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डीआरएंडआरडी परियोजना को शुरू करने को लेकर सीएमडी गंभीर

डीआरएंडआरडी परियोजना को शुरू करने को लेकर सीएमडी गंभीर

राकेश वर्मा, बेरमो : चार दशक से लंबित सीसीएल की डीआरएंडआरडी (दामोदर नदी एवं रेलवे विपथन) परियोजना को शुरू करने को लेकर सीसीएल के नये सीएमडी निलेंदू कुमार सिंह गंभीर दिख रहे हैं. सात जून 2024 को पदभार ग्रहण करने के बाद बेरमो के ढोरी एरिया के दौरे पर आये सीएमडी ने कहा था कि ढोरी एरिया की बंद पिछरी व बीएंडके प्रक्षेत्र में डीआरएंडआरडी परियोजना जल्द अस्तित्व में आयेगी. इस वर्ष चंद्रगुप्त परियोजना को चालू करने की दिशा में योजना बनायी जा रही है. हजारीबाग की कोतरे बसंतपुर परियोजना को कोकिंग कोल परियोजना के रूप में चालू करने की योजना है. इस परियोजना की क्षमता प्रतिवर्ष पांच मिलियन टन (एमटी) होगी. साथ ही ढोरी में हाइवाल माइनिंग नवंबर माह से चालू होने की संभावना है.

बताते चले कि सीसीएल इस वर्ष 100 मिलियन तथा इसके बाद के वर्षों में सालाना 135 मिलियन टन कोयला उत्पादन करेगी. साल दर साल कोयला उत्पादन का लक्ष्य बढ़ता ही जायेगा. बेरमो में आगामी कुछ वर्षों तक के लिए पर्याप्त कोयला है. लेकिन कुछ वर्षों के बाद बंद बड़ी परियोजना को चालू करने की जरूरत कोल इंडिया को पड़ सकती है. ऐसे में कोल इंडिया को रोड मैप बना कर तैयार रखना होगा. डीआरएंडआरडी परियोजना से संबंधित विस्थापितों का कहना है कि इस परियोजना को शुरू करने की दिशा में पूर्व में सीसीएल ने गंभीरता नहीं दिखायी. इस परियोजना के चालू होने से न सिर्फ परियोजना से जुड़े आसपास के दर्जनों गांवों के सैकड़ों लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार से जुड़ते, बल्कि विस्थापितों के लंबित नियोजन व मुआवजा भुगतान का मार्ग भी प्रशस्त होता.

सीसीएल ने कई बार की कवायद

कुछ वर्ष पूर्व इस परियोजना में फिलहाल डीआरडी ओसी माइन (खुली खदान) को माइन डेवलपर कम ऑपरेटर (एमओडी ) के तहत चलाने की योजना बनायी गयी थी. 25 साल के लिए इस परियोजना को लेकर 3493.48 करोड़ रुपये की इस्टिमेटेड प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनायी गयी. यहां से सालाना चार मिलियन टन के हिसाब से फिलहाल 44 मिलियन टन खनन किये जाने की योजना थी. प्रबंधन के अनुसार इस परियोजना में करीब 15 सौ मिलियन टन कोकिंग कोल है. परियोजना चालू करने के लिए कंपनी ने रिक्यूएस्ट फॉर क्वालीफिकेशन (आरएफक्यू) कराया था. जनवरी 2014 को शार्ट लिस्ट की घोषणा की गयी, लेकिन बाद में इसे कैंसिल करा दिया गया. इसके बाद पुन: यहां से आउटसोर्सिंग के तहत कोयला व ओबी खनन के लिए कोल इंडिया से हरी झंडी मिलने के बाद सीसीएल ने डीआरडी ओसी माइन को एमओडी के तहत चलाने के लिए एक साल पहले ग्लोबल टेंडर कराया. बाद में यह योजना भी खटाई में पड़ी हुई है. इस परियोजना में दामोदर डायवर्सन के मद में 1549.63 करोड़, पीजे रेल में 315.20 करोड़ तथा वाशरी के कैपिटल खर्च में 379.59 करोड़ सहित ओसीपी एवं वाशरी को कुल बजट 2872.76 करोड़ स्कोप ऑफ वर्क आंका गया था. मालूम हो कि तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी इस परियोजना से अभी तक एक छटांक कोयला भी निकालने में प्रबंधन विफल रहा है. इसलिए परियोजना का कॉस्ट भी काफी बढ़ गया है.

