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संस्कार के बिना संस्कृति की स्थापना नहीं : जीयर स्वामी

चातुर्मास व्रत को लेकर सिंगरा में प्रवचन कार्यक्रम

पड़वा. सिंगरा में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में सोमवार को पूज्य श्री जीयर स्वामी जी ने कहा कि संस्कार के बिना संस्कृति की स्थापना नहीं हो सकती. इसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति व सभ्यता है. आज भी यह अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है. संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है. संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है, जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण करता है. अतः संस्कृति का साधारण अर्थ होता है-संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि. संस्कृति का क्षेत्र सभ्यता से कहीं अधिक व्यापक और गहन होता है. सभ्यता का अनुकरण किया जा सकता है, लेकिन संस्कृति का अनुकरण नहीं किया जा सकता है. सभ्यता वह है, जो हम बनाते हैं तथा संस्कृति वह है, जो हम हैं. भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक व्यवस्थित रूप वैदिक युग में प्राप्त होता है. वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ माने जाते हैं. प्रारंभ से ही भारतीय संस्कृति अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी, सशक्त एवं जीवंत रही है, जिसमें जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा आध्यात्मिक प्रवृत्ति का अद्भुत समन्वय पाया जाता है. भारतीय विचारक आदिकाल से ही संपूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में मानते रहे हैं. इसका कारण उनका उदार दृष्टिकोण है. हमारे विचारकों की ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत में गहरी आस्था रही है. वस्तुतः शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास ही संस्कृति की कसौटी है. इस कसौटी पर भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से उतरती है. आश्रम व्यवस्था का पालन करते हुए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र रहा है.

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