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पटना की ये महिलाएं ऑटो चलाकर संवार रहीं अपनी किस्मत, जानिए इनकी कहानी

महिलाओं के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. यह साबित कर रही हैं पटना की महिला ऑटो चालक, जो हर महिला के लिए प्रेरणास्रोत हैं. आज हमें ऐसी ही प्रेरक महिलाओं से रूबरू करा रही है जूही स्मिता की यह खास रिपोर्ट .

Women Auto Drivers: हौसला बुलंद हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है और ऐसी ही मिसाल कायम कर रही हैं शहर की महिला ऑटो ड्राइवर. ये सभी महिला ड्राइवर इस बात की सबूत हैं कि औरतों के लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं. हालांकि, शहर में गिनी-चुनी ही महिलाएं हैं, जिन्होंने गाड़ी चलाने का जिम्मा अपने कंधों पर लिया है. कुछ महिला ड्राइवर एयरपोर्ट से ही पैसेंजर लेती हैं, तो कुछ सिर्फ रेलवे स्टेशन से. एक आम पुरुष ऑटो ड्राइवर की तरह ये महिला ऑटो ड्राइवर्स भी अपने सवारी से किराये को लेकर मोल- भाव करती हैं. ये पैसेंजर्स को अहसास नहीं होने देतीं कि वो एक महिला ऑटो चालक हैं और उन्हें ये सारे काम करने में कोई परेशानी है. \

महिला चालकों की संख्या में आयी है कमी

राजधानी पटना में वर्ष 2013 से लेकर 2019 तक इनकी संख्या काफी ज्यादा थी, लेकिन कोरोना के बाद से इनकी संख्या में कमी आयी है. एक योजना के तहत बड़ी संख्या में महिलाओं को ऑटो चलाने के ट्रेनिंग दी गयी थी, जिसमें 100 से ज्यादा महिलाएं शामिल थीं. जब उन्होंने ड्राइविंग शुरू की, तो उन्हें परेशानी के साथ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा. अभी एयरपोर्ट पर चार और रेलवे स्टेशन पर दो ही महिलाएं इस पेशे से जुड़ी हैं.

घर चलाना मुश्किल था इसलिए कमाने का यही जरिया बनाया: सुष्मिता

सिपारा जयप्रकाश नगर की रहने वाली सुष्मिता कुमारी 2013 में एयरपोर्ट के पास बने बीएमपी ग्राउंड में नवीन मिश्रा के जरिये इसका प्रशिक्षण लिया था. वे बताती हैं कि इस पेशे में आने की मुख्य वजह आर्थिक परेशानी थी. दो बेटों को पढ़ाना था और घर खर्च भी चलाना था, ऐसे में कमाने का यही जरिया बना. मैं आर्मी ज्वाइन करना चाहती थी. पर अभी एयरपोर्ट पर ऑटो चलाती हूं. जब लड़कियां मुझे देखती हैं कि फ्रंट सीट एक महिला बैठी है, तो उन्हें काफी अच्छा लगता है. उन्हें किसी चीज का डर नहीं रहता. पहले रोज की कमाई 1000-1500 होती थी, जो अब घटकर 800-900 हो गयी है. आज उनका बड़ा बेटा ग्रेजुएट और छोटा बेटा इंटर पास कर चुका है.

पुरुष चालकों के विरोध करने के बजाय अपने काम पर ध्यान दिया : सुलेखा


बोरिंग रोड की रहने वाली सुलेखा ने वर्ष 2016 में ड्राइविंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया था. वे कहती हैं, जब मेरे दोनों बच्चे छोटे थे, पति कमाते थें, पर इतने कम पैसों में घर को संभालना काफी मुश्किल हो रहा था. उसी वक्त मैंने ड्राइविंग पति से सीखना शुरू किया. एक दिन अखबार में वेटनरी कॉलेज में महिला चालकों को प्रशिक्षण को लेकर खबर पढ़ी, लगा कि यह मेरे लिए एक मौका है. मैंने प्रशिक्षण के लिए आवेदन दिया और प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया. जब सड़क पर ऑटो लेकर उतरी, तो पुरुष चालक कई बार रोड पर भद्दे कमेंट करते और पास भी नहीं देते थे. विरोध करने के बजाय अपने काम पर ध्यान दिया.  

जरूरतों को पूरा करने के लिए इस पेशे का चुनाव किया :  संगीता


गर्दनीबाग की रहने वाली संगीता कुमारी पिछले आठ साल से ऑटो चला रही हैं. वे कहती हैं, परिवार बड़ा था, ऐसे में घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस पेशे से जुड़ने का मन बनाया. मुझे काम की जरूरत थी और सरकार की ओर से महिला ड्राइवर के प्रशिक्षण को लेकर विज्ञापन आया था.मुझे प्राइवेट नौकरी नहीं करनी थी, खुद का कुछ करना था. प्रशिक्षण लेने के बाद घरवालों का विरोध का सामना भी करना पड़ा. काफी मनाने के बाद पति की देख-रेख में ऑटो चलाना शुरू किया. उस वक्त ऑटो की काफी मांग थी, तो कमाई भी अच्छी होती थी. कोरोना के बाद से चीजे काफी बदली हैं. अब लोग कैब में आना-जाना पसंद करते हैं.

स्टेशन पर प्रीपेड काउंटर की वजह से कमाई में पड़ा फर्क : कंचन


भूतनाथ रोड की रहने वाली कंचन देवी 11 साल से पटना जंक्शन से ऑटो चला रही हैं. पति के निधन के बाद तीन बेटियों की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी. ऐसे में उन्होंने इस पेशे को चुना. वे कहती हैं, स्टेशन पर प्रीपेड काउंटर बनाया गया था जिसमें 12 घंटे की ड्यूटी होती थी, लेकिन पैसेंजर मिल जाते थे. लगन के समय भी अच्छी कमाई होती थी. फिर प्रीपेड काउंटर को हटा दिया गया. ऐसे में काफी परेशानी होती हैं. अभी पैसेंजर आते हैं, तो कई बार मोल भाव के दौरान पुरुष चालक कम दाम में उन्हें ले जाते हैं. मेरी बेटी बीसीए कंप्लीट कर चुकी है, लेकिन पैसे नहीं होने की वजह से एमसीए में दाखिला नहीं हो पाया है. सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

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ऑटो चलाकर अपने परिवार का खर्च उठाती हूं : सरिता


सिपारा की रहने वाली सरिता पांडे ऑटो चलाकर अपने परिवार का खर्च उठाती हैं. वे कहती हैं- मैंने 2013 में ऑटो चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था. एक व्यक्ति से घर का खर्च नहीं चल पा रहा था. ऐसे में मैंने पति से ऑटो चलाने की बात की, तो उन्होंने स्वीकार कर लिया, लेकिन घरवालों ने इसका काफी विरोध किया. बावजूद इसके पति के सहयोग से मैंने ऑटो चलाना सीख लिया. ऑटो चलाने की वजह से आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया और आज एक बच्चे ने ग्रेजुएशन कर लिया है और दूसरा इंटर में है. मैं पूरे पटना में ऑटो चलाती हूं और मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे पेशे में हूं, जहां पुरुषों का दबदबा है.

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