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भविष्य को लेकर चिंतित हैं कोयलांचल के हाइवा मालिक

भविष्य को लेकर चिंतित हैं कोयलांचल के हाइवा मालिक

उदय गिरि, फुसरो नगर : बेरमो कोयलांचल के हाइवा मालिक कोलियरियों में कोयला के अभाव तथा पांच-छह माह से छाई ट्रांसपोर्टिंग बंद से परेशान हैं. काम के अभाव में यहां से 300 से अधिक हाइवा मालिक अपने वाहन लेकर ओडिसा, बिहार व प. बंगाल पलायन कर गये हैं. वहां बालू व मिट्टी ढुलाई और आयरन माइंस में गाड़ियां चला रहे है. यहां काम के अभाव में 200 से अधिक हाइवा खड़े हैं. लगभग 100 हाइवा किसी तरह चल रहे हैं. वह भी 24 घंटे में महज एक ट्रीप ही ट्रांसपोर्टिंग हो पा रही है. इसमें डीजल व टोल खर्च के बाद लगभग दो हजार रुपये की ही बचत हाइवा मालिकों को हो पाती है. इसमें से चालक को आठ सौ, खलासी को चार सौ रुपये का भुगतान करना पड़ता है. इसके अलावा खाना के लिए चार सौ रुपया अलग से चालक व खलासी को देना पड़ता है. कुल मिला कर एक ट्रीप में मालिकों को चार सौ रुपये की बचत हो रही है. हाइवा मालिकों का कहना है कि इससे ज्यादा तो ऑटो में कमाई हो जाती है. अपने हक को लेकर हाइवा कोयलांचल ऑनर एसोसिएशन समय-समय पर आंदोलन भी करता है. 25 जून को बेरमो विधायक कुमार जयमंगल सिंह, मंत्री पुत्र अखिलेश महतो व बेरमो एसडीएम को अपनी समस्याओं से अवगत कराया है.

क्यों आया मंदी का दौर :

सीसीएल ढोरी, बीएंडके एवं कथारा एरिया की कोलियरियों से कोल ट्रांसपोर्टिंग का काम अब सड़क मार्ग से हाइवा द्वारा काफी कम हो गया है. डीवीसी के सीटीपीएस व बीटीपीएस प्लांट को पूर्व में कोलियरियों से सड़क मार्ग से कोयला भेजा जाता था. यह भी पूर्णत बंद है. अब डीवीसी केवल रेलवे रैक से ही कोयला ले रहा है. सीसीएल के जारंगडीह, अमलो व भंडारीदह रेलवे साइडिंग से सीधे रैक द्वारा कोयला भेजा जाता है. इसके अलावा बोकारो थर्मल और चंद्रपुरा से होनी वाली छाई ट्रांसपोर्टिंग में कंपनियां ज्यादातर अपने हाइवा (14 व 16 चक्का) का उपयोग कर रही है. छाई ट्रांसपोर्टिंग का काम न्यूनतम रेट में लेने के कारण कंपनियां 10 चक्का हाइवा का प्रयोग नहीं करती है और यहां के ज्यादतर स्थानीय लोगों के पास 10 चक्का हाइवा हैं. अब 10 चक्का हाइवा का उपयोग केवल रेलवे साइडिंग कोल ट्रांसपोर्टिंग में हो रहा है. कुछ कंपनियां खासमहल से बालीडीह, कारो से दुगदा साइडिंग जैसे स्थानों में ट्रांसपोर्टिंग का काम करती है, जिसमें लगभग 100 हाइवा चल रहे हैं. हाइवा मालिकों का कहना है कि ट्रांसपोर्ट कंपनियों से प्रतिदिन जरूरत के मुताबिक काम नहीं मिल रहा है. ट्रांसपोर्टिंग दर में कटौती की जा रही है व राशि का भुगतान समय पर नहीं किया जाता है. कोयलांचल के गोमिया-कथारा से लेकर चंद्रपुरा-दुगदा तक के विस्थापित प्रभावित व युवा बेरोजगार अधिकांश हाइवा के काम से जुड़े हैं. दूसरी ओर बेरमो में सीसीएल के ढोरी, बीएंडके व कथारा एरिया की कई कोलियरियों का विस्तार नहीं हो पाना भी एक बड़ी वजह है. पुरानी माइंस में अब कोयला का स्टॉक नहीं है. ढोरी के एएडीओसीएम के एसडीओसीएम के 143.05 हेक्टेयर तथा 97.44 हेक्टेयर तारमी ओसीपी का विस्तार नहीं हो सका है. पिछरी कोलियरी भी चालू नहीं हो सकी. बीएंडके के एकेके ओसीपी के विस्तार में भी बाधाएं आती रही हैं.

किस्त जमा नहीं हो पाने पर फाइनेंसर कंपनियां जब्त कर लेती है हाइवा :

हाइवा मालिक बताते हैं कि हाल के कुछ वर्षों में जिन युवाओं ने रोजी-रोजगार की चाहत में कुछ पूंजी जमा कर व्यवसाय करने के लिए हाइवा खरीदा, उनकी पूंजी व हाइवा दोनों चली गयी. 150 से अधिक हाइवा किस्त समय पर जमा नहीं किये जाने के कारण फाइनेंसर कंपनियों ने जब्त कर लिये. एक हाइवा का मासिक किस्त 50 से 70 हजार रुपये तक हाेती है.

क्या कहते हैं हाइवा मालिक :

हाइवा कोयलांचल ऑनर एसोसिएशन के अध्यक्ष मंटू नायक का कहना है कि बेरमो में काम का अभाव है. ट्रांसपोर्टिंग कंपनियों की मनमानी भी बढ़ रही है. इसके कारण हाइवा मालिकों की हालत खराब है. मांगों को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं. हमलोगों की समस्याओं पर स्थानीय जनप्रतिनिधि उचित पहल नहीं कर रहे हैं. सचिव गुलेश्वर महतो ने कहा कि गाड़ी नहीं चलेगी तो किस्त कैसे दे. इसलिए पलायन को विवश हो रहे हैं. अंशू राय ने कहा कि कोलियरी में काम में लगातार कमी आ रही है. मिलता भी है तो रेट सही नहीं मिलता है. आंदोलन करने के बाद भाड़ा का भुगतान किया जाता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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