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प्रतिरोध लिखने की संस्कृति विकसित करनी हाेगी, व्यवस्था को मिलेगा आयाम

शहर की एपी कॉलोनी स्थित रेनसांस भवन में रविवार को गया सहित अन्य जिलों से साहित्यकार जुटे. मौका था साझी विरासत के नाम थीम पर साहित्यिक विचार व कवि गोष्ठी के आयोजन का.

गया. शहर की एपी कॉलोनी स्थित रेनसांस भवन में रविवार को गया सहित अन्य जिलों से साहित्यकार जुटे. मौका था साझी विरासत के नाम थीम पर साहित्यिक विचार व कवि गोष्ठी के आयोजन का. पहले सत्र में प्रतिरोध की संस्कृति व लेखक पर वक्ताओं ने कहा कि प्रतिरोध लिखने की संस्कृति विकसित करनी होगी, ताकि व्यवस्था को नया आयाम मिले. वर्तमान में सही पढ़ने की संस्कृति कैसे बने इसपर चिंतन की आवश्यकता है. हमारा समय विभाजनों का है, ये थोपे जा रहे, ये अकेलापन ला रहा है. जिससे लोग हिंसक हो रहे. हम सभी के सामने समाज व देश को बचाने की लड़ाई है. प्रतिरोध छोटे स्थान से बड़ा रूप ले सकता है. बशर्तें इसे चैनेलाइज करने की जरूरत है. वहीं प्रतिरोध लेखन में चिंतन पर बल दिया. कहा चिंतन मानवतावादी स्वरूप को विकसित करता है. वैचारिक सत्र के अध्यक्ष ‘हंस’ पत्रिका के संपादक और कहानीकार संजय सहाय थे. कहा प्रतिरोध की जिम्मेदारी सबके लिए जरूरी, हर चेतना संपन्न व्यक्ति को अन्याय का प्रतिकार करना चाहिए. लिखना एक प्रतिकार का रूप है. यादवेंद्र ने दुनियाभर के प्रतिरोध के स्वरूपों पर बातचीत की. महेश कुमार ने जनता के सामूहिक मुद्दों को पहचानने की बात की. अली इमाम ने अल्पसंख्यक समूहों के मुद्दों पर कहा कि जिनका सबसे ज्यादा तुष्टिकरण किया गया उनकी हालत ही सबसे ज्यादा खराब है. जलेस के जिला अध्यक्ष कृष्णचन्द्र चौधरी ने साझी संस्कृति को सहेजने पर जोर दिया. दूसरे सत्र में गया कॉलेज के सहायक प्रो श्रीधर करुणानिधि ने जल-जंगल-जमीन की लूट पर अपनी रचनाएं पढ़ीं. कवि अरविंद पासवान ने पूंजीवाद के विकृत स्वरूप और आंबेडकर के महत्व पर रचनाएं पढ़ीं. अंचित ने ‘प्रेमिका का भाई’ रचना से मध्यवर्ग के पुरुषों की मानसिकता को बताया. प्रलेस के जिला सचिव परमाणु कुमार ने जनसरोकार व ट्विंकल रक्षिता ने अपनी रचना के माध्यम से स्त्रियों की दुर्दशा और दैहिक विमर्श को मार्मिक की प्रस्तुत दी. बालमुकुंद ने मैथिली कविता पढ़ी जिसमें युवाओं की चिंता, देश की बदलती परिस्थितियों पर गंभीर चिंतन शामिल था. कवयित्री चाहत अन्वी ने अपनी कविताओं में बच्चों की दुनिया की भयावहता को रेखांकित किया. उन्होंने ‘फूल जान’ कविता से वंचित समुदाय के बच्चों की चिंताओं को स्वर दिया. सत्येंद्र कुमार ने अपनी मगही कविताओं के माध्यम से महंगाई, पेपर लीक, कालाबाजारी व अन्य मुद्दों पर महत्वपूर्ण रचना ‘बतरहवा बैंगन’ पढ़ी. वैचारिक सत्र का सत्र का संचालन चाहत अन्वी ने व काव्य पाठ का संचालन कवि प्रत्यूष चंद्र मिश्रा ने किया.

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