कोलकाता. भारत चेंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा भारत के इस्पात उद्योग-वर्तमान और भविष्य के परिप्रेक्ष्य शीर्षक से एक विशेष सत्र आयोजित किया गया, जिसमें केंद्रीय इस्पात मंत्रालय के सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. श्री सिन्हा ने कहा कि पूर्वी भारत और विशेष रूप से पश्चिम बंगाल को विशेष रूप से इस्पात निर्माण केंद्र के रूप में तैयार किया गया है. उन्होंने बताया कि 2018 से, भारत लगातार चीन के बाद इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता बना हुआ है. श्री सिन्हा ने कहा कि हाल ही में केंद्रीय बजट 2024 में इस्पात क्षेत्र को दिये गये प्रोत्साहन पर इस्पात सचिव ने कहा कि सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3.4 प्रतिशत आवंटित किया है, जिससे इस्पात की मांग में काफी वृद्धि होने की उम्मीद है. श्री सिन्हा ने कहा कि इस्पात क्षेत्र प्रति वर्ष 10 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा, जिसका 2030-31 तक 300 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) तक पहुंचने का अनुमान है. इस्पात क्षेत्र में हाल के घटनाक्रमों पर सचिव ने बताया कि इस्पात क्षेत्र के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने और हरित प्रौद्योगिकियों के विकास पर विशेष जोर दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि 14 टास्क फोर्स बनाये गये हैं और उनकी रिपोर्ट के आधार पर एक रोडमैप तैयार किया गया है. स्वागत भाषण में अध्यक्ष एनजी खेतान ने भारतीय इस्पात क्षेत्र की चुनौतियों को रेखांकित किया. जिसमें लौह अयस्क की कमी, चीन और वियतनाम द्वारा भारतीय बाजार में सस्ते इस्पात की डंपिंग और बढ़ती रसद लागत शामिल हैं. उन्होंने सचिव से इस्पात क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के उन्नयन में भारत सरकार के नीतिगत उपायों को रेखांकित करने का अनुरोध किया.
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