केंद्रीय खनन व ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) ने इको फ्रेंडली पोर्टेबल लिक्विड ट्री विकसित किया है. यह पर्यावरण संरक्षण में मील का पत्थर साबित हो सकता है. प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के निर्देश पर सिंफर के डिगवाडीह ब्रांच की टीम ने इस प्रोजेक्ट को विकसित किया है. पहले फेज में इस लिक्विड ट्री को एयरपोर्ट, बड़े स्टेशनों पर लगाया जायेगा. कुछ दफ्तरों, जहां लोगों की ज्यादा आवाजाही होती है, में भी इसे लगाने की योजना है. वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ वी अंगुसेल्वी कहते हैं, ‘यह ट्री पूरी तरह सुरक्षित है. कहीं भी इसका उपयोग कर सकते हैं. इसमें बिजली के जरिये एक सामान्य तापमान मेंटेन करना पड़ता है.’
छह माह में विकसित किया लिक्विड ट्री :
स्मार्ट अलगोल लिक्विड ट्री (साल्ट) को सिंफर डिगवाडीह ब्रांच की टीम ने वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ वी अंगुसेल्वी के नेतृत्व में छह माह में विकसित किया है. इस प्रोजेक्ट में रोज कुछ न कुछ अनुसंधान चल रहा है. स्मार्ट अलगोल लिक्विड ट्री सामान्य पौधों से जल्द बड़ा होता है. इसे मछली के एक्वेरियम की तहत बाॅक्स में विकसित किया जाता है. सामान्य आंखों से इसके अंदर पनपे पौधे को नहीं देखा जा सकता है. बायस्कोप से ही इसको देख सकते हैं. साथ ही यह सामान्य पेड़ की तुलना में 15 गुना ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर करता है. यह पूरी तरह नॉन टॉक्सिक है. यह हवा को जल्द शुद्ध करता है. मोबाइल की तरह इस लिक्विड पेड़ को कहीं भी शिफ्ट किया जा सकता है. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसका ट्रायल सफल रहा है.भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में रहेगा कारगर :
स्मार्ट अलगोल लिक्विड ट्री (साल्ट) को भीड़-भाड़ वाले इलाके में लगाने से ज्यादा लाभ होगा. इसकी निर्माण लागत भी काफी कम है. एक इंस्ट्रूमेंट के निर्माण पर 20 से 25 हजार रुपये तक का खर्च आता है. यह एक तरह से एयर प्यूरिफायर की तरह काम करता है. हवा जितनी शुद्ध होगी, प्रदूषण उतना ही कम होगा.झरिया के कुछ इलाकाें में शुरू किया गया है इस्तेमाल :
लिक्विड ट्री के कुछ अंश को एक थैली में डाल कर उसे टोटो, ऑटो के पीछे लगा कर झरिया के कुछ क्षेत्रों में घुमाया जा रहा है. यह अभियान सोमवार से शुरू किया गया. जानने की कोशिश की जा रही है कि यह प्रदूषण नियंत्रण में कितना कारगर है.कोट
स्मार्ट अलगोल लिक्विड ट्री (साल्ट) काफी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है. सरकार के निर्देश पर सिंफर की टीम ने इसे तैयार किया है. छह माह में ही पायलट प्रोजेक्ट का काम पूर्ण हो गया है. अब भी इस पर कई प्रकार से काम हो रहा है.डॉ वी अंगुसेल्वी,
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