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Purnia news : केले के पौधे ही नहीं गिरे, किसानों की कमर भी टूट गयी

Purnia news : वैसे पौधे गिरे हैं, जिनमें केले के घौर अब कुछ ही हफ्तों में काटने योग्य हो जाते. ज्यादा पौधे गिरने की बात के नगर एवं श्री नगर प्रखंड में सामने आयी है.

Purnia news : गुरुवार को बारिश के साथ आयी मात्र 20 मिनट की बेहद तेज आंधी और फिर लगातार साइक्लोनिक तेज हवा ने जिले के कई इलाकों में बड़े- बड़े पौधे उखाड़ डाले. यातायात को अवरुद्ध किया और बिजली की सप्लाई बाधित कर दी, जिसे 48 घंटों की मशक्कत के बाद पटरी पर लाना संभव हो सका. पर, इस आंधी और तेज हवा ने केला उत्पादक किसानों की कमर तोड़ दी. आंधी-पानी का असर खेती किसानी पर काफी पड़ा है. जहां खेत में सूखती धान की फसल को हरियाली मिली, खेतों के दरार भर गये, वहीं सब्जी की खेती पर आंशिक, तो केले की पैदावार के लिए परेशानी का सबब बनकर आयी.

आंधी-पानी ने उजाड़ी केले की फसल

हालांकि मॉनसून के वापस लौटने की खबर से किसानों के चेहरे पर खुशियों की लहर छायी थी, पर जिस मात्रा में बारिश की उम्मीद थी वो पूरी नहीं हुई. पर, जो हालात केला उत्पादक किसानों के साथ बने हैं उसमें किसान अपनी किस्मत को कोस रहे हैं. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि केले के पौधे जो झुक गये हैं, उनका कुछ नहीं किया जा सकता. जो हल्के झुके हैं, उन्हें सपोर्ट देने से सम्हाला जा सकता है. बांस को कैंचीदार बनाकर पहले से ही पौधे को सपोर्ट दिया जाता है. खासकर खेत के बाहरी हिस्से की तीन से चार पंक्तियों को इस तकनीक द्वारा सहारा दिया जाता है. पीछे वाले पौधों को उसी से रस्सी द्वारा बांधकर आपस में मजबूती प्रदान की जाती है, ताकि एक- दूसरे को सहारा मिले और तेज हवा में गिरने से बच जाएं. अकेला पेड़ होने से गिर सकता है. आठ से नौ माह के पौधों में घौर लगने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. नौ माह में घौर निकल जाते हैं. उन्हें सपोर्ट देने की जरूरत होती है. चार से पांच माह के पौधे अमूमन नहीं गिरते. इस बीच जिला उद्यान कार्यालय पूर्णिया विभिन्न प्रखंडों के प्रभावित इलाके में केला फसल में हुई क्षति के मूल्यांकन के लिए सर्वे का काम करा रहा है. सरकारी व्यवस्था के अनुसार, 33 प्रतिशत से ज्यादा का नुकसान होने पर मुआवजा दिए जाने की बात होती है. अब यह संपूर्ण सर्वेक्षण और मूल्यांकन के बाद ही तय हो पायेगा कि जिले के किन-किन किसानों को इस आंधी में केले की फसल का कितना नुकसान हुआ है. उसके बाद सहायता और क्षतिपूर्ति की बात सामने आएगी.

1200 हेक्टेयर क्षेत्र में होती है केले की खेती

केलांचल के नाम से मशहूर इस इलाके में लगभग जिले के पश्चिमी तथा उत्तरी भागों में केले की बड़ी मात्रा में खेती की जाती है. प्रखंडों की अगर बात की जाये, तो धमदाहा, रुपौली, बनमनखी, कृत्यानंद नगर, श्रीनगर आदि क्षेत्रों में हजारों एकड़ भूभाग पर केला की खेती होती है. जिला उद्यान कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, जिले में लगभग 1000 से 1200 हेक्टेयर क्षेत्र में केले की फसल की खेती हो रही है. अमूमन इस घटना में वैसे पौधे गिरे हैं, जिनमें केले के घौर अब कुछ ही हफ्तों में काटने योग्य हो जाते. ज्यादा पौधे गिरने की बात के नगर एवं श्री नगर प्रखंड से सामने आयी है. किसानों का कहना है कि इस आंधी ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है. आनेवाले समय में त्योहारी सीजन के लिए केले की फसल से काफी उम्मीदें लगा रखी थीं. काफी नुकसान हुआ है. कुछ किसानों ने यह भी बताया कि बैंकों से ऋण लेकर जो केला की खेती की थी, अब उसकी ऋण वापसी को लेकर चिंता सताये जा रही है. फसल बर्बाद हुई सो अलग.

झुके पौधों को सीधा खड़ा न करें : कृषि वैज्ञानिक

कृषि वैज्ञानिक डॉ सूरज प्रकाश ने कहा कि घौर वाले पौधे में गिरने की समस्या होती है. झुकने-गिरने से जड़ों को नुकसान पहुंचता है. वह डिस्टर्ब हो जाता है. उसमें अभी खाद नहीं डालना है. इसे थोड़ा सूखने का इंतजार करना है. झुके पौधों को सीधा खड़ा नहीं करना है, बल्कि वहीं सपोर्ट दे देना है. अगर हल्का झुकाव है यानी 60 डिग्री या 120 डिग्री तक पौधे झुक गये हैं, तो उन्हें सहारा देकर बचाएं. अगर 30 डिग्री हो जाए तो उसे हटा दें, अन्यथा दूसरे स्वस्थ पौधे पर उसका बुरा असर पड़ेगा.

सर्वे शुरू किया जा चुका है : उद्यान पदाधिकारी

उद्यान पदाधिकारी डॉ राहुल कुमार ने बताया कि केला ब्लाक में धमदाहा, रुपौली, बनमनखी, के नगर तथा श्री नगर के क्षेत्र हैं. इनमें से के नगर तथा श्री नगर में ज्यादा नुकसान की बात सामने आ रही है. इसके लिए शनिवार से ही सर्वे का कार्य शुरू किया जा चुका है. प्रखंड उद्यान पदाधिकारी इस कार्य में लगे हुए हैं. दो से तीन दिनों में यह कार्य संपन्न हो जाएगा. सरकार द्वारा किसानों को उनकी फसल का 33 प्रतिशत से ज्यादा का नुकसान होने पर मुआवजा दिए जाने का प्रावधान तय है.

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