भागलपुर के नाथनगर स्थित श्री चंपापुर दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र में 20 जुलाई से चातुर्मास अनुष्ठान चल रहा है. यह 31 अक्तूबर तक चलेगा. शुक्रवार को विशेष पूजा हुई. श्रद्धालुओं ने पद्मासन में भगवान वासुपूज्य की मूंगा रंग की प्रतिमा का स्वर्ण और रजत कलश से अभिषेक किया. जबलपुर से आए श्रद्धालु आमोद भाई ने स्वर्ण कलश से अभिषेक किया, जबकि कोटा से आए सौभाग्य गंगवाल ने रजत कलश से अभिषेक किया. शांतिधारा दिल्ली से आए दीपक सेठी ने की. अष्टद्रव्य से भगवान वासुपूज्य की पूजा की गई.
जीवन परिवर्तन की साधना का प्रवेश द्वार चातुर्मास
सिद्ध क्षेत्र मंत्री सुनील जैन ने कहा कि चातुर्मास, जीवन परिवर्तन की साधना का प्रवेश द्वार है. चातुर्मास भक्ति का आस्वादन कराने वाली धन्य घड़ियां हैं. महाराष्ट्र कोल्हापुर के पंडित रत्नेश ने कहा कि समय का सदुपयोग, व्यक्ति को उपयोगी बना देता है. गुणीजनों की उपेक्षा आपको अच्छे संस्कारों से वंचित कर देगी. नियम को खेल बनाओगे तो आप भी नियम से खेल बन जाओगे. जहां अधिकार न हो, वहां अधिकार दिखाना अनीति है.
लोभ से भरा जीवन, अनीति से भरा होता है. जरूरी नहीं है कि हम हर किसी को संतुष्ट कर पायें, झूठ, व्यक्ति की प्रामाणिकता खत्म कर देता है. गुणी जनों के प्रति विनम्र रहो शिष्ट रहो, जो चातुर्मास हमें सिखाता है. इस अवसर पर बाहुवली गंगवाल, अजीत जैन, शांति लाल साह, रमेश पाटनी, आकाश जैन, अक्षत सरावगी आदि उपस्थित थे.
आहार-शुद्धि और एकांत तपश्चर्या का विशेष महत्व
सनातन संस्कृति एवं जैन धर्म में चातुर्मास यानी चौमासे में आहार-शुद्धि और एकांत तपश्चर्या का विशेष महत्व है. जुलाई के पहले हफ्ते से चातुर्मास शुरू हो चुका है. हिंदू वार्षिक पंचांग के अनुसार चातुर्मास आषाढ़ महीने की देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होता है और इसका समापन कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रबोधिनी एकादशी को होता है. वर्षायोग के दौरान पर्यावरण, भोजन व जल में हानिकारक बैक्टीरिया की तादाद स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है. साथ ही हमारी पाचन शक्ति भी मंद पड़ जाती है. इसलिए धार्मिक अनुष्ठान और आध्यात्मिक प्रयोजन के साथ-साथ चातुर्मास में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शुद्ध-सात्विक भोजन, अल्पाहार और व्रत-उपवास का पालन अत्यंत लाभकारी है.
Also read: बिहार के मेडिकल कॉलेजों में नये सत्र से हिंदी में MBBS, शिक्षक चयन समेत अन्य तैयारियां शुरू
चातुर्मास के दौरान परिव्राजक जीवनशैली का परित्याग कर देते हैं जैन मुनि
चातुर्मास के चार महीनों के दौरान संत-महात्मा, जैन मुनि और मनीषी अपनी परिव्राजक जीवनशैली का परित्याग कर किसी स्थान विशेष पर ठहरकर उपवास, मौन-व्रत, ध्यान-साधना और एकांतवास से अपने तपोनिष्ठ जीवन को उन्नत बनाने का सार्थक प्रयास करते हैं और जनसाधारण को भी व्रत-उपवास करने की प्रेरणा देते हैं.