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अवैध निर्माण व सरकारी भूमि पर सत्तापक्ष का कब्जा!

राज्य सचिवालय नबान्न में हुई बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हावड़ा नगर निगम और बाली नगरपालिका क्षेत्र में अवैध निर्माण, सरकारी जमीन पर कब्जा सहित अन्य मुद्दों पर निकाय प्रशासकों सहित चार विधायकों को जिम्मेदार ठहराया था.

कुंदन झा, हावड़ा राज्य सचिवालय नबान्न में हुई बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हावड़ा नगर निगम और बाली नगरपालिका क्षेत्र में अवैध निर्माण, सरकारी जमीन पर कब्जा सहित अन्य मुद्दों पर निकाय प्रशासकों सहित चार विधायकों को जिम्मेदार ठहराया था. सीएम की फटकार के बाद पूरे शहर में अफरातफरी मची है. नगर निगम और पुलिस काफी सक्रिय हो गये हैं. विधायक भी सीएम के सामने अपनी छवि सुधारने की कोशिश में लग गये हैं. सवाल यह है कि क्या हावड़ा नगर निगम और बाली नगरपालिका के प्रशासकों एवं शहरी अंचल के चार विधायकों को अवैध निर्माण, सरकारी जमीन पर कब्जा, अवैध पार्किंग की जानकारी नहीं थी? ऐसा होना लगभग असंभव है. शहरवासियों के अनुसार, बिना सत्ता पक्ष के नेताओं की मिलीभगत से यह संभव नहीं हो सकता है. अवैध निर्माण और सरकारी जमीन पर कब्जा करना इतना आसान नहीं होता. सत्ता पक्ष के नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से ही प्रमोटरों को कानून का भय नहीं है. शहर के बीचोंबीच तालाब पाट दिये जाते हैं. निगम से जी प्लस थ्री का प्लान पास करा जी प्लस फाइव या उससे अधिक फ्लोर बनाकर उसे बेच भी दिया जाता है. आसपास के लोग शिकायत लेकर निगम मुख्यालय का चक्कर काटते रहते जाते हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा होता है. सीएम ने भले ही इसका ठीकरा पूर्व मेयर डॉ रथीन चक्रवर्ती पर फोड़ा हो, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि बिना सत्ता पक्ष के नेताओं की हामी के अवैध निर्माण करना और सरकारी जमीन पर करना कब्जा संभव है. जानकारी के अनुसार, शालीमार में हुगली नदी किनारे 25 बीघा सरकारी जमीन थी. वर्ष 2017 में तत्कालीन मेयर डॉ चक्रवर्ती ने इस जमीन पर एक स्टेडियम बनाने की योजना बनायी थी. वर्ष 2018 में बोर्ड की मियाद खत्म हो गयी. स्टेडियम बनाने की योजना अधर में लटक गयी. बताया जा रहा है कि हाल ही में यह सरकारी जमीन एक आवासीय भवन बनाने वाले एक मल्टी नेशनल कंपनी को लीज पर दे दी गयी है. शालीमार रेलवे स्टेशन के बाहर पड़ी खाली जमीन पर पार्किंग को लेकर तृणमूल के दो गुटों के बीच मारपीट हाल ही में हुई थी. सीएम ने भी इस घटना पर नाराजगी जाहिर की थी. शालीमार के साथ ही शहर के अन्य इलाकों में भी अवैध निर्माण धड़ल्ले से हुआ है. इसमें उत्तर हावड़ा पहले स्थान पर है. बताया जाता है कि निगम के पांच साल (2013-18) के कार्यकाल में 5000 से अधिक अवैध निर्माण हुए हैं. पिछले तीन साल में सिर्फ 130 मकान तोड़े गये हैं. वहीं, विगत चार वर्षों में 46 तालाब पाटे गये हैं. इस बारे में भाजपा के प्रदेश सचिव उमेश राय ने कहा कि हावड़ा नगर निगम में वर्ष 2013 में तृणमूल कांग्रेस का बोर्ड बना. इस बोर्ड ने अवैध निर्माण रोकने के बजाय 200 रुपये प्रति वर्ग फीट जुर्माना वसूल कर अवैध को वैध बना दिया. जुर्माने की यह रकम निगम कोष में नहीं, बल्कि नेताओं की जेब में जाती थी. वर्ष 2018 में बोर्ड की मियाद खत्म होने के बाद इस नियम को बंद कर दिया गया. उन्होंने कहा कि निगम में भ्रष्टाचार इस कदर हुआ है कि सीएम को हस्तक्षेप करना पड़ा. सीएम की नाराजगी को हम सबने सुना है. निगम अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई जरूर करेगा. इसके लिए एक टीम गठित की गयी है. जिन लोगों ने जी प्लस टू या थ्री का प्लान लेकर उससे अधिक का निर्माण किया है, उनके खिलाफ पहले कार्रवाई की जायेगी.

डॉ सुजय चक्रवर्ती, निगम के प्रशासनिक बोर्ड के चेयरमैन

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