दरभंगा.संस्कृत विश्वविद्यालय में शनिवार को याज्ञवल्क्य स्मृति में व्यवहार विचार विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी. कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय की अध्यक्षता में दरबार हॉल में संस्कृत विश्वविद्यालय एवं सदविद्या परिपालन ट्रस्ट, चेन्नई के सौजन्य से कार्यक्रम हुआ. कुलपति प्रो. पांडेय ने कहा कि मिथिला-कांची दोनों न्याय की भूमि रही है. दोनों के न्याय शास्त्रों में भी एकरूपता है. कहा कि न्याय शास्त्रों में धर्मशास्त्र की महत्वपूर्ण भूमिका है. न्याय शास्त्र व धर्म शास्त्र के प्रयोग से विधि व्यवस्था सुदृढ़ होती है. कहा कि व्यवहार में दंड की व्यवस्था होनी चाहिए. उद्घाटन भाषण देते हुए प्रोवीसी प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि न्यायिक प्रकिया में संशोधन की जरूरत है. पौराणिक व्यवस्था में बदलाव की दरकार है. कहा कि भारत गर्म मुल्क है, लेकिन व्यवस्था के तहत अधिवक्ताओं को गर्मी के मौसम में भी काला कोट व गाउन पहनना पड़ता है, जो शारीरिक व मानसिक रूप से कष्टकारी होता है. न्याय शास्त्रों में वर्णित व्यवस्था को भी इस मामले में लागू किया जा सकता है. न्याय पाने व दिलाने की एक समय सीमा निर्धारित होनी चाहिये. प्रो. सुरेश्वर झा ने भी याज्ञवल्क्य स्मृति के विभिन्न पक्षों का विस्तार से वर्णन किया. आरओ निशिकांत ने बताया कि चार सत्रों की संगोष्ठी में पूर्व कुलपति प्रो. शशिनाथ झा, प्रो. रामचन्द्र झा, श्रीकृष्णन् वेङ्कटरामन, एआर मुकुन्दन, डॉ आर नवीन ने विचार रखा. वक्ताओं ने कहा कि आज भी याज्ञवल्क्य स्मृति का न्याय व व्यवहार दर्शन प्रासंगिक है. दरभंगा व्यवहार न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम डॉ रमाकांत शर्मा ने कहा कि याज्ञवल्क्य स्मृति व्यवहार ने सम्पूर्ण देश को खासकर न्यायिक क्षेत्र में सभी को एक सूत्र में बांध कर रखा है. याज्ञवल्क्य स्मृति भारतीय विधि शास्त्र की रीढ़ है. न्याय में उनका दर्शन आज भी सापेक्ष्य है. प्रो. राजीव रंजन सिंह, प्रो. इन्द्रनाथ झा, प्रो. श्रीपति त्रिपाठी ने भी याज्ञवल्क्य स्मृति व धर्मशास्त्र के विभिन्न सूत्रों व सूक्तों पर वृहत चर्चा की. प्रो दिलीप कुमार झा के संयोजकत्व में आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों का पाग व चादर से कुलपति प्रो. पांडेय ने स्वागत किया. धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रो. ब्रजेशपति त्रिपाठी ने किया. डॉ धीरज कुमार पांडेय, प्रो. पुरेंद्र वारीक, डॉ सुधीर कुमार झा, डॉ शिवलोचन झा आदि व्यवस्था से जुड़े रहे.
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