पानागढ़. पश्चिम बर्दवान जिले के कांकसा जंगल महल के कई ग्राम पंचायत इलाकों में जनबहुल इलाकों में इन दिनों रात में सियारों के बढ़ते विचरण करने से व अपने पालतू जीव जंतुओं की सुरक्षा को लेकर लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है. बरसात के समय जंगलों में और खेतों में पानी भर जाने के कारण ये जंगली सियार जंगल महल के जनबहुल आदिवासी इलाकों में रात में प्रवेश कर लोगों के पालतू जीव जंतुओं जैसे बतख, मुर्गियां, बकरियां आदि लेकर भाग जाते हैं. कांकसा के जंगलों में सियार की तादाद काफी अधिक है. मुख्य रूप से ये जंगल व झाड़ियों में छिप कर रहते हैं. निशाचर जानवर के रूप में सियार को जाना जाता है. इनका मुख्य आहार मक्का, सब्जियां, चूहे, खरगोश, मांस और केकड़े हैं.
हालाँकि, जब भोजन का संकट होता है, तो ये जंगल के पास के गांवों में भोजन की तलाश में रात में पहुंच जाते हैं. पिछले कुछ वर्षों में फाल्गुन से बैशाख माह में भी इन सियारों के उत्पात से कांकसा के जंगल महल के ग्रामीण काफी चिंतित रहते हैं. बीच बीच में जंगल में अग्निकांड की घटना के बाद ये सियार मजबूरन जनबहुल इलाकों की तरफ आ जाते हैं. आग के कारण वन पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचती है. जंगल में आग के डर से सियारों का समूह भी अपने बच्चों के साथ अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते फिरता है.लोगों में जागरूकता जरूरी
कांकसा के पर्यावरणविद अशोक राय का कहना है कि वह जंगलों और पेड़ों को बचाने की कोशिश करते हैं. वह घर पर पौधे तैयार कर उन्हें कांकसा के विभिन्न हिस्सों में जंगलों में लगाते हैं. अगर देशी फलदार पेड़ नहीं बचे, तो भारी कमी होगी. जानवरों के भोजन के लिए उन्होंने देशी पेड़ लगाने पर जोर दिया है. वह यह भी जानते हैं कि जंगल में आग लगने पर कितना नुकसान हो सकता है. लोगों को पेड़ काटने से परहेज करने के लिए जागरूक करने की जरूरत है.वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि वे हर मोहल्ले में जागरूकता पैदा कर रहे हैं. पेड़ों की चोरी रोकने और जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए कमेटी भी बनायी गयी है. जंगल में खुलेआम आवाजाही रोकने के लिए नाका चेकिंग शुरू की गयी है. अवैध शिकार और पेड़ों की कटाई के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाती है. जहां तक सियारों के जनबहुल इलाकों में प्रवेश का मामला है उस पर सख्त निगरानी रखी जा रही है. इस दिशा में ग्रामीणों को भी सतर्क किया जा रहा है कि वे अपने पालतू जानवरों को घेरेग में बंद करके सुरक्षित रखें.
कभी सियारों की तादाद अच्छी खासी थी
स्थानीय ग्रामीण मनोहर रुइदास का कहना है कि कभी कांकसा जंगल महल में कई सियार थे. शाम होते ही सियारों की आवाज सुनाई देती थी. अब सियारों की भी संख्या पहले की अपेक्षा काफी कम हो गयी है. उनकी आवाज अब बहुत कम ही सुनाई देती है. सियार के अलावा कई अन्य जंगली जानवर भी इन जंगलों से पलायन कर गये हैं अथवा यहां बचे नहीं हैं. उनकी कई दुर्लभ प्रजातियां समाप्त हो गयी हैं. इस वर्ष बरसात के कारण एक बार फिर इन सियारों के लिए खाने पीने और रहने का संकट बढ़ता जा रहा है. कम बारिश के कारण जहां खेती में देरी हुई इसीलिए जंगल में भोजन का संकट गहरा गया है. यही कारण है कि जैसे-जैसे रात बढ़ती है, ये सियार भोजन की तलाश में गांव में घूमते नजर आते हैं.
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