जमशेदपुर: राष्ट्रीय स्तरीय आदिवासी युवा महोत्सव का आयोजन इस बार चाईबासा में 13 और 14 जुलाई को हो रहा है. इस महोत्सव का आयोजन आदिवासी हो समाज महासभा कला एवं संस्कृति भवन हरिगुटू में किया जा रहा है. इसमें देश के विभिन्न राज्यों से 2500 से अधिक युवा शामिल होंगे. यह महोत्सव आदिवासी समुदाय के युवाओं के लिए अपनी मातृभाषा, शिक्षा और सामाजिक दस्तूरों के प्रति गहरे चिंतन और मंथन का अवसर प्रदान करेगा. यह जानकारी आदिवासी हो समाज महासभा के राष्ट्रीय महासचिव-गब्बर सिंह हेंब्रम ने दी. उन्होंने बताया कि आधुनिक कंप्यूटर युग में आदिवासी समाज के युवा अपनी मेहनत और लगन के बल पर हर क्षेत्र में प्रगति कर रहे हैं. वे सरकारी और गैर-सरकारी बड़े पदों पर भी आसीन हो रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद, अपने समाज की पारंपरिक रीति-रिवाज, नाच-गान और बोल-चाल को भूलते जा रहे हैं, इससे समाज की पहचान खतरे में पड़ रही है. उन्होंने बताया कि इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य समाज के युवाओं को उनके मूल पहचान और संस्कृति की याद दिलाना है. यह उन्हें प्रेरित करेगा कि वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ें, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहें. अपने समाज की पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजकर रखना, उनका संवर्धन करना और उन्हें नई पीढ़ी तक पहुंचाना इस आयोजन का मुख्य मकसद है. इस महाजुटान में युवा अपने-अपने समाज की समस्याओं, उनके समाधान और संरक्षण के उपायों पर विचार-विमर्श करेंगे. यह महोत्सव आदिवासी समाज के युवाओं को एकजुटता का संदेश देगा और उन्हें अपनी संस्कृति के संरक्षण का संकल्प दिलाएगा. महासभा का मानना है कि यदि युवा अपनी संस्कृति से जुड़कर आगे बढ़ेंगे, तो समाज भी उनके साथ प्रगति करेगा और उनकी पहचान बरकरार रहेगी.
पारंपरिक खेल प्रतियोगिता होगा आकर्षण का केंद्र
आदिवासी युवा महोत्सव का शुभारंभ पारंपरिक रीति-रिवाज से पूजा अर्चना के साथ होगा. दो दिवसीय आदिवासी युवा महोत्सव में सेकोर इनुंग, जोनो गलं, जाटी गलं, चिटकी-पुःउ, बडजोम बयर उंञ, बोड़ पटः, सेंगेल-गुरतुई, बबा-रूंग, जाटि-गलं, रूतु-बनम, दुरंग,चुर इनुंग इत्यादि सांस्कृतिक तथा पारंपरिक खेलकूद का भी आयोजन होगा. इनके विजेताओं को सम्मानित किया जायेगा.
अपनी संस्कृति को भूल जाएंगे, तो हमारी पहचान मिट जायेगी
आदिवासी “हो” समाज के राष्ट्रीय महासचिव गब्बरसिंह हेंब्रम ने ग्रामीणों को जागरूक करते हुए कहा कि आज के समय में लोग व्यक्तिगत रूप से आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्र में तो प्रगति कर रहे हैं, लेकिन उनकी अपनी मूल-संस्कृति से दूरी बढ़ती जा रही है. यह एक गंभीर समस्या है. लोग आजकल अपनी भाषा और संस्कृति के लिए समय नहीं निकाल पाते और गैर आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. मूल-संस्कृति हमारी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है, जिसे हमें संरक्षित और संजोए रखना चाहिए. आर्थिक और शैक्षणिक प्रगति आवश्यक है, लेकिन इसके साथ ही अपनी भाषा, रीति-रिवाज और परंपराओं को भी जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है. अगर हम अपनी संस्कृति को भूल जाएंगे, तो हमारी पहचान खो जाएगी.
उन्होंने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें अपनी संस्कृति के लिए समय निकालना होगा। अपनी भाषा में बातचीत करना, अपने त्योहार मनाना और अपनी परंपराओं को समझना और उन्हें आगे बढ़ाना आवश्यक है. गब्बरसिंह हेंब्रम का यह संदेश हमें याद दिलाता है कि विकास के साथ-साथ हमें अपनी जड़ों को भी नहीं भूलना चाहिए. अपनी संस्कृति की सुरक्षा और संवर्धन के लिए हमें एकजुट होकर प्रयास करना होगा.
Advertisement
चाईबासा में आयोजित आदिवासी युवा महोत्सव में देशभर के 2500 युवाओं का होगा जुटान
आज के समय में लोग व्यक्तिगत रूप से आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्र में तो प्रगति कर रहे हैं, लेकिन उनकी अपनी मूल-संस्कृति से दूरी बढ़ती जा रही है. यह एक गंभीर समस्या है. लोग आजकल अपनी भाषा और संस्कृति के लिए समय नहीं निकाल पाते और गैर आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. मूल-संस्कृति हमारी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement