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संस्कार विहीन घर में विवाह से संतान अनुकूल नहीं

सिंगरा में अमानत नदी तट पर चातुर्मास व्रत कथा में जीयर स्वामी ने कहा

मेदिनीनगर. निगम क्षेत्र के सिंगरा में अमानत नदी के तट पर चातुर्मास व्रत कथा के दौरान जीयर स्वामी ने कहा कि जिस घर में धनवान हों, विद्वान हों, लेकिन संस्कार नहीं है. उस घर में विवाह नहीं करना चाहिए. संस्कार विहीन घर में शादी करने से संतान अनुकूल नहीं होगी. पुलस्तय ऋषि के नाती विश्रवा ऋषि की पहली शादी से कुबेर जी का जन्म हुआ. दूसरी शादी राक्षस कुल की कैकसी से हुई. जिससे रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा जैसे वंश हुए. चूंकि कैकसी का संस्कार राक्षस कुल से था, इसलिए रावण विद्वान, बुद्धिमान होते हुए भी राक्षसी कर्म करता था. इसलिए कभी भी शादी-विवाह अच्छे कुल-खानदान और संस्कारी घर की बालिका से करना चाहिए. पहले माताएं मर्यादा का पालन करती थीं, तो उनके वंश भी मर्यादित और संस्कारी होते थे. हर जीव का नाश, मृत्यु अपने अंदर छिपे दोष के कारण होता है.

कथा को व्यापार बनाना गलत परंपरा :

जीयर स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान में कथा कहने के लिए टेंडर, पैकेज, फीस लिये जा रहे हैं. पहले पैसा खाता में डालिये, तो कथा होगी, यह गलत परंपरा है. वेद व्यास व तुलसी दास ने कोई फीस नहीं ली और वेद, शास्त्र, मानस की रचना कर दी. कथा को व्यापार बना दिया गया, जो गलत है. कथा के लिए श्रद्धा से जो मिल जाये, उसी में कथा होना चाहिए. कथा कहने का स्वरूप ही बदल गया है. अब तो मंच पर ही डांस, नाच होने लगा है, जो नहीं होना चाहिए. कथा रंजन के लिए है, मनोरंजन नहीं. उन्होंने कहा कि प्रेत योनि तंत्र-मंत्र विद्या है. इसका हजारों साल पहले लिखे गये शास्त्रों में वर्णन मिलता है. सभी धर्मों में तंत्र-मंत्र विद्या का प्रयोग होता है. लेकिन तंत्र-मंत्र विद्या से किसी के ऊपर काली मां, किसी पर दुर्गा मां तो किसी पर हनुमान जी, भैरव आते हैं, ये सब ढकोसला है. बकवास है. कितने संत-महात्मा ने पूजा-पाठ, तपस्या करते उम्र बिता दी. उन पर दुर्गा, काली नहीं आयीं. उन्हें केवल झांकी का दर्शन हुआ. कृष्ण जी ने अर्जुन को उपदेश दिया था कि देवता को पूजने वाला देवता, भूत-प्रेत को पूजने वाला भूत-प्रेत योनि में जन्म लेता है. इससे स्पष्ट है कि तंत्र-मंत्र विद्या पहले भी था. स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य का ईश्वर के प्रति समर्पण ही भक्ति होती है और जब भक्ति आती है, तो सारा संसार ईश्वरीय प्रकट होने लगता है. भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है, तो वह भोजन न होकर प्रसाद बन जाता है. भक्ति जब मनुष्य में आती है, तो वह भक्त बन जाता है. भक्ति जब नारी में प्रवेश करती है, तो वह सती अनुसूइया, मीरा और शबरी बन जाती है और हर नारी देवी स्वरूपा प्रकट होती है.

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