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प्रेमचंद के पहले मुंशी शब्द का प्रयोग अनुचित : डॉ जितेश

प्रेमचंद के आगे मुंशी शब्द न लिखे व न बोले, यहीं उनके लिए होगी सच्ची श्रद्धांजलि

प्रतिनिधि. केबी झा कॉलेज में कथा सम्राट प्रेमंचद की जयंती बुधवार को मनायी गयी. सादे समारोह के दौरान केबी झा कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ जितेश कुमार के नेतृत्व में कार्यक्रम का आयोजन कर उनकी जयंती मनी. इस दौरान उन्होंने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला. उनके बारे में बताया कि 31 जुलाई 1880 में उनका जन्म वाराणसी के लमही गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम आनंदी पिता अजायब लाल थे. वे मूल रूप से पहले उर्दू में लिखते थे. बाद में वो हिंदी की तरफ मुड़े और लिखने लगे. इनकी कहानियों व उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे यर्थात का चित्रण प्रस्तुत करते हैं. घर में विमाता के होने के कारण ये छोटी उम्र से ही किताबों की दुनिया में रम गये. जिसका प्रभाव इनके जीवन पर पड़ा और आज वे कथा सम्राट के रूप में जाने जाते हैं. वे अपना अंतिम उपन्यास मंगल सूत्र लिखते- लिखते काल कवलित हो गये. उनका पूरा साहित्य गांधी जी के दर्शन से प्रभावित है. आज के साहित्यकारों को प्रेमचंद के कहानियों को न केवल आत्मसात करनी चाहिए. बल्कि उनकी कहानियों में जिस यर्थात का वर्णन किया गया है. उनके अनुरूप अपने व्यवहार को भी उदाप्त बनाने की काेशिश करनी चाहिए. डॉ जितेश ने साहित्यकारों व आमजनों से प्रेमचंद के नाम से पहले मुंशी का प्रयोग नहीं करने की अपील की है. ऐसा इसलिए कि कन्हैया लाल मानिक्यलाल मुंशी जो देश के पहले कृषि मंत्री थे और प्रेमचंद दोनों ने मिलकर हंस पत्रिका का प्रकाशन किया. पत्रिका के संपादक के नाम में केएम मुंशी का संक्षिप्त नाम मुंशी और प्रेमचंद दोनों को एक साथ लिखकर प्रकाशित किया. कालांतर में यही दो नाम एक नाम के रूप में प्रचलित हो गया. आज भी अधिकांश हिन्दी साहित्यकार और लोग भी सभी मुंशी प्रेमचंद बोलते हैं. जबकि दो अलग-अलग नाम है. मुंशी वास्तव में केएम मुंशी के लिए प्रयुक्त होता है, और प्रेमचंद स्वतंत्र रूप से प्रेमचंद लिखते थे. इसलिए प्रेमचंद के आगे मुंशी का शब्द अनुचित है. जनसामान्य को भी चाहिए कि प्रेमचंद के आगे मुंशी शब्द न लिखे व न बोले यहीं उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

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