Soren Warning: रांची-झारखंड के सीएम चंपाई सोरेन ने कहा कि अबुआ वीर, अबुआ दिशोम अभियान को अधिकारी हल्के में नहीं लें. वनपट्टा के आवेदनों को जानबूझकर रद्द नहीं करें. वनपट्टा के लिए प्राप्त आवेदनों को जानबूझकर रद्द करने पर राज्य सरकार उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी. मजबूत इच्छाशक्ति से अपने दायित्वों का निर्वहन करें. वन अधिकार अधिनियम को सरल और पारदर्शी बनाकर झारखंड के वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी-मूलवासी सहित सभी वर्ग-समुदाय के लोगों को ग्राम सभा के निर्णय के अनुसार सम्मान के साथ वनपट्टा दें. वे रांची के एटीआई सभागार में आयोजित कार्यशाला में अफसरों को संबोधित कर रहे थे.

वन अधिकार अधिनियम के तहत हक-अधिकार देना है प्राथमिकता

मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने श्रीकृष्ण लोक प्रशासन संस्थान (ATI) के सभागार में आयोजित ABUA BIR ABUA DISHOM ABHIYAN (Empowering Communities-Ensuring Rights Decoding FRA-2006-Justice, Conservation and Challenges) विषय पर आयोजित कार्यशाला में कहा कि झारखंड के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी-मूलवासी समेत सभी वर्ग समुदाय के लोगों को वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें उनका हक-अधिकार प्रदान करना राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है.

सम्मान के साथ दें वनपट्टा

अबुआ वीर, अबुआ दिशोम अभियान को लेकर आयोजित कार्यशाला झारखंड के लिए ऐतिहासिक और मील का पत्थर साबित होगा. कार्यशाला में उपस्थित अधिकारियों को संबोधित करते हुए सीएम चंपाई सोरेन ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम को सरल और पारदर्शी बनाकर झारखंड के वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी-मूलवासी सहित सभी वर्ग-समुदाय के लोगों को ग्राम सभा के निर्णय के अनुसार सम्मान के साथ वनपट्टा प्रदान करें. ग्राम सभा की अनुशंसा के अनुरूप वनपट्टा के लिए मिले आवेदनों में भूमि की मांग हेक्टेयर में हो या एकड़ में, हम उतनी भूमि उन्हें प्राथमिकता के तौर पर उपलब्ध कराएंगे. इस लक्ष्य के साथ कार्य करने की जरूरत है.

मजबूत इच्छाशक्ति जागृत कर दायित्वों का निर्वहन करें अधिकारी

मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने विश्वास जताया कि इस कार्यशाला के बाद अबुआ वीर, अबुआ दिशोम अभियान में तेजी आएगी. वनपट्टा वितरण में जो कमी रही है, उसे इस अभियान के तहत पूरा करना ही मुख्य उद्देश्य है. भरोसा है कि लक्ष्य के अनुरूप अब वनपट्टा वितरण कार्य में राज्य सरकार अवश्य आगे बढ़ते हुए सफलता हासिल करेगी. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि वन क्षेत्र में निवास करने वाले परिवारों के बीच सिर्फ वनपट्टा वितरण करना ही नहीं बल्कि उन्हें विकास के हर पहलू से जोड़ने की आवश्यकता है. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से उन्हें मजबूत करना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है. हम सभी मिलकर झारखंड में एक ऐसी व्यवस्था बनाएं, जहां ग्रामीण और शहरी लोगों के विकास में कोई भेदभाव नहीं हो. सबका एक समान विकास हो. देश में झारखंड विकास के मॉडल का एक बेहतर उदाहरण पेश कर सके. मजबूत इच्छाशक्ति को जागृत कर अधिकारी अपने दायित्वों का निर्वहन करें.

