किशनगंज.देश को भले ही पोलियो मुक्त घोषित किया जा चुका है लेकिन आदिवासी इलाकों में अभी भी पोलियो से मिलती-जुलती बीमारी के लक्षण मिल रहे हैं. उम्र बढ़ते ही बच्चों के शरीर के अंग लुंज पड़ जाते हैं. स्वास्थ्य विभाग इसे एएफपी (एक्विट फ्लीड पैरालिसिस) लुंज लकवा की बीमारी मान रहा है. बच्चों के पैर-हाथ के अलावा गर्दन, मुंह और स्पाइनल बोन में ये बीमारी मिल रही है. इससे शरीर का अंग पूरी तरह लुंजपुंज हो जाता है. काम करना बंद कर देता है.
किसी भी उम्र के लोगों में एकाएक लुंजपुंज लकवा, खसरा या रुबेला, गलघोटू, काली खांसी या नवजात टेटनस से संबंधित लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अपने नजदीकी सरकारी अस्पताल या डब्लूएचओ के पदाधिकारी को सूचना दे. कार्यक्रम की सफलता के लिए जिले के किशनगंज ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एएफपी, खसरा और रूबेला एवं टीका रोधक बीमारी पर प्रखंड स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें जिले के जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में कार्यशाला का आयोजन किया गया है.कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिले में पदस्थापित डब्लूएचओ के एसएमओ डॉ प्रीतम घोष ने इन बीमारियों से संबंधित लक्षण पर कहा कि पिछले 6 माह के दौरान 15 वर्ष तक के बच्चे में अचानक शरीर के किसी भी हिस्से में कमजोरी अथवा किसी भी उम्र के व्यक्ति में लकवा जिसमें पोलियो की आशंका, बुखार के साथ चकत्ते या लाल दाना अथवा खसरा संक्रमण का संदेह होना, गले या टान्सिल में दर्द होना या खांसी के साथ आवाज का भारी होना, काली खांसी के तहत खांसी का लगातार होना, खाने के बाद सांस लेने की जोरदार आवाज होना, खाने के तुरंत बाद उल्टी होना होता है. वहीं नवजात टेटनस के तहत नवजात शिशु जो जन्म के 2 दिन तक ठीक से मां का दूध पी रहा था एवं सामान्य रूप से रो रहा था लेकिन तीसरे दिन से 28 दिन के बीच में मां के दूध का पीना बंद कर दिया हो तथा शरीर अकड़ने लगा और झटके आने लगे तो तुरंत नजदीकी अस्पताल को सूचना दें,खसरा, रूबेला, डिप्थीरिया, प्रटुसिस एवं नवजात टेटनस के संबंधित केस को तत्काल रिपोर्ट कर उसकी जांच करने के लिए बताया. इस कार्यक्रम में यूनिसेफ के एसएमसी एजाज अफजल , प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी एवं बीएचएम् अजय साह सभी एएनएम् तथा स्वास्थ्य कर्मी उपस्थित थे.
खसरा-रूबेला के ये हैं लक्षण
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया कि खसरा वायरस विश्व के सबसे संक्रामक मानव विषाणुओं में से एक है, जिस कारण प्रतिवर्ष 1,00,000 से अधिक बच्चों की मौत होती है. रूबेला जन्म संबंधी विकार है और इसे वैक्सीन की मदद से रोका जा सकता है. किसी भी उम्र के व्यक्ति को बुखार के साथ लाल दाना हो अथवा कोई भी व्यक्ति जिसमें एक चिकित्सक खसरा-रूबेला संक्रमण का संदेह करता है, उसकी तत्काल जांच कराएं. मरीज की जांच करते वक्त इन बातों का ध्यान रखें. 9 महीने से लेकर 15 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को उनके पिछले खसरा, रूबेला टीकाकरण के बावजूद एक मिजिलस का टीका लगाया जाता है.
डिप्थेरिया की ऐसे करें पहचान
उन्होंने बताया की यदि किसी भी उम्र के व्यक्ति को बुखार, गले या टॉन्सिल में दर्द हो रहा हो लाल हो गया हो, खांसी के साथ आवाज भारी हो गई हो और टॉन्सिल या उसके आसपास सफेद ग्रे रंग की झिल्ली हो तो यह डिप्थेरिया हो सकता है. चिकित्सकों को इसकी जांच में देरी नहीं करनी चाहिए.काली खांसी को पहचानें
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया की किसी भी उम्र का ऐसा व्यक्ति जिसे कम-से-कम दो सप्ताह से खांसी हो रही हो या फिर खांसी का लगातार होना, खाने के बाद सांस लेने की जोरदार आवाज होना, ये सब काली खांसी के लक्षण हैं. इसके अलावा खाने के तुरंत बाद उल्टी होना एवं अन्य स्पष्ट चिकित्सकीय कारण ना होना अथवा शिशुओं में खर्राटे के साथ किसी भी अवधि की खांसी होना देखते हैं तो उसकी जांच करा लेनी चाहिए.इसे कहते हैं नवजात टेटनेस ऐसा नवजात शिशु जो जन्म के दो दिन तक ठीक से मां का दूध पी रहा था एवं सामान्य रूप से रो रहा था, लेकिन तीसरे दिन से 28 दिन के बीच में मां का दूध पीना बंद कर दिया हो, शरीर अकड़ने लगा हो और झटके आने लगे हो तो नवजात को टेटनेस हो सकता है. ने बताया कि फिजिशियन के पास हर तरह के केस आते हैं, इसलिए इन लक्षणों पर गौर करें और उसकी जांच कराकर इलाज करें.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है