पड़वा. मेदिनीनगर निगम क्षेत्र के सिंगरा गांव स्थित अमानत नदी तट पर चातुर्मास व्रत कथा में लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कहा कि दुनिया में अच्छे कर्मों को हमने स्वीकार कर लिया, जीवन की दिनचर्या में उतार लिया, यही मोक्ष है. अौर अगर गलत कर्मों को हमने अपने जीवन में उतार लिया, तो यही बंधन है, नरक है. इसलिए हमारा संगत, उठना-बैठना शुद्ध होना चाहिए. स्वामी जी ने कहा कि राजा परीक्षित ने प्रश्न किया, कि सात दिन में मरने वाले की मुक्ति का उपाय क्या है. इस पर शुकदेव जी महाराज ने कहा कि सात दिन कोई कम नहीं होता है. दुनिया में सात दिनों से अधिक कोई जीता भी नहीं है. रवि, सोम, मंगल, बुध, शुक्र और शनि इससे अधिक दिन कोई जीता ही नहीं है. आठवां दिन तो होता ही नहीं. राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव जी से पूछा कि जो साधक व्यक्ति मरने की तैयारी नहीं किया हो, और मरना निश्चित हो, तो उसे क्या करना चाहिए. इस पर श्री शुकदेव जी महाराज ने बहुत सुंदर बात कही. उन्होंने कहा कि मन को यदि वश में करना है, तो चार बातों को ध्यान में रखना होगा. जितासनो, जितश्वासो, जितसंगों, जितेंद्रिय. अर्थात, हे परीक्षित यदि मन को जीतना है, तो सबसे पहले आसन को जीतो. एक आसन पर कम-से-कम चार घंटे नहीं हो तो दो घंटे बैठने का प्रयास करो. उसे कहते हैं जितासनो. दूसरा है जितश्वासो. हर व्यक्ति को नित्य सुबह उठकर प्राणायाम करना चाहिए. इससे शरीर में चमक दिखेगी. तीसरी बात है जितसंगो. अर्थात व्यक्ति में दोष भी आयेंगे. संग से गुण अौर दुगुर्ण भी आयेंगे. इसलिए अच्छी संगति करो. चौथी बात है, जितेंद्रिय. अर्थात अपनी इंद्रियों को जीतो.
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