वनपट्टा के लिए प्राप्त आवेदनों को जानबूझकर रद्द नहीं करें

मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम वर्ष 2006 में लागू हुआ है. इस अधिनियम के लागू हुए 18 साल हो चुके हैं फिर भी हम सभी लोग वन क्षेत्र में रहने वाले परिवारों को वन भूमि का अधिकार अभी तक देने में काफी पीछे हैं. झारखंड के विभिन्न कार्यालयों में वनपट्टा के हजारों आवेदन रद्द कर दिए गए हैं. ये आवेदन क्यों रद्द हुए हैं, इसका जवाब जनता को देना पड़ेगा. अधिकारी वनपट्टा के लिए प्राप्त आवेदनों को जानबूझकर रद्द करने का प्रयास करेंगे, उन पर राज्य सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी. इस कार्यशाला में 2 डिसमिल और 3 डिसमिल भूमि का वनपट्टा आवेदकों को देने को लेकर चर्चा करने के लिए उपस्थित नहीं हुए हैं, बल्कि वनवासियों को उन्हें उनका पूरा अधिकार देने के संकल्प के लिए एकत्रित हुए हैं. वन भूमि पर जिनका जितना अधिकार है, उन्हें सम्मानपूर्वक उपलब्ध कराएंगे. वन क्षेत्र में रहनेवाला परिवार उस भूमि पर कृषि कार्य कर चाहे धान की खेती हो, रबी फसल हो या वन उत्पाद हो, अपना जीवन यापन सम्मान के साथ कर सकें.

अबुआ वीर, अबुआ दिशोम है महत्वपूर्ण अभियान

मुख्यमंत्री ने कहा कि अबुआ वीर, अबुआ दिशोम अभियान को हल्के में नहीं लेना है. यह एक महत्वपूर्ण और प्रभावी अभियान है. इस अभियान के तहत वन पट्टा दावों के निपटारे के लिए जो रोडमैप राज्य सरकार ने तैयार किया है, उसे हर हाल में धरातल पर उतरना पड़ेगा. आज इस कार्यशाला में हम सभी जिम्मेदार लोग एकत्रित हुए हैं और हम सभी को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन तत्परता और पूरी ईमानदारी के साथ करना पड़ेगा. तभी वन अधिकार अधिनियम कानून का लाभ यहां के आदिवासी और मूलवासी परिवारों को मिल सकेगा.

पूर्वजों ने कोल्हान से हक-अधिकार के लिए की थी आंदोलन की शुरुआत

मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों ने जल, जंगल, जमीन सहित अपने हक अधिकारों की लड़ाई आज से तीन-चार सौ वर्ष पहले लड़ी थी. हमारे पूर्वजों ने कोल्हान की धरती से जल, जंगल, जमीन को संरक्षित करने के लिए एक बड़ा आंदोलन किया था. इस आंदोलन में न जाने कितने वीरों ने सीने पर गोलियां खाईं. हमारे पूर्वजों के बलिदान और त्याग का ही प्रतिफल रहा है कि देश में वन अधिकार अधिनियम कानून लागू हुआ है. वर्षों संघर्ष के बाद वर्ष 2006 में एएफआरए लागू किया जा सका. आज सभी लोग जो घने जंगल देख रहे हैं, इन जंगलों के संरक्षक हमारे आदिवासी-मूलवासी परिवार के लोग ही हैं. वन क्षेत्र में बनी ग्राम समितियों की बदौलत ही जंगल को बचाया जा सका है. यहां के आदिवासी-मूलवासी बहुत ही सरल स्वभाव के लोग हैं, लेकिन ये लोग कभी भी अपनी परंपरा, संस्कृति और अस्तित्व की सुरक्षा के लिए पीछे नहीं हटते हैं. इन वर्गों का सर्वांगीण विकास सरकार की प्राथमिकता में है.

कार्यशैली में बदलाव और सकारात्मक मानसिकता के साथ आगे बढ़ें

झारखंड के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री दीपक बिरुआ ने कहा कि कार्यशाला में एक गंभीर विषय पर हम सभी चिंतन कर रहे हैं. वन अधिकार अधिनियम वन क्षेत्र में रहने वाले परिवारों को संरक्षित करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है. वर्तमान समय में वन अधिकार अधिनियम के उद्देश्य और भावनाओं को गहराई से समझने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि वन अधिकार अधिनियम कानून वर्ष 2006 में बना. बावजूद उसके 18 साल बीत जाने के बाद भी इसका पूरा लाभ यहां के आदिवासी तथा मूलवासियों को नहीं मिल सका है. उन्होंने उपस्थित अधिकारियों से कार्यशैली में बदलाव लाकर सकारात्मक मानसिकता के साथ वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने की अपील की.

कार्यशाला में ये थे उपस्थित

कार्यशाला में मुख्य सचिव एल खियांग्ते, पीसीसीएफ संजय श्रीवास्तव, वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की प्रधान सचिव वंदना दादेल, विभागीय सचिव कृपानंद झा, सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता संजय उपाध्याय, आदिवासी कल्याण आयुक्त अजय नाथ झा, सभी जिलों के उपायुक्त एवं जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी सहित कई गणमान्य उपस्थित थे.

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