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घायल मरीज को बेड तक पहुंचाने के लिए सदर अस्पताल में वार्ड बॉय तक उपलब्ध नहीं

अस्पताल पहुंचने पर मरीज के परिजन वार्ड में ले जाते है

कटिहार. सदर अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने के लिए करोड़ों रुपये की बिल्डिंग बन गयी है. करोड़ों रुपए सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च कर रहे हैं. इसके बावजूद भी मरीज को बेहतर चिकित्सा लाभ नहीं मिल पाता है. इसका कारण है कि सिस्टमैटिक ढंग से व्यवस्था नहीं होने के कारण. जिस कारण से मरीज को काफी परेशान होना पड़ता है. सदर अस्पताल की सबसे अव्यवस्था इमरजेंसी सेवा में देखने को मिलती है. जब कोई इमरजेंसी मरीज खासकर एक्सीडेंटल या गंभीर मरीज अस्पताल पहुंचता है, तब मरीज को सदर अस्पताल के बाहर से अंदर तक ले जाने के लिए वार्ड बॉय तक उपलब्ध नहीं रहता. यहां तक की स्ट्रेचर के लिए भी मरीज के परिजन को इसकी खोजबीन करनी पड़ती है. मरीज के साथ परिजन हो तो वे तो अपने मरीज को उठाकर किसी तरह से अस्पताल में डॉक्टर तक ले जाकर दिखा देते हैं. लेकिन यदि कोई अज्ञात मरीज आ जायें तो उन्हें उठाने वाला कोई नहीं मिलता है. ऐसा ही मामला सोमवार को भी देखने को मिला. जहां गेड़ाबाड़ी सिमरिया के रहने वाली पड़ोसी द्वारा सकीना खातून के साथ मारपीट कर बुरी तरह से घायल होने पर उनकी मां मोरछ्दा खातून उन्हें लेकर सदर अस्पताल पहुंची थी. उनके साथ और कोई नहीं था. घायल शकीना को टोटो पर लाद कर सदर अस्पत लाया गया तो टोटो से उतारकर अस्पताल ले जाने के लिए उस समय वार्ड बॉय तक मौजूद नहीं था. हालांकि मरीज को जिस टोटो वाले ने अस्पताल पहुंचाया था. वह काफी देर तक मरीज को स्ट्रेचर पर ले जाने के लिए स्ट्रेचर की खोजबीन की लेकिन उन्हें कोई भी खाली स्ट्रेचर नहीं मिला. न ही मदद के लिए कोई वार्ड बॉय सामने आया. अंत में मरीज की गंभीर हालत को देखते हुए टोटो के ड्राइवर ने काफी मशक्कत के बाद व्हीलचेयर पर घायल मरीज को टोटो से उतारकर अस्पताल में दाखिल किया गया. हालांकि घायल की अवस्था को देखते हुए तब जाकर अस्पताल कर्मी घायल को अस्पताल में दाखिल किया. यह स्थिति अस्पताल की व्यवस्था कितनी सही तरीके से कम कर रही है. दरअसल इमरजेंसी में कम से कम दो वार्ड बॉय होना अति आवश्यक है. ताकि यदि कोई गंभीर मरीज आए तो उन्हें अस्पताल में दाखिल करने की सारी प्रक्रिया को वह पूरी की जाय, लेकिन फिलहाल अभी अस्पताल में कौन वार्ड बॉय ही पता ही नहीं चलता. नियम के अनुसार वार्ड बॉय को इमरजेंसी गेट पर तैनात होना चाहिए. ताकि जैसे ही मरीज आये. उन्हें फौरन उठाकर डॉक्टर के पास ले जाया जाय. लेकिन ऐसा नहीं हो पता है. जिस कारण से खास करके गंभीर स्थिति में आने वाले मरीज को इमरजेंसी में काफी परेशानी होती है. जिस पर अधिकारियों की नजर ही नहीं जाती है.

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