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सुखद है भारतीय स्टार्टअप की घर वापसी

भारत की मजबूत वृद्धि घरेलू स्टार्टअप के रूप में 'रिवर्स फ्लिपिंग' की प्रवृत्ति को जन्म दे रही है, जो कभी पूंजी तक पहुंच और कर लाभ के लिए विदेश जाते थे, अब घर लौट रहे हैं.

ऐसी खबरें आयी हैं कि कई भारतीय स्टार्टअप, जो पहले विदेशों में फ्लिप कर गये गये थे, अब भारत लौट रहे हैं. किसी भारतीय कंपनी के फ्लिपिंग का मतलब है, एक ऐसा लेन-देन जिसमें प्रमोटर किसी विदेशी क्षेत्राधिकार में अपनी कंपनी को पंजीकृत करता है, जिसे फिर भारत में स्टार्टअप कंपनी की होल्डिंग कंपनी बना दी जाती है. परिणामस्वरूप, भारतीय स्टार्टअप का अंतिम स्वामित्व विदेशी क्षेत्राधिकार में चला जाता है. इसलिए रिवर्स फ्लिपिंग का अर्थ है, वे स्टार्टअप जिन्होंने अपनी मालिकाना कंपनियों को विदेशी क्षेत्राधिकार में शामिल किया था, वे स्वामित्व को वापस भारत ला रहे हैं. जिन महत्वपूर्ण स्टार्टअप्स ने वापस फ्लिप किया है, उनमें फोन पे और ग्रो शामिल हैं. फ्लिपकार्ट के साथ ही जेप्टो और रेजर पे भी वापस फ्लिप करने का प्रयास कर रहे हैं.

फ्लिप करने वालों के पसंदीदा गंतव्य सिंगापुर, मॉरीशस, केमैन आइलैंड और ब्रिटेन थे. जबकि भारतीय स्टार्टअप फ्लिपिंग के माध्यम से भारत के विनियामक दायरे से बाहर हो गये थे, उन्होंने अब एक व्यावसायिक रणनीति के रूप में ‘रिवर्स फ्लिपिंग’ के माध्यम से भारतीय विनियामक ढांचे के तहत आना चुना है. फ्लिप करने वाले स्टार्टअप वे हैं जिनके प्रमोटर भारत से हैं और उन्होंने भारतीय संसाधनों- मानव, पूंजी और सरकारी सहायता से अपना कारोबार खड़ा किया.

उनके फ्लिप करने का पहला कारण है कि वे भारतीय नियामक प्रणाली, भारतीय कर कानूनों और भारतीय अधिकारियों की जांच से बचना चाहते थे. दूसरा, विभिन्न अंतरराष्ट्रीय निवेशक उन कंपनियों को विदेश में फ्लिप करने के लिए मजबूर करते हैं जहां वे अपना पैसा लगाते हैं. तीसरा, अमेरिका, सिंगापुर जैसे कई देशों ने स्टार्टअप और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई अनुकूल नीतियां बनायी हैं.

चौथा, ये स्टार्टअप अपने शेयरों को विदेश में सूचीबद्ध करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अभिनव विचारों को बेहतर मूल्यांकन मिलता है. स्पेशल पर्पस एक्विजिशन कंपनी एक ऐसा मॉडल है जिसने कई स्टार्टअप को अपनी होल्डिंग कंपनियों को अमेरिका में सूचीबद्ध करने के लिए आकर्षित किया है. पांचवां, कराधान के मामले में भारतीय घरेलू निवेशकों के लिए समान अवसर की कमी, जिससे विदेशी निवेशकों ने भारतीय निवेशकों की तुलना में अधिक लाभ उठाया.

भारत से कंपनियों के फ्लिपिंग का पहला और सबसे बड़ा नुकसान संपत्ति और आय पैदा करने वाली संपत्ति का है. जब कोई भारतीय कंपनी विदेशी क्षेत्राधिकार में शामिल किसी कंपनी की सहायक कंपनी या एक विदेशी कंपनी बन जाती है, तो सरकार न केवल पूंजीगत लाभ कर राजस्व का अवसर खो देती है, बल्कि स्टॉक एक्सचेंजों पर कंपनी की लिस्टिंग से संभावित पूंजी निर्माण से भी वंचित हो जाती है. दूसरा, देश की बौद्धिक संपदा विदेशी देशों को हस्तांतरित हो जाती है और डेटा पर अधिकार भी विदेशियों को मिल जाता है.

बौद्धिक संपदा में भविष्य की वृद्धि और विस्तार के सभी लाभ भी विदेशी देशों को हस्तांतरित हो जाते हैं. तीसरा, फ्लिप करने वाले स्टार्टअप भारतीय कर क्षेत्राधिकार और अन्य विनियामक ढांचे से बाहर हो जाते हैं और इस तरह वे अपने भारतीय समकक्षों पर बढ़त हासिल कर लेते हैं. चौथा, चूंकि फ्लिप किये गये स्टार्टअप का मुख्यालय विदेश में होता है, इसलिए उनके फंड के स्रोत को जानना मुश्किल हो जाता है. यह देश के लिए एक बड़ा सुरक्षा जोखिम है. पांचवां, हमारे स्टार्टअप के फ्लिप करने का नुकसान यह भी है कि इससे भारतीय शेयर बाजार की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

सरकार का दावा है कि भारत की मजबूत वृद्धि घरेलू स्टार्टअप के रूप में ‘रिवर्स फ्लिपिंग’ की प्रवृत्ति को जन्म दे रही है, जो कभी पूंजी तक पहुंच और कर लाभ के लिए विदेश जाते थे, अब घर लौट रहे हैं. विकास और तकनीकी विकास के साथ, कई अन्य कारण भी हैं, जो इस रिवर्स फ्लिपिंग को चलाते हैं. भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम ने पिछले एक दशक में महत्वपूर्ण परिपक्वता प्राप्त की है. अब उद्यमियों के लिए अधिक सहायक वातावरण है, फंडिंग, प्रतिभा और बुनियादी ढांचे तक बेहतर पहुंच है.

सरकार द्वारा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और व्यापार करने में आसानी के लिए कई पहलें की गयी हैं. भारत अपने विशाल और बढ़ते उपभोक्ता बाजार के कारण तेजी से व्यवसाय शुरू करने और विस्तार करने के लिए एक पसंदीदा गंतव्य बनता जा रहा है. भारत की उद्यम पूंजी और निजी इक्विटी पारिस्थितिकी तंत्र भी काफी विकसित हुआ है, जो पूंजी की तलाश करने वाले स्टार्टअप के लिए फंडिंग के अवसर प्रदान करता है. पहले घरेलू वीसी के लिए समान अवसर की कमी थी क्योंकि वे विदेशी समकक्षों की तुलना में अधिक कर का भुगतान कर रहे थे.

परंतु वित्त अधिनियम 2021-22 के माध्यम से सरकार ने भारतीय वीसी के लिए भी पूंजीगत लाभ पर अधिभार 37 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया है. गिफ्ट सिटी की नीति से स्टार्टअप परिदृश्य में भी बड़ा बदलाव आया है क्योंकि उन्हें अपने शेयरों को विदेशों में सूचीबद्ध करने के लिए फ्लिप नहीं करना पड़ता है. वे गिफ्ट सिटी के माध्यम से एैसा कर सकते हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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