600 बाई 600 पैच से कोयला खनन के लिए बना था रोड मैप

लॉक डाउन से पहले सीसीएल ने डीआरएंडआरडी परियोजना में 600 बाई 600 एक पैच से कोयला खनन के लिए सीएमपीडीआइ को एसेसमेंट रिपोर्ट तैयार करने के लिए वर्क ऑर्डर दिया था. इस पैच के तहत परियोजना के चलकरी साइड में बोर होल कर सीएमपीडीआइ ने एसेसमेंट रिपोर्ट तैयार की. लेकिन लॉक डाउन के कारण सीसीएल मुख्यालय में रिपोर्ट सबमिट नहीं की जा सकी. सीसीएल को यह चेक करना था कि उक्त पैच में कोयला खनन व ओबी निस्तारीकरण में कंपनी को घाटा होगा या मुनाफा. जानकारी के अनुसार उक्त पैच में 51 लाख घन मीटर टन ओबी निस्तारीकरण के बाद 17 लाख टन कोयला मिलता. एक साल में पांच लाख टन इस पैच से कोयला खनन की योजना थी. डीआरएंडआरडी में एक और बड़ा पैच है, जिसमें 69 मिलियन टन कोकिंग कोल है. लेकिन इसके खनन के लिए दामोदर नदी व रेलवे का डायवर्ट करना होगा, जो फिलहाल संभव नहीं दिखता है. मालूम हो कि इस परियोजना की मुख्यालय स्तर पर हर साल ऑडिट भी होती है, जिसमें अब तक परियोजना पर हुए करोड़ों रुपये के खर्च का ब्यौरा प्रस्तुत होता है.

90 के दशक तक 632 लोगों को मिला था नियोजन

वर्ष 1983 में इस परियोजना का नोटिफिकेशन हुआ था. 1984 से 1987 के बीच इस परियोजना से संबंधित 632 विस्थापितों को जमीन के एवज में सीसीएल ने नियोजन दिया. इसमें से 60-70 फीसदी से ज्यादा कर्मी रिटायर भी हो गये हैं. अभी भी 300 विस्थापितों के नियोजन का मामला अधर में है. 1983-84 से ही परियोजना के रेलवे डायवर्सन के तहत चैनल कटिंग, फोरमेशन के अलावा जारंगडीह रेलवे स्टेशन, चलकरी-जरीडीह बाजार के मध्य एवं घुटियाटांड़ में करोड़ों की लागत से पुल का निर्माण कार्य शुरू कराया गया जो आज तक अर्धनिर्मित है. जारंगडीह से भाया चलकरी-घुटियाटांड़ होते हुए फुसरो स्टेशन तक रेल लाइन को मोड़ने के लिए फुसरो झब्बू सिंह महिला कॉलेज के निकट चैनल कटिंग भी किया गया. फिलहाल करीब चार दशक से सारी चीजें यथावत है. कोई नया काम इस परियोजना को लेकर शुरू नहीं हुआ. सीसीएल के पूर्व सीएमडी आरके साहा के कार्यकाल में इस परियोजना के चलकरी साइड से सालाना चार मिलियन टन के एक नये पैच से कोयला खनन को लेकर तेज गति से प्रबंधकीय प्रयास हुए, लेकिन बाद में यह मामला भी लटक गया.

पिछले कई साल से किसी भी अधिकारी की स्थायी पोस्टिंग नही

पिछले चार दशक से ज्यादा के कार्यकाल के दौरान इस परियोजना में कई जीएम व पीओ पदस्थापित रहे. इसमें पीओ के रूप में एन चंद्रा, एमएम सिन्हा, आर मुखर्जी, एसके सिन्हा, एसके सिंह, सुखदेव दास, एलके बेहरा, टीएन साह के अलावा जीएम के रूप में ज्वाला प्रसाद व एसएन सिंह के अलावा एजीएम के रूप में अनुराग कुमार के बाद एमके पासकी पदस्थापित रहे. लेकिन पिछले कई साल से यहां कोई भी स्थायी रूप से पदाधिकारी की पोस्टिंग नहीं है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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