पुरी. पुरी के श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा का शनिवार को निलाद्री बिजे हुआ. इससे पूर्व मौसीबाड़ी नहीं ले जाने से नाराज मां महालक्ष्मी को श्रीजगन्नाथ ने रसगुल्ला खिलाकर मनाया. जिसके बाद उन्हें श्रीमंदिर में प्रवेश की अनुमति मिली. भगवान अपनी मौसी के यहां से बाहुड़ा यात्रा में लौटने के बाद सुनावेश व अधरपणा नीति के अगले दिन मंदिर में प्रवेश करते हैं. निलाद्री नाथ के निलाद्री में प्रवेश करने के कारण इसे निलाद्री बिजे कहा जाता है. शुक्रवार को निलाद्री बिजे को रसगुल्ला दिवस के रूप में भी पूरे राज्य में मनाया गया. रथयात्रा का यह अंतिम अनुष्ठान निलाद्री बिजे आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. देवताओं को उनके संबंधित रथों से पहंडी के जरिये मुख्य मंदिर के अंदर ले जाया जाता है. पहंडी में श्री सुदर्शन, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के विग्रहों को मंदिर में लाकर रत्न सिंहासन पर विराजमानय कराया गया.
मौसीबाड़ी नहीं ले जाने से नाराज थीं मा महालक्ष्मी
मान्यता है कि रथयात्रा के दौरान महाप्रभु भाई-बहन के साथ मौसीबाड़ी जाते हैं, लेकिन मां महालक्ष्मी को अपने साथ नहीं ले जाते. इससे मां महालक्ष्मी नाराज हो जाती हैं. बाहुड़ा यात्रा से लौट कर जब भगवान जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, तब मां लक्ष्मी मुख्य द्वार बंद कर देती हैं. मंदिर के सामने देवी लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करने वाले सेवकों और भगवान जगन्नाथ का प्रतिनिधित्व करने वाले सेवकों के बीच ‘बचनिका’ के रूप में जाना जाने वाला एक दिलचस्प कथन शुरू हो जाता है. यह वाकयुद्ध तब समाप्त होता है, जब भगवान जगन्नाथ अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं और अपनी पत्नी को मनाने के लिए रसगुल्ला अर्पित करते हैं. इसे ‘मानभंजन’ कहा जाता है. देवी लक्ष्मी उनकी क्षमायाचना स्वीकार करती हैं और भगवान जगन्नाथ के लिए दरवाजे खोल दिये जाते हैं, जिससे भव्य वार्षिक उत्सव का समापन हो जाता है.
—————-राउरकेला समेत पूरे राज्य में मनाया गया रसगुल्ला दिवस
ओडिशा के पुरी स्थित श्रीमंदिर समेत राज्यभर के जगन्नाथ मंदिरों में शुक्रवार को रसगुल्ला दिवस मनाया गया. जगन्नाथ मंदिर में यह परंपरा एवं रीति प्राचीन काल से चली आ रही है. लेकिन 2015 में रसगुल्ला को जीआइ टैग मिलने के बाद इसे पूरे प्रदेश में रथयात्रा के अंतिम दिन अर्थात महाप्रभु के निलाद्री बिजे के दिन रसगुल्ला दिवस के रूप में पालन किया जा रहा है. बताया गया कि रसगुल्ला सिर्फ परंपरा में नहीं, इसका हमारे इतिहास, साहित्य व अर्थव्यवस्था में एक विशेष स्थान है. 15वीं शताब्दी में लिखी गयी बलराम दास की दांडी रामायण के अयोध्या कांड में भी रसगुल्ला का वर्णन है. रसगुल्ला का वर्णन ‘उत्कल दीपिका’ के 27 अगस्त,1892 के अंक और ‘इंद्रधनु’ पत्रिका के 14 दिसंबर, 1893 के अंक में भी किया गया है.——————
महाप्रभु के दर्शन को उमड़ी भक्तों की टोलीशुक्रवार को सेक्टर-3 स्थित अहिराबंध जगन्नाथ मंदिर, उदितनगर, बसंती कॉलोनी, मां तारिणी मंदिर परिसर, हनुमान वाटिका समेत अन्य जगन्नाथ मंदिरों में बाहुड़ा रथयात्रा में महाप्रभु जगन्नाथ के भाई-बहन के साथ वापस लौटने के बाद रथ पर सुनावेश, अधर पणा समेत अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया. शुक्रवार को महाप्रभु जगन्नाथ ने रुष्ट माता लक्ष्मी को रसगुल्ला खिलाकर उनका मानभंजन करने के बाद चतुर्था मूर्ति की रत्न सिंहासन पर निलाद्री बिजे हुआ. इन धार्मिक अनुष्ठानों में बड़ी संख्या में भक्तों की टोली जुटी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है