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खुदाबख्श खां की पुण्यतिथि पर लगी प्रदर्शनी, दुर्लभ दस्तावेजों, किताबों और पेंटिंग्स से रूबरू होंगे पटना के युवा

देश के राष्ट्रीय पुस्तकालयों में शुमार खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी प्राचीन पांडुलिपियों और दस्तावेजों के विशाल संग्रह के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है. इसे हिंदी की पहली डिक्शनरी होने का गौरव प्राप्त है. इसकी स्थापना खान बहादुर मौलवी खुदा बख्श ने 29 अक्बतूर 1891 को की थी. यहां उर्दू, फारसी और अरबी की बड़ी संख्या में पांडुलिपियां मौजूद हैं. 

हिमांशु देव

पटना शहर की शान और खुदाबख्श लाइब्रेरी के संस्थापक मोहम्मद खुदाबख्श खां की जयंती (2 अगस्त) और पुण्यतिथि (3 अगस्त) के मौके पर अगस्त के पहले सप्ताह में खुदा बख्श दिवस समारोह का आयोजन किया जाता रहा है. शुक्रवार को इसके संस्थापक खुदा बख्श की जयंती मनायी गयी. शनिवार यानि तीन अगस्त को इनकी पुण्यतिथि मनायी जायेगी.

इस अवसर पर खुदा बख्श दिवस समारोह की शुरुआत दुर्लभ सचित्र पांडुलिपियों की प्रदर्शनी से हुई. जिसे देखने के लिए शहर के दर्जनों लोग पहुंचे. दुर्लभ दस्तावेज, पुस्तक और पेंटिंग्स से सराबोर यह लाइब्रेरी न केवल शहर परंतु देश दुनिया में भी शुमार है. खुदाबख्श लाइब्रेरी की अहमियत और कीमत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि तुर्की की लाइब्रेरी के बाद इस लाइब्रेरी को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी के तौर पर जाना जाता है.

25 पांडुलिपियों की लगी है प्रदर्शनी

लाइब्रेरी में लगी प्रदर्शनी में पच्चीस सचित्र पांडुलिपियों को प्रदर्शित की गई थी. जहां भारतीय चित्रकला, फारसी चित्रकला, मुगल चित्रकला, तुर्की चित्रकला, राजपूत चित्रकला व तंजौर चित्रकला को रखा गया है. बता दें कि, पांडुलिपियों में शाहनामा, फतुह अल-हरमैन, खमसा निजामी, राग रागिनी, गुलिस्तां, बोस्तां, सहर अल-बयान, बरजू नामा, हमला हैदरी, कुल्लियाते सादी, हफ्त औरंग, कुरसी नामा आदि हैं. इनमें से कुछ पांच सौ साल या उससे भी पहले की हैं. ये सभी पांडुलिपियां बहुत अच्छी स्थिति में हैं और चित्र भी पूरी तरह से संरक्षित हैं.

लाइब्रेरी में एक हजार साल पुरानी अरब चित्रकला भी है सुरक्षित

खुदा बख्श लाइब्रेरी के खुर्शीद आलम कहते हैं जिस प्रकार किताबें एक-दूसरे का खंडन नहीं करतीं, उसी प्रकार पुस्तकालय का वातावरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच मित्रता सिखाता है और हम सभी जानते हैं कि एक नेक इंसान खुशहाल वातावरण के लिए कितना महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि लाइब्रेरी में मौजूद पेंटिंग्स में सबसे प्राचीन अरब चित्रकला है. यह पेंटिंग एक हजार साल पुरानी है और सर्जरी पर दुनिया की पहली किताब है, इसका नाम किताब अल-तसरीफ है. इन सचित्र पांडुलिपियों में विशेषकर शाहनामा की कई पांडुलिपियां हैं. हिंदू धर्म पर भागवत गीता, रामायण, सिररे अकबर आदि जैसे उत्कृष्ट सचित्र ग्रंथ हैं. यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है. इसे संभाल कर रखना है. हमें लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी और ज्ञान का प्रसार करना होगा.

