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राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत जिले में चिनिया व मालभोग केला खेती का बढ़ेगा दायरा

जिला उद्यान विभाग को 300 हेक्टेयर खेती का मिला है लक्ष्य

कटिहार. केला किसान टीशु कल्चर जी नाइन के साथ चिनिया व मालभोग की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकेंगे. हालांकि केला में लगने वाले पनामा बिल्ट नामक रोग का कहर अब भी केला किसानों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है. बावजूद राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत जिले के किसानों के लिए चिनिया व मालभोग केला की खेती का दायरा बढ़ाने के लिए विभाग द्वारा तीन सौ हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. उद्यान विभाग के पदाधिकारियों व कर्मचारियों की माने तो हर हाल में 30 सितंबर तक टीशु कल्चर किसानों के बीच बांट देना है. अब तक 120 हेक्टेयर में टीशु कल्चर का किसानों के बीच वितरण कर दिया गया है. जबकि 207.1 हेक्टेयर में विभाग द्वारा वर्क आर्डर दे दिया गया है. किसानों को 25 जुलाई से टीशु कल्चर बांटने का कार्य शुरू कर दिया गया है. विभागीय पदाधिकारियों की माने तो किसानों को टीशु कल्चर के लिए दो किश्त में अनुदान का प्रावधान है. प्रथम किस्त के तहत 46875 व दूसरे किश्त के तहत 5725 रूपये का अनुदान दिया जाना है. मालूम हो कि जिले में केले की खेती वृहत पैमाने पर की जाती थी. खासकर सेमापुर साइड की ओर चिनिया व मालभोग केला की खेती वृहत पैमाने पर की जाती थी. केला में लगातार पनामा बिल्ट बीमारी होने के कारण केला की खेती से विमुख होकर किसान नकदी फसल मक्के की ओर रूख कर लिया है. विभाग का प्रयास है कि इस बार पुन: केला खेती की ओर किसानों को मोड़ा जाये. इसी को ध्यान में रखते हुए विभाग द्वारा तीन सौ हेक्टेयर में जी नाइन वेराइटी, चिनिया व मालभोग केला की खेती को लेकर बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके मद में अनुदान का भी प्रावधान है.

पांच प्रखंड में केला की वृहत पैमाने पर होती है खेती

उद्यान विभाग के कर्मचारियों व पदाधिकारियों की माने तो जिले के पांच प्रखंडों में केला की खेती वृहत पैमाने पर होती है. खासकर कोढ़ा, फलका, बरारी, समेली और कुरसेला में केला की खेती ज्यादा की जाती है. छिटपूट तौर पर मनसाही में दो किसान, कदवा में तीन समेत अन्य प्रखंडों में केला किसान हैं. सेमापुर के कई किसानों का मानना है कि भले ही अब टीशु कल्चर जी नाइन वैराइटी उपलब्ध कराया जा रहा है. शुरू- शुरू में इन क्षेत्रों में केला की खेती चिनिया व मालभोग से ही शुरू की गयी थी. साइज में ये केला छोटा हो लेकिन अच्छा लगता था. बनाना का अब टीशू कल्चर जी नाइन का तैयार सभी एक आकार के होते हैं. साइज काफी बड़ा होता है,.दूसरे के अपेक्षा इसमें कम बीमारी होता है.

ट्राइकोडरमा का उपयोग कर बीमारी से बचा सकते हैं केला किसान

कृषि विज्ञान केंद्र के पौधा संरक्षण विभाग के वैज्ञानिक डॉ मो जावेद का कहना है कि बनामा बिल्ट बीमारी सभी केला में लगता है. चाहे मालभोग हो या चिनिया केला, किसान ट्राइकोडरमा का उपयोग कर इसका बचाव कर सकते हैं. एंटीवैक्टेरियन वर्मी कम्पोष्ट के साथ मिलाकर डाल सकते हैं. केला काटने के बाद विवेरिया बासयाना लेप चढ़ा देने से से पुन: पनपने नहीं देगा. किसानों को समय-समय वैज्ञानिकों के सम्पर्क में रहकर सतर्क रहने से निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा.

कहती हैं सहायक निदेशक उद्यान

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत जिले में चिनिया व मालभोग केला खेती का दायरा बढ़ाने को लेकर विभाग द्वारा तीन सौ हेक्टेयर का लक्ष्य दिया गया है. हर हाल में 30 सितंबर तक टीशु कल्चर का किसानों के बीच उपलब्ध कराना है. 120 हेक्टेयर में टीशु कल्चर किसानों के बीच वितरण कर दिया गया है. 207.1 हेक्टेयर के लिए उद्यान विभाग द्वारा वर्क आर्डर दे दिया गया है. किसानों को इसके मद में अच्छी खासी अनुदान निर्धारित है. जिसका लाभ किसान उठा सकेंगे.

मधु प्रिया, सहायक निदेशक उद्यान, कटिहार

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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