वो जमाना गुजर गया कब का… पुरानी चीजों की थीम पर सजने लगे हैं रेस्टोरेंट प्रतिनिधि, सिमरी बख्तियारपुर तकनीक ने हमारी जिंदगी बदल दी है. अब महंगे ब्रांडेड स्मार्टफोन का जमाना है. कभी लोग पेजर और उससे भी पहले ट्रंक कॉल में घंटों इंतजार के बाद बातचीत कर पाते थे. उसी तरह लालटेन और ढिबरी की जगह एलईडी लाइट ने ले ली है. वीसीआर के बाद उपयोग में आयी सीडी-डीवीडी की जगह अब ओटीटी प्लेटफॉर्म चलन में आ गया है. अब कान से रेडियो सटाये समाचार, क्रिकेट कमेंट्री या गाने सुनने का रिवाज भी खत्म हो गया है. अब ये चीजें सजावट की सामग्री बन गयी हैं, एंटीक के शौकीन लोग इसके लिए हजारों रुपये खर्च करने को तैयार हैं. पुरानी चीजों की थीम पर कोसी इलाके के रेस्टोरेंट पुरानी चीजों की थीम पर रेस्टोरेंट भी सजने लगे हैं, जो ग्राहकों को काफी सुकून दे रहे हैं. रेस्टोरेंट परिसर में टेबल टॉप फोन, ग्रामोफोन, रेडियो, लालटेन, टाइप राइटर आदि आसानी से दिख जाते हैं. वीसीआर का था कभी जमाना ओटीटी के जमाने से पहले वीसीआर का जमाना था. सफेद पर्दे पर प्रोजेक्टर और वीसीआर से फिल्में देखी जाती थीं. जिनके पास वीसीआर होता था, वे समाज के प्रतिष्ठित लोग माने जाते थे. जैसे-जैसे तकनीक बढ़ी, वीसीआर की जगह सीडी और डीवीडी ने ले ली. टाइपराइटर भी कम ही दिखते हैं एक दौर था जब टाइपिंग सीखने के लिए लोग इंस्टिट्यूट में दाखिला लेते थे. शहरों मे टाइपिंग इंस्टिट्यूट का काफी प्रचलन था. लोग टाइपराइटर पर घंटों टाइपिंग सीखते थे. अब इसकी जगह की बोर्ड ने ले ली है. तकनीक का ऐसा विकास हुआ कि अब मोबाइल में भी स्पीक टाइपिंग एप भरे हैं. अब सिर्फ कोर्ट- कचहरी में ही टाइपराइटर देखने को मिलते हैं. तब की इन्वर्टर थी लालटेन 90 के दशक में जब बिजली शहरों तक ही सीमित थी, तब गांवों में लालटेन, लैंप ही उजाला फैलाते थे. गांव के लोगों के लिए उस वक्त लालटेन ही इन्वर्टर था. लालटेन केराेसिन से जलती थी और उस वक्त केरोसिन का जुगाड़ करना भी मुश्किल होता था. बाद में बिजली बढ़ी और धीरे-धीरे लालटेन कम होती चली गयी. रेडियो भी हो गयी कल की बात ट्रांजिस्टर रेडियो आज भी युवाओं के जेहन में है. एक दौर था जब रेडियो के सामने लोग घंटों समय गुजार देते थे. हर सुबह की शुरुआत रेडियो की मीठी धुन से होती थी. रेडियो पर लोग गीत, न्यूज, क्रिकेट की कमेंट्री सुनते थे. बीतते वक्त के साथ रेडियो का महत्व खत्म हो गया. हालांकि बीते कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात सुनने के लिए लोग इसका प्रयोग करने लगे हैं. कैसेट वाले गाने पुराने… एमपी थ्री गाने से पहले लोग कैसेट से गाने सुनते थे. कैसेट के लिए खास टेप रिकॉर्डर मिलता था. इन टेप रिकॉर्डर में कई तरह के फंक्शन हुआ करते थे, जिनका खूब इस्तेमाल होता था. शोले फिल्म के डायलॉग से लेकर आशिकी फिल्म के गाने तक उस दौर में टेप रिकॉर्डर से खूब सुने गए. टॉर्च का खूब होता था इस्तेमाल एक दौर था जब रात में टॉर्च का खूब इस्तेमाल होता था. रात के अंधेरे में जब कहीं जाना होता था, तो टॉर्च का ही सहारा होता था. अभी मोबाइल ने बहुत चीजों को रिप्लेस कर दिया है. इसमें कैलकुलेटर से लेकर टॉर्च तक शामिल है.
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