अरविन्द कुमार जायसवाल, बीकोठी. ऐतिहासिक धर्मस्थल बाबा वरूणेश्वर स्थान को सावन सोमवारी को लेकर काफी सजाया जा रहा है. यहां हर सोमवारी को शिव भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है. यहां आराधक बटेश्वर स्थान से जल उठाकर बाबा पर जलाभिषेक करते हैं. पूरे एक माह तक मेला लगा रहता है. दो नदी से घिरे बाबा वरूणेश्वर स्थान की छटा देखते ही बनती है. यहां बाबा स्थान परिसर मे मां काली, शिव गंगा भैरव, बजरंगवली, नंदी, राम लखन सिया मंदिर, सभी को सजाया जा रहा है. यहां कोसी-सीमांचल के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के भी श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आते हैं. किवदंती है कि गाय के झुंड में से एक कपली गाय अलग हटकर प्रत्येक दिन अपना दूध एक जगह खड़ा हो गिराया करती थी. इसकी जानकारी मिलते ही चरवाहा उस गाय पर नजर रखने लगा. एक दिन वह गया दूध गिराते पकड़ी गई .चरवाहे ने लाठी फेंका तो वह किसी ठोस वस्तु से टकरायी. चरवाहे ने देखा कि एक पत्थर है जिससे खून निकल रहा है. इस सूचना पर ग्रामीणों गहराई तक खोदा मगर उसका गहराई का पता नहीं चल पाया. अंत में वहां एक झोपड़ी बना पूजा की जाने लगी. कालांतर में विसनपुर ड्योढ़ी के भूपति मोलचंद ने मंदिर का पक्कीकरण किया. बाद में बिहारीगंज के माता देव नामक मारवाड़ी ने धर्मशाला बनवायी. देवरी गांव निवासी अरुण कुमार झा बताते हैं कि बुजुर्गों के कथनानुसार अज्ञातवास के दौरान पांडव भी वरूणेश्वर आये थे. यहां पांडव पूजा किया करते थे. इतना ही नही श्रृंगी ऋषि के भाई ने यहां आकर साधना की और तब से बाबा वरुणेश्वर स्थान प्रसिद्ध हैं. सवान माह के मेले के दौरान बाबा वरूणेश्वर स्थान विकास समिति मंदिर परिसर और मेला की निगरानी करती है. 22 जुलाई को सावन माह की पहली सोमवारी को जल ढरी है. फोटो. 17 पूर्णिया 10-शिव मंदिर 11- नंदी मंदिर
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