रांची.
भगवान जगन्नाथ बुधवार को मौसीबाड़ी से अपने घर वापस लौट आये. उनके साथ रथ पर बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र भी थे. अवसर था घुरती रथ यात्रा का. इस अवसर पर रथ खींचने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. जय जगन्नाथ प्रभु के जयघोष के साथ शाम चार बजे रथ यात्रा मौसीबाड़ी से मुख्य मंदिर के लिए शुरू हुई. रथ खींचने की परंपरा में श्रद्धालुओं ने 11 कदम पदयात्रा को दोहराया. प्रत्येक 11 कदम पर रथ काे रोककर भगवान जगन्नाथ का जयघोष किया जा रहा था. शाम 06:30 बजे रथ मुख्य मंदिर यानी भगवान जगन्नाथ प्रभु के घर पहुंचा. अगले एक घंटे तक महिलाओं व अन्य श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के दर्शन किये. सूर्यास्त से पहले श्री सुदर्शन चक्र, गरुड़जी, लक्ष्मी नरसिंह, बलभद्र स्वामी, सुभद्रा माता और जगन्नाथ स्वामी को एक-एक कर रथ से मुख्य मंदिर में प्रवेश कराया गया.सुबह छह बजे आरती और सर्वदर्शन
इससे पूर्व मौसीबाड़ी में सुबह छह बजे आरती और सर्वदर्शन की परंपरा शुरू हुई. सुबह आठ बजे जगन्नाथ स्वामी को अन्न भोग लगाया गया. दोपहर 2:50 बजे पूजा संपन्न हुई. इसके बाद एक-एक कर सभी विग्रहों को रथ पर सवार कराया गया. सभी विग्रहों का शृंगार किया गया. दोपहर 3:05 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के बाद श्रीविष्णु सहस्रनाम का पाठ हुआ. पूजा-अर्चना व आरती हुई. शाम चार बजे रथ को मौसीबाड़ी से प्रस्थान कराया गया.माता लक्ष्मी को मनाने के बाद प्रभु को मिला प्रवेश
रथ पर सवार जगन्नाथ स्वामी जैसे ही मंदिर पहुंचे, वहां माता लक्ष्मी से उनका साक्षात्कार हुआ. मुख्य मंदिर में माता लक्ष्मी का गुस्सा चरम पर था. प्रभु जगन्नाथ को देखते ही माता लक्ष्मी मुख्य द्वार पर खड़ी हो गयीं. माता लक्ष्मी के मनमुटाव का कारण था कि भगवान जगन्नाथ उन्हें छोड़कर मौसीबाड़ी चले गये थे. इसके बाद पारंपरिक विधि-विधान से मां लक्ष्मी की नाराजगी दूर की गयी. करीब एक घंटे के मान-मनौव्वल के बाद प्रभु जगन्नाथ को मुख्य मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिली. माता लक्ष्मी और भगवान जगन्नाथ की ओर से पुजारियों ने वाकयुद्ध किया. फिर एक-एक कर सभी विग्रहों की मंगल आरती पूरी हुई.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है