पूसा : खरीफ मौसम के दौरान धान की खेती में आने वाली विभिन्न समस्याओं एवं वर्षा की अनिश्चिता को लेकर बिहार के हजारों किसानों ने हाल के वर्षों में अपना रुख सोयाबीन की खेती की ओर कर लिया है. सोयाबीन की खेती किसानों के लिए खरीफ मौसम में एक बेहतर विकल्प साबित हो रहा है. यह बात डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के अधीनस्थ कृषि विज्ञान केंद्र बिरौली के वैज्ञानिक सुमित कुमार सिंह ने कही. उन्होंने कहा कि सोयाबीन की खेती में धान की तुलना में लागत व मजदूरों की आवश्यकता काफी कम पड़ती है. केविके बिरौली के माध्यम से पिछले कुछ सालों से जिले के विभिन्न प्रखंडों से जुड़े किसानों के खेतों में किसानों का समूह बनाकर अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण तिलहन के तहत सोयाबीन की खेती का प्रत्यक्षण कराया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस साल भी खानपुर के करुआ, बिशनपुर आभी, समना, नत्थूद्वार के अलावा कल्याणपुर के फुलवरिया, रामपुरा, लदौरा, वीरसिंहपुर, हसनपुर कीरत, गोपालपुर के साथ-साथ पूसा व मोरवा प्रखंड से जुड़े कई गांव में 50 हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्रफल में सोयाबीन का प्रत्यक्षण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इन गांव में सोयाबीन का प्रभेद जेएस 20-98 व पी 1241 लगाया गया है. सोयाबीन का यह प्रभेद बिहार के जलवायु के लिए काफी उपयुक्त है. उन्होंने बताया कि विपरीत मौसम की स्थिति में सोयाबीन की खेती को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की आवश्यकता है. केविके के वैज्ञानिक प्रमुख डॉ आरके तिवारी ने बताया कि बदलते जलवायु व मानसून के कमजोर पड़ने के कारण हजारों किसान आज धान की खेती को करने में असमर्थ हो रहे हैं. किसान खरीफ में सोयाबीन की खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. इसके लिए किसानों को आगे आना होगा. उन्हें खेती के पुराने पैटर्न में बदलाव करने की जरूरत है. इससे उनकी आमदनी में इजाफा होगा.
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