‘झांसी’ उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहरों में से एक है. यह शहर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है, जो कि बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है. साथ ही साथ कई वीर नायकों की जन्मभूमि तो कइयों की कर्मभूमि रही है. भारत की वीरांगनाओं में से एक झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, झलकारी बाई की वीरता के लिए बुंदेलखंड को याद किया जाता है. सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता बुन्देलखण्ड की शौर्यगाथा को बयां करती है. किले में बनी चित्रकारी आपको अंग्रेजों के जुल्मो-सितम की जीता-जागता नमूना पेश करेगी.
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…
बुन्देलखण्ड का इतिहास इतना विस्तृत और स्मरणीय है कि हर कोई इसे जानने की इच्छा रखता है.
इतिहास
9वीं शताब्दी में झांसी खजुराहो के राजपूत चन्देल वंश के राजाओं के अन्तर्गत आया. यहां स्थित कृत्रिम जलाशय और पहाड़ी क्षेत्र के खंडहर इसी काल के हैं. चन्देल वंश के बाद उनके सेवक खंगार ने इस क्षेत्र का कार्यभार सम्भाला. 14वीं शतब्दी में बुंदेलों का आगमन हुआ. वे धीरे-धीरे सारे मैदानी क्षेत्र में फैल गए, जिसे आज बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है. झांसी के किले का निर्माण 1613 ई. में ओरछा शासक वीरसिंह बुन्देला ने करवाया था. ऐसा माना जाता है कि किराजन वीरसिंह ने दूर से दिख रही परछाईं को देखकर अपनी स्थानीय भाषा में ‘झांई सी’ बोला, जिससे इसका नाम झांसी पड़ा.
मराठों ने किया विकास
17वीं शताब्दी में मुगलों के लगातार आक्रमण के बाद राजा छत्रसाल ने मराठों से मदद ली. छत्रसाल के निधन के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहाई भाग मराठों को दे दिया गया. 1817 ई. में सारे अधिकार ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मिल गये. 1857 ई. में झांसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर जनरल ने झांसी को पूरी तरह से अपने अधिकार में ले लिया. गंगाधर राव की विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कहा कि “राजा गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी माना जाये.” परन्तु ब्रिटिश राज ने इसे मानने से इंकार कर दिया. इन्हीं परिस्थितियों के फलस्वरूप सन 1857 ई. का संग्राम हुआ, जिससे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है.
झांसी जो कभी बुंदेलखंड का एक अभिन्न हिस्सा थी
बुंदेलों कि कई परम्पराओं और रीति-रिवाज़ो को अभी तक संजोकर रखा गया है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शौर्यगाथा को बयां करने वाला यह शहर पर्यटकों के लिए सदैव ध्यानाकर्षण का केंद्र बना रहता है. यहां बहुत से धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं.
झांसी की ये जगहें रखती है इतिहास में विशेष स्थान
झांसी का किला
झांसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में से एक है. ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई. में बनवाया था. किले में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं. इन दरवाजों को खन्देरो, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैनवर और चांद दरवाजों के नाम से जाना जाता है. किले में रानी झांसी गार्डन, शिव मन्दिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है.
रानी महल
अनेक रंगों और चित्रकारियों से सजाया गया यह महल वर्तमान में संग्राहालय में तब्दील कर दिया गया है. यहां नौवीं से बारहवीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है. वर्तमान में महल की देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग करता है.
झांसी संग्रहालय
इतिहास में रुची रखने वाले पर्यटकों के लिएये स्थान बेहद ही जानकारी से भरा है. इस संग्रहालय में आपको झांसी के इतिहास, मराठा और बुन्देली संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिलेगा. यह संग्रहालय केवल झांसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड की झलक प्रस्तुत करता है. यहां आपको चंदेल वंश से जुड़ी जानकारी भी मिलेगी, उस समय के हथियारों, मूर्तियों, वस्त्रों और तस्वीरों को भी यहां देखा जा सकता है.
महालक्ष्मी मन्दिर
झांसी के राजपरिवार के सदस्य पहले श्री गणेश मंदिर जाते थे, जहां पर रानी मणिकर्णिका और श्रीमन्त गंगाधर राव नेवालकर की शादी हुई. फिर इस महालक्ष्मी मन्दिर आते थे. 18वीं शताब्दी में बना यह भव्य मन्दिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है.
गंगाधर राव की छतरी
लक्ष्मी ताल में महाराजा गंगाधर राव की समाधि स्थित है. 1853 में उनकी मृत्यु के बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने यहां उनकी याद में यह स्मारक बनवाया है.
झांसी के निकटतम अन्य दर्शनीय स्थल सुकमा-डुकमा बांध, देवगढ़, ओरछा, खजुराहो दतियाशिवपुरी इत्यादि है. झांसी घूमने के लिए सभी मौसम अनुकूल होते है. मानसून में न अधिक गर्मी न ही अधिक ठंड होने के कारण यह बेहतर ऑप्शन रहता है.
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