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अब तक महज 3 प्रतिशत हुई धनरोपनी

जिले में इस साल धान की रोपनी का काम पिछड़ता दिख रहा है.हालांकि जुलाई महीने में अभी तक में औसतन 89.42मिमी बारिश रिकार्ड की गई है

फाइल-14- बारिश के साथ ही धान की रोपनी हुई शुरू, जिला में अभी तीन प्रतिशत हुई रोपनी

– बारिश लेट से होने के कारण घान के रोपनी लेट से हुआ शुरू

– 177 सरकारी नल कूप खराब होने के कारण किसानों को बारिश के सहारे है खेती

फोटो-6- धान की रोपनी

फोटो-7- राजकीय नलकूप

रिपोर्टर – प्रशांत कुमार राय

बक्सर. जिले में इस साल धान की रोपनी का काम पिछड़ता दिख रहा है.हालांकि जुलाई महीने में अभी तक में औसतन 89.42मिमी बारिश रिकार्ड की गई है, जो जरूरत के अनुसार फिलहाल 51.60प्रतिशत कम है.हालिया बारिश धान रोपनी के कार्य में संजीवनी का काम कर रहा है लेकिन जानकारों की माने तो रोपनी का काम काफी पिछड़ा हुआ है. गौरलतब हो कि इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा जिले में 96229.32 हेक्टेयर भूमि में धान रोपनी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. लेकिन लक्ष्य के अनुरूप अब तक 3373हेक्टेयर भूभाग में धान की रोपनी हो गई है. यानी जिले में अब तक सिर्फ तीन प्रतिशत ही रोपनी का काम पूरा हो सका है. रोपनी में पिछड़ने से इसका सीधा व प्रतिकूल असर उत्पादन पर पड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है. हालांकि अब भी उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में रोपनी के काम में तेजी आएगी और फिर क्षतिपूर्ति अब भी संभव है लेकिन सब कुछ मानसून के आगे के रूख पर निर्भर कर रहा है. सबसे अच्छी बारिश इस महीने में सदर प्रखंड में 181.2 तथा सबसे कम इटाढी 105.0 में मिलीमीटर दर्ज की गई है. वही ब्रह्मपुर 147.8बक्सर 181.2 चककी 128.4 चौगाई 133.2 चौसा 109.2 डुमराँव 134.6 इटाडी 105.0 केसठ 156.8 नवानगर 129.8 राजपुर108.9 सिमरी 156.3 मिलीमीटर बारिश हुई है. हालांकि इस बार भी अभी तक जरूर से कम वर्षा हुई है लेकिन अभी भी इस महीने मे आधे से अधिक दिन बाकी है. मौसम विभाग के अनुमानके अनुसार आने वाले दिनों में अच्छी बारिश की संभावना जताई जा रही है. खेती किसानी के लिए जून के पिछले पखवाड़े से लेकर जुलाई का पूरा महीना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार जून का महीना पूरी तरह से सख्त और गर्म रहा है. हालांकि जुलाई आते ही मौसम का मिजाज पूरी तरह से बदला. बारिश से भू गर्भीय जलस्तर में आया सुधार बारिश नहीं होने से खेती किसानी के साथ-साथ पीने की पानी की भी समस्या उत्पन्न होने लगी थी. धरती का पानी पाताल का रूख करने लगा था. जिले के अधिकांश हिस्से में भूगर्भीय जलस्तर 50 फीट से भी नीचे चला गया था.

.लेकिन जुलाई महीने में हुई बारिश से भूमिगत जल स्तर में सुधार आया है.जिससे बंद बोरिंग अब काम करने लगे हैं. कई बंद पड़े चापाकल भी अब पानी देने लगे हैं. भूजल स्तर में सुधार आने से मोटर पंप सेट के सहारे खेती किसानी के लिए सिंचाई का काम सगम हो गया है शुरुआती दौर में बारिश नहीं होने के कारण रोहिणी नक्षत्र में धान के बिचड़े लगाना काफी कठिन कार्य था. जो किसान रोहिणी और आद्रा नक्षत्र में धान के बिचड़े लगाए थे, उसे बचाने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में हुई अच्छी बारिश के बाद बिचड़े की अब रोपनी शुरू हो गई है. फिर भी कुल मिलाकर इस साल अब तक रोपनी की हालत निराशाजनक रही है.

जिले के 177 राजकीय नलकूप बंद होने के कारण धान कि रोपनी हो रही है प्रभावित

जिले के 177 राजकीय नलकूप बंद हो कारण किसानों को परेशानी का सामना करना पड रहा है एक तरफ राज्य व केंद्र सरकार का कहना है कि किसानों को लाभ पहुंचाए बिना देश का विकास संभव नहीं है. वहीं दूसरी तरफ सरकारी स्तर पर सिचाई की कोई व्यवस्था नहीं होने से किसान साल दर साल कर्ज तले डूबते जा रहे हैं. बारिश नहीं होने पर किसानों के लिए वरदान साबित होने वाले ये सरकारी नलकूप इन दिनों किसानों के लिए सफेद हाथी साबित हो रहा है. जिले के 177 राजकीय नलकूप वर्षों से बंद पड़ा हुआ है. जिसको चालू कराने के लिए विभाग के द्वारा आजतक कोई सकारात्मक पहल करते नहीं देखा जा रहा है. जिले सरकारी नलकूप का है जो वर्षों से खराब होकर बंद हो चुका है. जिससे क्षेत्र के किसानों को सरकारी स्तर पर लगाए गए नलकूप से सिचाई का लाभ नहीं मिल पा रहा है.नलकूप बंद होने के कारण किसानों को फसल की पटवन करने में भारी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है.बड़े किसान तो अपने डीजल पंपसेट से और बिजली से फसलों की सिचाई कर लेते हैं, लेकिन जिले छोटे किस्म के किसानों के सामने सिचाई एक बहुत बड़ी जटिल समस्या बनी हुई है. खेतों की सिचाई करने में उनकी जेब ढीली हो जाती है.खेती में घाटा हो जाने से बैंक से लिया गया ऋण का कर्ज भी चुका नहीं पाते है और अक्सर वे कर्ज में डूब जाते हैं. उन्हें दूसरों के डीजल पंप सेट से प्रति घंटा दो सौ रुपये की दर से खेत में पानी पटवन करनी पड़ती है. किसान आर्थिक तंगी के कारण डीजल पंप सेट से पटवन नहीं कर पाते है. जिससे उनकी खेत में लगे फसल सूख जाती है. ऐसी स्थिति में किसानों के लिए खेती करना घाटे का सौदा साबित हो रहा है.

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