बिरौल. एक ओर जहां इलाके के लोग बाढ़ व बारिश के पानी से त्रस्त हैं, वहीं दूसरी ओर सुपौल बाजार, बलिया, लदहो, पोखराम, सहसराम गांव से बह रही कमला नदी पानी बिन सूखी पड़ी है. आषाढ़ जैसे बरसात के महीने में इसकी स्थिति चर्चा में है. स्थानीय रामबाबू महथा, बलराम टिकरिवाल, संजीव झा आदि बताते हैं कि लगभग 10 साल पूर्व तक इस नदी में इतना पानी हुआ करता था कि यह लोगों के दैनिक कार्यों का सहारा हुआ करती थी. लोग यहां कपड़े धोते थे. बर्तन साफ किया करते थे. खुद स्नान करते व पशुओं को भी नहलाते-पानी पिलाते थे. साथ ही कृषि के लिए यह नदी एक जीवनरेखा मानी जाती थी. इस नदी से खेतों की सिंचाई होती थी. आज स्थिति बिल्कुल उलट है. कमला नदी अब खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. नदी में केवल बारिश का पानी ही दिखाई देता है, जो किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं है. नदी की बदहाली के कई कारण हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित जल दोहन प्रमुख है. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से वर्षा का पैटर्न बदल गया है. वहीं दूसरी ओर मुख्य नदी से इसमें पानी का आवक बंद हो गया है. अतिक्रमण व देखरेख का अभाव भी वजह बतायी जा रही है.
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