वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर रामदयालु सिंह महाविद्यालय के इतिहास विभाग, राजनीति विज्ञान विभाग व पीयूसीएल के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को “भारत में मानवाधिकार: समकालीन विमर्श ” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी. बतौर मुख्य वक्ता पीयूसीएल के अध्यक्ष प्रो.केके झा ने कहा कि मानवाधिकार जन्मसिद्ध अधिकार है. कोई भी इसे छीन नहीं सकता है. मानवाधिकार एक कवच की तरह है जो विपरीत परिस्थिति में मानव की रक्षा करता है. मानव अधिकारों के मूल में सम्मान, समानता, स्वतंत्रता, गैर भेदभाव, सहिष्णुता, न्याय और जिम्मेदारी के महत्त्व को समझने की जरूरत है.
संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों की घोषणा की थी
डॉ रजनीकांत ने कहा कि 1948 में मानवाधिकार घोषणा पत्र के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों की घोषणा की. इसमें जीने का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा, समानता, सूचना पाने व राष्ट्रीयता का अधिकार स्वीकार किए गये थे. इन्हीं बिंदुओं पर लगातार विमर्श की आवश्यकता है. इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ एमएन रिजवी ने अतिथियों का स्वागत किया. प्राचार्य डॉ अनिता सिंह ने नैसर्गिक अधिकार व शिक्षा के अधिकार पर विस्तार से प्रकाश डाला. मंच संचालन डॉ ललित किशोर व धन्यवाद ज्ञापन डॉ अजमत अली ने किया. कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय पेंशनर सेल के अध्यक्ष प्रो.केके सिंह, डॉ अनुपम, डॉ राकेश सिंह, डॉ राजीव, डॉ सौरभ राज, डॉ मनीष शर्मा, डॉ मीनू, डॉ इला, डॉ वंदना, राजेश, विजय तिवारी, मनीष समेत अन्य छात्र-छात्राएं मौजूद थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है