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अलग करवट ले रही है दक्षिण भारत की राजनीति

आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) केंद्र में एनडीए सरकार में सहयोगी की भूमिका में है. उसे राज्य के लिए केंद्र सरकार से आर्थिक सहायता मिल सकती है.

लोकसभा चुनाव के परिणामों से यह स्पष्ट रूप से इंगित होता है कि दक्षिण भारत की राजनीति एक अलग करवट ले रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि दक्षिण में अपना प्रभाव बढ़ाने की अपनी कोशिश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार क्या और आक्रामक बनायेगी. आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) केंद्र में एनडीए सरकार में सहयोगी की भूमिका में है. उसे राज्य के लिए केंद्र सरकार से आर्थिक सहायता मिल सकती है.

ऐसे में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और कांग्रेस केरल और तमिलनाडु के लिए विशेष वित्तीय दर्जा देने की मांग करेंगे. ऐसी वित्तीय नीति उत्तर भारत के राज्यों, विशेष रूप से बिहार, के लिए भारी नुकसान का कारण बन सकती है. तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके सरकार के विरुद्ध लोगों में रोष बढ़ता जा रहा है. पिछले दिनों जहरीली शराब पीने से वहां 55 लोगों की मौत हुई और कई लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े. जयललिता की मृत्यु के बाद उनकी अन्ना द्रमुक पार्टी में बिखराव आ गया. अब इन समूहों को एमके स्टालिन सरकार के खराब शासन के कारण नया जीवन मिल रहा है. दक्षिण भारत से निर्वाचित 130 सांसदों को ऐसा लगता है कि मोदी सरकार उत्तर भारत के लोगों के लिए है. इस नैरेटिव का प्रभावी प्रचार राहुल गांधी और उनके तंत्र द्वारा किया जा रहा है. यह रवैया लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.

इस माहौल में और बढ़ोतरी करते हुए तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित जस्टिस के चंद्रू की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति ने माध्यमिक शिक्षा में बदलाव के लिए गंभीर सिफारिशें की है. युवा मानस में मोदी की अगुवाई वाली हिंदुत्व विचारधारा की पैठ को बढ़ने से रोकने के लिए द्रविड़ विचारधारा को प्रभावी बनाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है. तमिलनाडु आज के समय में सामाजिक विभाजन की कगार पर खड़ा है. जस्टिस चंद्रू समिति ने हाथ में धागा बांधने पर रोक लगाने का सुझाव दिया है ताकि स्कूलों में जाति की पहचान को मिटाया जा सके. यह भी कहा गया है कि माथे पर कुमकुम चंदन लगा सकते हैं, लेकिन तिलक न लगाया जाए. समिति की एक सिफारिश यह भी है कि छात्रों के बाल लंबे होने चाहिए, जिन्हें जुड़े की तरह बांधा जाए.

जस्टिस चंद्रू समिति की रिपोर्ट में ऐसी कई सिफारिशें की गयी हैं. इसी बीच सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि समाज को बदलाव की जरूरत है. उदाहरण के लिए, इस रिपोर्ट में एक सुझाव यह दिया गया है कि विद्यालयों के नाम से जातिसूचक शब्दों को हटा देना चाहिए तथा उन्हें केवल सरकारी स्कूल कहा जाना चाहिए. लेकिन यह समझना आवश्यक है कि केवल नाम बदल देने से वास्तविक बदलाव नहीं आता है. साल 2021 के चुनाव में द्रमुक ने जो चुनावी वादे किये थे, उन्हें सरकारी स्तर पर सफलतापूर्वक लागू किये जाने के कोई संकेत दिखाई नहीं देते.

कर्नाटक एवं तेलंगाना में शासन कर रही कांग्रेस पार्टी को भाजपा ने बुरी तरह पराजित किया है. आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में टीडीपी ने 95 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की है. भाजपा राज्य में टीडीपी और जन कल्याण सेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी. तमिलनाडु में भाजपा अपना वोट शेयर बढ़ाने में सफल रही, लेकिन उसे एक भी लोकसभा सीट नहीं मिल सकी. आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन रेड्डी को लगता है कि टीडीपी राज्यभर में उनकी पार्टी वाइएसआर कांग्रेस के दफ्तरों तथा उनके निजी आवासों को ढाह कर राजनीतिक बदला ले रही है. बहरहाल, दक्षिण में प्रभाव बढ़ाने की नीति का फायदा भाजपा को मिला है. केरल में पहली बार पार्टी को लोकसभा में एक सीट मिली है. इस बार राज्य के लाल दुर्ग में भगवा राजनीति ने सेंधमारी की है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केरल के पालाकड़ में 2024 के लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व को लगे झटके की समीक्षा करने की बैठक कहीं इसी कारण से तो नहीं कर रहा है?

अगर हम ठीक से विश्लेषण करें, तो पाते हैं कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ भाजपा नेता दक्षिण भारत में लोकप्रिय चेहरे हैं. इसी तरह राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव भी वहां जाने-पहचाने नेता हैं. यही वजह है कि प्रियंका गांधी ने केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि वे आसानी ने जीतेंगी. कर्नाटक सरकार ने राज्य के लिए अलग से झंडे और गान की खुली घोषणा की है. दक्षिण भारत में जो हो रहा है, वह गंभीर अध्ययन का विषय है. अगर वर्तमान माहौल में सुधार का प्रयास नहीं किया गया, तो वहां अलगाववादी मानसिकता में बढ़ोतरी होगी. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दक्षिण भारतीय नेताओं के भाषणों के विश्लेषण से यह अहसास होता है कि कुछ विदेशी शक्तियां एक अलग दक्षिणी आवाज के पीछे सक्रिय हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों को उभरते रुझानों पर नजर रखनी चाहिए और उनका समुचित अध्ययन करना चाहिए. अन्यथा राष्ट्र विरोधी शक्तियों को बढ़ावा मिलेगा. यह राष्ट्रवाद के लिए चेतावनी है. छह दक्षिणी राज्यों की कहानी का यह सार है. क्या मोदी सरकार इस संबंध में कुछ करेगी? यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की परीक्षा है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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