राजीव पांडेय (रांची).
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए मरीजों को खुद लेंस खरीदना पड़ रहा है. जिस लेंस की कीमत बाजार में 500 से 1,000 रुपये है, उसके लिए मरीजों को 3,000 से 5,000 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. वहीं, फोल्डेबल लेंस के लिए इससे भी अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है. हालांकि, रिम्स को मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए मुफ्त में लेंस उपलब्ध कराना है, लेकिन रिम्स में अब भी इसकी निविदा प्रक्रिया ही चल रही है. सूत्रों ने बताया कि रिम्स में करीब छह महीने से मरीजों से लेंस खरीद कर मंगाया जा रहा है. लेंस उपलब्ध कराने के लिए अस्पताल में विभिन्न कंपनियों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं. मरीजों को यह बताया जाता है कि लेंस का एमआरपी 8,000 से 10,000 रुपये है, लेकिन सरकारी अस्पताल होने की वजह से छूट दी जा रही है. जबकि, इन लेंस की वास्तविक कीमत 500 से 1,000 रुपये ही होती है.ओसीटी और एंजियोग्राफी मशीन खराब :
रिम्स के नेत्र विभाग में ओसीटी और एंजियोग्राफी मशीन खराब है. इस कारण मरीजों को जांच के लिए निजी अस्पताल या क्लिनिक में जाना पड़ता है. निजी जांच घरों में जांच कराने पर 500 से 1000 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, जबकि रिम्स में यह जांच नि:शुल्क हो जाती है. इसके अलावा कई मशीनें काफी पुरानी हो चुकी हैं, जो बीच-बीच में खराब होती रहती हैं.10 साल में भी तैयार नहीं हो पाया क्षेत्रीय नेत्र संस्थान :
रिम्स में क्षेत्रीय नेत्र संस्थान का निर्माण वर्ष 2014 से चल रहा है, लेकिन अब तक यह तैयार नहीं हो पाया है. यह भवन 36.29 करोड़ में बनना था, लेकिन इसका एस्टीमेट बढ़ कर अब 76 करोड़ के करीब पहुंच गया है. फिर से इसका डीपीआर बनाया गया है. इसमें पुनरीक्षित प्राक्कलन राशि के रूप में 39.50 करोड़ रुपये जोड़े गये हैं. वहीं, भवन निर्माण में हो रही देरी के बाद निदेशक डॉ राजकुमार ने नयी एजेंसी को अधिकतम छह महीने में बिल्डिंग तैयार कर हैंडओवर करने का निर्देश दिया है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है