अभिषेक रॉय (रांची).
असम के ‘बिहु ढोल’ की तरह झारखंड का पारंपरिक वाद्ययंत्र ‘मांदर’ भी जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) टैग पाने की कतार में खड़ा है. इसके लिए गुमला जिला प्रशासन चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री सेंटर में आवेदन भी कर चुका है. यह पूरी कवायद 2023 में गुमला के तत्कालीन डीसी सुशांत गौरव ने शुरू की थी. मौजूदा डीसी कर्ण सत्यार्थी इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं. संभवत: इसी वर्ष मांदर को जीआइ टैग हासिल हो जायेगा. इसके बाद इस वाद्ययंत्र पर झारखंड का एकाधिकार हो जायेगा. गुमला के रायडीह प्रखंड के जरजट्टा गांव को बतौर ‘मांदर प्रोड्यूसर कंपनी’ के रूप में पहचान भी मिलेगी. संगीत-नाट्य अकादमी के काउंसिल सदस्य नंदलाल नायक ने बताया कि यह एक मात्र ऐसा वाद्ययंत्र, जिसका प्रतिरूप किसी अन्य देश या प्रदेश में नहीं मिला है. जरजट्टा गांव मांदर निर्माण के लिए ही जाना जाता है. गांव के 22 परिवारों की चौथी पीढ़ी के सदस्य मांदर बनाने का काम करते हैं.सिमडेगा में भी मिल रहा मांदर बनाने व बजाने का प्रशिक्षण :
संगीत-नाट्य अकादमी नयी दिल्ली की कला-दीक्षा शृंखला के अंतर्गत सिमडेगा में वाद्य-यंत्र निर्माण का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है. कोलेबिरा के नवाटोली में गुरु सक्रती नायक के मार्गदर्शन में लोग वाद्ययंत्र बनाने व बजाने की कला सीख रहे हैं. प्रशिक्षण शिविर में मांदर, ढोल, ढांक और नगाड़ा को तैयार करने के साथ घासी प्रथागत अनुष्ठान खोद (ताल) बजाने का हुनर सीख रहे हैं. प्रशिक्षण शिविर में तीन गुरु फागू नायक (ढोल व ढांक), सामू नायक (नगाड़ा) और बिदे नायक (शहनाई) कला-दीक्षा शृंखला के तहत 10 शिष्यों काे विधा सीखा रहे हैं. इस संबंध में गुमला के उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी ने कहा कि जीआइ टैगिंग के लिए तय मानकों में अब तक मांदर खरा उतरा है. अब तक 60 से 70 बिंदुओं में मांदर की क्वालिटी, फिनिशिंग, जियोग्राफिकल स्पेसिफिक, सांस्कृतिक पहचान में इसकी उपयोगिता है. रायडीह मांदर प्रोड्यूसर कंपनी के लिए ‘लोगो’ भी उपलब्ध कराया जा चुका है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है