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Kargil Vijay Diwas : पति की मौत एक महीना पहले ही हो चुकी थी, लेकिन पत्नी थी अनजान

Kargil Vijay Diwas : सेना के कुछ जवान अचानक रीना देवी के घर पहुंचे, जवानों के हाथ में अस्थिकलश और बक्शा-पेटी थी. बस इतने ही बचे थे विश्राम मुंडा यानी रीना के पति. लेकिन रीना को समझ नहीं आया. ये लोग क्यों आए हैं. क्या हुआ? कब हुआ? तब जवानों ने बताया वो रोज जिस पति की जान की दुआएं मांग रही हैं, वह 30 दिन पहले ही देश की रक्षा करते-करते शहीद हो चुका है.

Kargil Vijay Diwas: मुझे तोड़ लेना वनमाली !

                              उस पथ पर देना तो तुम फेंक,

                             मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

                              जिस पथ जावें वीर अनेक.

कवि माखनलाल चतुर्वेदी की ये कविता आपने जरूर पढ़ी होगी. इस कविता में कवि ने पुष्प की जिस अभिलाषा को प्रकट किया है, वो विश्राम मुंडा जैसे शहीदों की कहानियों से ही प्रेरित हैं. बिहार रेजीमेंट के सिपाही विश्राम मुंडा के दिल में भारत माता के लिए प्रेम कुछ इस कदर भरा था कि उन्होंने सीधे सीने में गोली खाई और वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन जबतक इस सैनिक के शरीर में जान थी, उसने भारत माता की सेवा की. विश्राम मुंडा ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना के कई जवानों को मौत के घाट उतारा था. 

झारखंड के गुमला जिले में था विश्राम मुंडा का घर

मातृभूमि के इस सपूत का गांव झारखंड के गुमला जिले के भरनो प्रखंड में स्थित है. लांस नायक विश्राम मुंडा 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. उनकी पत्नी रीना देवी जो अब 59 साल की हो गई हैं, उस वक्त सिर्फ 34 साल की थी, प्रभात खबर के साथ बातचीत में बताती हैं कि हम उस समय देहरादून में रहते थे. तभी यह खबर आई थी कि उन्हें किसी जगह पर जाना पड़ेगा, वहां परिवार को रखने की सुविधा नहीं थी, इसलिए विश्राम मुंडा ने अपने परिजनों को झारखंड अपने घर पहुंचा दिया.

 रीना देवी अपने चार बच्चों के साथ जिसमें तीन लड़की और एक लड़का शामिल था, गांव में रह रही थीं. एक दिन बाजार में उन्हें पोस्टमैन मिला, उसने बताया कि उसकी कोई चिट्ठी आई थी एक सप्ताह पहले, उसे मिली क्या? इसपर रीना देवी को बहुत आश्चर्य हुआ और उसने पूछा कि नहीं मुझे तो नहीं मिली आपने किसको दिया?

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विश्राम मुंडा का सामान लेकर गांव पहुंचे सेना के जवान

पोस्टमैन ने बताया कि मैं तो देना नहीं चाह रहा था, लेकिन तुम्हारे जेठ-जेठानी ने मुझसे यह कहते हुए ले लिया कि घर की बात है, हम दे देंगे. रीना देवी ने अपने जेठ-जेठानी से से पूछा, लेकिन उसे कुछ भी पता नहीं चल पाया कि आखिर किसकी चिट्ठी आई थी और उसमें क्या खबर थी? आफत की बारिश तो तब हुई जब सेना के कुछ जवान अचानक रीना देवी के घर उसके पति विश्राम मुंडा का सामान बक्शा-पेटी लेकर पहुंच गए. साथ में वे उनका अस्थिकलश भी लेकर आए थे. रीना देवी बताती हैं कि जैसे ही जवानों ने उन्हें अस्थिकलश दिया, उनके होश उड़ गए और वो वहीं बेहोश होकर गिर गईं. जवानों ने उसे बताया कि उन्होंने चिट्ठी भेजी थी, तब उसे समझ आया कि पोस्टमैन किस चिट्ठी की बात कर रहा था.

ससुराल वालों ने गलत व्यवहार किया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

एक पत्नी जिसका पति लगभग एक-डेढ़ महीने पहले ही शहीद हो गया हो, लेकिन उसे पता ना हो और वो सामान्य जीवन जी रही हो, अचानक जब उसे पता चले कि उसका पति अब इस दुनिया में नहीं रहा, तो उस औरत की मानसिक स्थिति की कल्पना करना जितना कठिन है, उतना ही कठिन था रीना देवी को खुद को संभालना. उसके चार बच्चे थे और उसका पति दुनिया में उसे अकेला छोड़कर जा चुका था. ससुराल वालों का व्यवहार पहले से ही अच्छा नहीं था और अब तो उन्हें अकेली औरत मिल गई थी. परिवार वालों ने उसे मारपीट कर घर से बाहर कर दिया. ससुराल वालों का कहना था कि उसे जो एक लाख रुपए मिले हैं, वो उन्हें दे दे और पेंशन की राशि भी दे, लेकिन 

रीना देवी को अपने बच्चों की चिंता थी, इसलिए उन्होंने नहीं दिया. संघर्ष करते हुए रीना देवी ने किसी तरह बच्चों की परवरिश की. उन्हें पति का पेंशन मिलता है, जिससे मदद मिलती रही. दो लड़कियों की शादी हो गई है, बेटा घर की जमीन पर खेती करता है. रीना देवी छोटी बेटी अंजलि बारला के साथ रांची शहर में रहती हैं, ताकि उसे पढ़ाया-लिखाया जा सके. रीना कहती हैं कि जीवन में उसे भले ही बहुत दुख मिला, लेकिन पति देश के लिए शहीद हुए इस बात का गर्व है.

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