खुदाबख्श की पुण्यतिथि आज

खुदा बख्श खां की पुण्यतिथि आज है. इसे लेकर सुबह 7.30 बजे से सुबह 9 बजे तक कुरान खानी, फातिहा एवं गुलपोशी की जायेगी. मौलाना सैयद शाह मिस्बाहुल हक इमादी, सज्जादानशीन, खानकाह इमादिया, मंगल तालाब, पटना सिटी फातिहा पढ़ेंगे. वहीं, शाम 7.15 बजे सीरतुन्नबी का जलसा होगा. जिसमें मशहूर वक्ता मौलाना अतीकुल्लाह कासमी, इमाम जामा मस्जिद, फकीर बारा संबोधित करेंगे.

देश के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा लिखे पत्र के संग्रह पर पुस्तक प्रकाशित

लाइब्रेरी में करीब 21 हजार ओरिजिनल पांडुलिपि व 2.9 लाख पुस्तक रखी गयी है. यहां 14 हजार से अधिक देश के प्रतिष्ठित व्यक्ति, लेखक, कवि व बुद्धिजीवियों द्वारा लिखे पत्र संजोए कर रखे गये हैं. 12 लाख पांडुलिपियों के डिजिटल फोलियो हैं. अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, अरबी और तुर्की भाषाओं में 600 से अधिक शीर्षक प्रकाशित हैं. हाल ही में 43 देवी-देवताओं की पांडुलिपि पर पेंटिंग्स के संग्रह को प्रकाशित किया गया है. इसकी कीमत 2000 रुपये है. वहीं, महात्मा गांधी व अन्य 29 लोगों द्वारा लिखे पत्र के संग्रह को प्रकाशित किया गया है. यह पहल तत्कालीन निदेशक शाइस्ता खान द्वारा ली गई थी.

132 देवी-देवताओं की पेटिंग भी लगी है प्रदर्शनी में  

प्रदर्शनी में साल 1884 में तैयार तंजावुर चित्रकला की श्री कृष्ण, विष्णु समेत 130 देवी-देवताओं का संग्रह पांडुलिपि को रखा गया. 18वीं सदी में तुलसीदास द्वारा 40 भारतीय चित्रकला, 1778 में रामायण की 20 पेंटिंग, 18वीं सदी की महर्षि वेद व्यास की श्रीमद् भागवत गीता, भूपत की श्रीमद भगवत गीता आदि को रखा गया.

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अशोक स्तंभ को दिल्ली लाने की कहानी बयां करती है पेंटिंग्स

फिरोजशाह तुगलक द्वारा अंबाला और मेरठ से 1351 से 1366 के बीच दिल्ली लाए गये दो स्तंभ की कहानी को सीरत-ए-फिरोजशाही की पेंटिंग्स बयां करती है. उन्होंने 1593 में इसे तैयार किया था. इन पिलर को कैसे लाया गया था, यह भी देखा जा सकता है. वहीं, यह संस्कृति और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी ये स्तंभ महत्वपूर्ण हैं. इनमें से एक स्तंभ उत्तरी दिल्ली में हिन्दू राव अस्पताल के पास है और दूसरा स्तंभ फिरोजशाह कोटला किले में है. इस स्तंभ पर अशोक के सातों अभिलेख अंकित हैं. नस्तालीक लिपि में 12 पेंटिंग्स को प्रदर्शनी में रखा गया है.

550 साल पुरानी निजामी गजनवी की पांडुलिपि भी है मौजूद

प्रमुख पांडुलिपियों में नस्तालीक लिपि में निजामी गजनवी की 550 साल पुरानी पांडुलिपि का दर्शक दीदार कर सकते हैं. इसमें शाहजहां के दरबार के रईस इनायत खान और अब्दुल रशीद दयालमी की मुहरें हैं. इसके अलावे 54 ईरानी चित्रकला भी शामिल है. वहीं, लघु चित्रकारी की आठ पेंटिंग में सलीम शाह बिन शेरशाह, बाबर के बचपन व रानी जोधाबाई की भी रखी गयी है.

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