Guru Purnima: गुरु पूर्णिमा पर रविवार को भागलपुर जिले में विभिन्न स्थानों पर कई कार्यक्रम होंगे. कहीं गुरु महिमा, गुरु पूर्णिमा महोत्सव तो कहीं गुरु पूजा का आयोजन होगा. इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है. गुरु पूर्णिमा एक दिन पहले शनिवार को विभिन्न धाराओं के शिष्यों ने प्रभात खबर से बात करते हुए अपने गुरु की महिमा का गुणगान किया.
महर्षि मेंहीं आश्रम में गुरु पूर्णिमा महोत्सव
कुप्पाघाट स्थित महर्षि मेंहीं आश्रम में गुरु पूर्णिमा महोत्सव होगा. यहां पुष्पांजलि, सत्संग, भजन व भंडारा होगा. इसमें देश के विभिन्न स्थानों के श्रद्धालुओं का जुटान होने लगा है. दोपहर दो बजे गुरु की महिमा, सद्गुरु के कृतित्व पर प्रकाश डाला जायेगा. इस दौरान भजन-कीर्तन का भी आयोजन होगा. संतमत के वर्तमान आचार्य हरिनंदन बाबा एवं गुरुसेवी भगीरथ दास महाराज के सानिध्य में पूरा आयोजन होगा.
आयोजन को लेकर महामंत्री दिव्य प्रकाश, मंत्री मनु भास्कर, व्यवस्थापक अजय जायसवाल, रमेश बाबा, पंकज बाबा, संजय बाबा, विद्यानंद बाबा, अमित कुमार, सूरज आदि लगे हैं. गुरु पूर्णिमा उत्सव में सम्मिलित होने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग के भक्तजनों से अपील की गयी है. उत्सव संध्या 6:00 बजे तिलकामांझी चौक के समीप सुबोध कुंज विवाह भवन में होगा. उक्त जानकारी वरीय शिक्षक गणेश सुल्तानिया ने दी. उन्होंने बताया कि सुबह 11:00 बजे मंदिर में पौधरोपण होगा.
शारदा संगीत सदन में सांस्कृतिक कार्यक्रम
दीपनगर चौक के समीप स्थित शारदा संगीत सदन में रविवार को संध्या पांच बजे गुरु पूजन उत्सव होगा. इस दौरान संरक्षक पंडित शंकर मिश्र नाहर व प्राचार्य शर्मिला नाहर के संचालन में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा. वहीं, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, भागलपुर की ओर से आठ अगस्त को शीतला स्थान चौक मिरजानहाट स्थित गुप्ता भवन में गुरु पूर्णिमा महोत्सव होगा. बता दें कि 21 जुलाई को गुरु पूजा घर-घर होगी.
आरएसएस कार्यकर्ता करेंगे भगवा ध्वज की पूजा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी स्वयंसेवक भगवा ध्वज की पूजा करेंगे. संघ के हरविंद नारायण भारती ने बताया कि इसमें किसी व्यक्ति को गुरु नहीं माना जाता है. इसमें तत्वनिष्ठा को ही गुरु माना गया है. भगवा ध्वज को गुरु माना गया है. इसमें ध्वज की पूजा गुरु के रूप होगी. पूजा-अर्चना के बाद वरिष्ठ स्वयंसेवक का प्रवचन गुरू की महिमा पर होगा. इसी क्रम में सभी स्वयंसेवक संघ को दक्षिणा अर्पित करेंगे.
गुरु पूर्णिमा का इतिहास
आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था. वेद व्यास के बचपन की बात है। वेद व्यास ने अपने माता-पिता से भगवान के दर्शन की इच्छा ज़ाहिर की, लेकिन उनकी माता सत्यवती ने उनकी इच्छा पूरी करने से मना कर दिया. वेद व्यास जी हठ करने लगे, तो माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दे दी. जाते समय माता ने वेद व्यास जी से कहा कि जब घर की याद आए, तो लौट आना. इसके बाद वेद व्यास जी तपस्या करने के लिए वन चले गये.
वन में उन्होंने बहुत कठोर तपस्या की. इस तपस्या के प्रभाव से वेद व्यास जी को संस्कृत भाषा का बहुत ज्ञान हो गया. फिर उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया. इतना ही नहीं, उन्होंने महाभारत, अठारह पुराण और ब्रह्मसूत्र की रचना भी की. महर्षि वेद व्यास जी को चारों वेदों का ज्ञान था, इसीलिए गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है. वेद व्यास जी ने भागवत पुराण का ज्ञान भी दिया था.
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विविध धारा के शिष्यों ने किया गुरु महिमा का बखान
श्रीराम शर्मा आचार्य को गुरु और भगवान माना. उनकी प्रेरणा से समाज में समानता और भाईचारा लाने का प्रयास कर रहे हैं. समाज से भेदभाव मिटाने का काम कर रहे हैं. पूजा पाठ कराने में भी भेदभाव नहीं है.
विंदेश्वरी प्रसाद सिंह, आचार्य, गायत्री परिवार, इशाकचक
गुरु पूर्णिमा को अनुशासन पर्व भी कहा जाता है. सामान्य रूप से भी सिखाने वाले गुरुजनों का अनुशासन स्वीकार किये बिना कुशलता में निखार नहीं आ सकता. अनुशासन मानने वाला ही शासन करता है. यह तथ्य समझे बिना राष्ट्रीय या आत्मिक प्रगति संभव नहीं है.
जगतराम साह कर्णपुरी, साधक, गायत्री परिवार, विषहरी स्थान चौक चंपानगर
गणेश सुल्तानिया, वरीय शिक्षक, आर्ट ऑफ लिविंग
अपने गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा गुरु बिना ज्ञान नहीं गुरु बिना गति नहीं। गुरुदेव के संपर्क में आने से जीवन को एक सही दिशा मिली और जीवन एक सुंदर उत्सव बन गया.
पूर्णिमा अवसर होता है गुरु के प्रति आभारी होने का. साथ ही इस मार्ग पर अपनी प्रगति के मंथन का. गुरुदेव का उनके जीवन में आगमन से आत्मबल और लोगों के प्रति स्वीकार्यता बढ़ी.
स्मृति मिश्र, शिक्षिका, आर्ट ऑफ लिविंग
पिता सद्गुरु महर्षि मेंहीं से दीक्षित हुए. वे वर्तमान आचार्यश्री हरिनंदन बाबा से दीक्षित हुए. 2009 में सदस्य, 2018 में मंत्री, फिर 2021 में महामंत्री बने. खुद प्रमुख रहते हुए राजनीतिक जीवन में रहा, लेकिन आत्मिक शांति नहीं मिली. संतमत का ऐसा प्रभाव हुआ कि अपने कर्तव्य को तत्परता से करने की प्रेरणा मिली.
दिव्य प्रकाश, महामंत्री, अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा
महर्षि मेंहीं के सान्निध्य में आये, तो उनके गुरु के प्रति अनुकरणीय नि:स्वार्थ और समर्पित सेवा को देखते हुए लोग उन्हें गुरुसेवी कहने लगे. गुरुदेव ने 1980 में सुरत शब्द योग की दीक्षा दी. 1984 में गुरुदेव ने उन्हें संतमत परंपरा में योग्य साधकों को दीक्षा देने के लिए अधिकृत किया. सभी कार्य वे गुरुदेव के जीवन के अंतिम क्षण तक करते रहे. आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से भरपूर पांच पुस्तकें लिखी हैं.
गुरुसेवी भगीरथ दास महाराज, महर्षि मेंहीं के शिष्य सह संत, महर्षि मेंहीं आश्रम कुप्पाघाट