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जिले में चार महीने से नहीं है टीबी की दवा

साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का हवा हवाई दावा किया जा रहा है.क्योंकि जिले में पिछले चार महीने से टीबी की दवा ही उपलब्ध नहीं है.

दवा खरीदी और सप्लाई में बरती जा रही लापरवाही

समय पर दवा नहीं मिलने से बढ़ेंगे एमडीआर मरीज

साल 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने का दावा खोखला

किशनगंज.साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का हवा हवाई दावा किया जा रहा है.क्योंकि जिले में पिछले चार महीने से टीबी की दवा ही उपलब्ध नहीं है.ऐसे में टीबी के मरीजों के स्थिति का आकलन करना ज्यादा मुश्किल नहीं है.जिले भर के हजारों मरीज दवा के लिए जिला क्षय केंद्र और सरकारी अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं.

लेकिन उन्हें वहां से खाली हाथ लौटाया जा रहा है. अपने इलाज का काेर्स पूरा करने के मुहाने पर पहुंच चुके इन मरीजों पर संक्रमण तेज होने का खतरा मंडराने लगा है. केंद्र सरकार ने 2025 में देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य तय किया. लेकिन व्यवस्थाएं इसी तरह चलीं तो इसे हासिल कर पाना संभव नहीं होगा.

सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम द्वारा दवा की खरीदी और सप्लाई में बरती गई लापरवाही के कारण मरीजों पर यह संकट मंडराया है। दरअसल, टीबी की दवा डॉट्स की सप्लाई राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम से राज्य स्तर पर होती है.राज्य स्तर से दवा की सप्लाई जिला स्तर और यहां से ब्लॉक स्तर पर खोले गए डॉट्स केंद्रों पर सप्लाई की जाती है.लेकिन दिल्ली में दवा की खरीदी नहीं किए जाने के कारण पिछले जनवरी से सप्लाई नहीं के बराबर आ रही है.मार्च से दवा सप्लाई बंद हो गई. इससे जिला स्तर पर दवा की किल्लत शुरू हो गई.

मरीज बोले- मुफ्त मिलने वाली दवा पैसों में भी नहीं मिल रही

टीबी की दवा के लिए चक्कर काट रहे मरीज अब्दुल सलाम अंसारी ने बताया कि अस्पताल में कह रहे दवा नहीं है 2-4 दिन बाद आना.डेढ़ माह का काेर्स बचा है.इसी समय पर दवा खत्म हो गई है.20 दिन से अस्पतालों के चक्कर काट रहा हूं. दवा नहीं मिल रही.कर्मचारी कह रहे हैं कि दवा नहीं है. 2-4 दिन बाद आना.10 दिन से दवा नहीं खाई है.कई मेडिकल स्टोर पर तलाशी लेकिन वहां भी नहीं मिल रही. जैसे-तैसे एक मेडिकल पर मिली, लेकिन महंगी है टेढ़ागाछ निवासी मरीज यूनुस खान बताते हैं कि 06 माह से दवा खा रहा हूं.एक माह से अस्पताल जा रहा हूं.लेकिन दवा नहीं मिल रही है. 20 दिन से तो दवा खाई ही नहीं है.पत्नी ने कई मेडिकल स्टोर्स पर खोजी तब एक दुकान पर मिली है. लेकिन काफी महंगी होने के कारण एक हफ्ते की खरीदी है. जिले के दिघलबैंक निवासी नफीस ने बताया कि चार माह का कोर्स पूरा कर चुका हूं,दिघलबैंक से किशनगंज का चक्कर लगा रहा हूं एक माह से दवा के लिए परेशान हूं. 15 दिन से दवा नहीं खाई है.बाजार में भी नहीं मिल रही है. अस्पतालों में कह रहे हैं.इस माह तो दवा मिल पाना संभव नहीं है.कुछ समझ में नहीं आ रहा है क्या करें?

दवा के अभाव में मरीजों की बढ़ी परेशानी

टीबी एवं चेस्ट रोग विशेषज्ञ चिकित्सक के अनुसार क्षय रोग में इलाज शुरू होने के बाद मरीज दो स्टेज में बंट जाते हैं.शुरुआती स्टेज में इलाज शुरू होने के बाद यदि एक माह तक मरीज दवा नहीं खाए तो संक्रमण तेजी से फैलने लगता है. बीमारी जानलेवा रूप ले लेती है.दूसरी स्टेज जो तीसरे माह से शुरू होती है. इस स्टेज में यदि मरीज को दवा नहीं मिले तो उसके ड्रग रजिस्टेंस होने की संभावना बढ़ जाती है. दवा एक माह से ज्यादा लंबे समय तक नहीं मिली तो सभी मरीजों काे 6 माह का कोर्स दोबारा कराना होगा.

छह दशक में पहली बार खड़ा हुआ दवा का संकट

राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत 1962 में हुई थी. इसे क्षय रोग के मामलों का जल्द से जल्द पता लगाने और उनका इलाज करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था. शुरूआत से ही दवा की सप्लाई राष्ट्रीय स्तर से की गई.बीते 62 साल में यह पहला मौका है, जब दवा नहीं मिलने का संकट खड़ा हुआ है.

नेपाल और पश्चिम बंगाल का चक्कर लगा रहें हैं मरीज

जिले में टीबी की दवा के घोर किल्लत के बीच मरीज अब दवा की खोज में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी, इस्लामपुर, तथा रायगंज एवं नेपाल के बिर्तामोर,दमक का चक्कर लगा रहें हैं.क्योंकि जिले का स्वास्थ्य महकमा पिछले कई माह से दवा उपलब्ध करवाने की बात कह रहा है लेकिन दवा उपलब्धता आज तक नहीं हो पाया है.

क्या कहते हैं सिविल सर्जन

पूरे प्रदेश में ही टीबी की दवा की किल्लत है,लेकिन हम लोग प्रयास कर रहें हैं.बहुत जल्द दवा उपलब्ध हो जाएगी.

डा राजेश कुमार

सिविल सर्जन,किशनगंजB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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