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जन संस्कृति मंच ने किया प्रेमचंद स्मृति संवाद का आयोजन

जन संस्कृति मंच ने कर्बला रोड स्थित सुमित्रा भवन में ‘प्रेमचंद स्मृति संवाद’ का आयोजन किया. इसमें प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ का पाठ हुआ तथा लेखकों व विचारकों ने इस कहानी पर अपनी बात रखी. डॉ. महेश सिंह के संपादन में निकलने वाली ई पत्रिका ‘परिवर्तन’ के 34वें अंक का लोकार्पण भी हुआ.

जन संस्कृति मंच ने कर्बला रोड स्थित सुमित्रा भवन में ‘प्रेमचंद स्मृति संवाद’ का आयोजन किया. इसमें प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ का पाठ हुआ तथा लेखकों व विचारकों ने इस कहानी पर अपनी बात रखी. डॉ. महेश सिंह के संपादन में निकलने वाली ई पत्रिका ‘परिवर्तन’ के 34वें अंक का लोकार्पण भी हुआ. मुख्य अतिथि बंगला की कवयित्री, आलोचक और अनुवादक डॉ. मधुश्री सेन सान्याल ने पुस्तक का लोकार्पण करते हुए कहा कि प्रेमचंद एक महान कथाकार के साथ-साथ एक दृष्टिसंपन्न संपादक भी थे. पत्रिका का संपादन बहुत रचनात्मक कार्य है. संपादक महेश सिंह ने पत्रिका के पूर्व प्रकाशित कई सामान्य अंकों के साथ-साथ विशेषांक की जानकारी दी और अगला अंक दलित महिला और आदिवासी पर केंद्रित करने की योजना को साझा की. इसके बाद बलभद्र ने ‘पूस की रात’ कहानी का पाठ किया. युवा कवि व आलोचक शैलेंद्र कुमार शुक्ल ने कहा कि इस कहानी में एक किसान के मजदूर में तब्दील होने के साथ साथ वर्ग संघर्ष की चेतना की बारीक अभिव्यक्ति है. उन्होंने प्रसिद्ध आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा के हवाले से प्रेमचंद और बलभद्र दीक्षित पढ़ीस की कहानियों की विषय वस्तु पर प्रकाश डाला. मधुपुर से आये हुए डॉ. अंजर हुसैन ने प्रेमचंद को हिंदी व उर्दू का कथाकार बताते हुए कहा कि समाज में हाशिये पर रहने वालों को प्रेमचंद ने कथा साहित्य में प्राथमिकता दी है. डॉ. प्रभात कृष्ण ने पूस की रात के पात्रों के मनोविज्ञान को यथार्थ की पृष्ठभूमि में समझने की कोशिश की. मनीष कौशल ने कहा कि प्रेमचंद के समय के किसान और मजदूर आज दूसरे अन्य संकटों से भी घिर गये हैं. आज शोषण के नये-नये रूप दिखने लगे हैं. पत्रकार प्रभाकर ने कहा कि प्रेमचंद की अनेक कहानियों और उपन्यासों में प्रेम उनकी पूरी बुनावट में मिलेगा. शंकर पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद तर्क और मनुष्योचित चेतना के कथाकार हैं. उर्दू साहित्य के अध्येता डॉ. गुलाम सामदानी ने पूस की रात को किसान की गरीबी और सहनशीलता के बीच प्रतिरोध को जगह देती कहानी कहा. श्वेता कुमारी ने हस्तक्षेप करते हुए पूस की रात की महिला चरित्र मुन्नी पर बात की. जिप सदस्य मुफ्ती मोहम्मद सईद आलम ने कहा कि अपने ही समाज में हल्कू हैं और हलाकू भी हैं. प्रेमचंद इसको समझने में सहायक हैं. अध्यक्षीय वक्तव्य में उर्दू के शायर मोइनुद्दीन शम्शी ने पूस की रात के परिवेश की चर्चा करते हुए प्रेमचंद की कहानियों में पशु प्राणी की भूमिका को रेखांकित किया. उमेश प्रसाद वर्मा, टुकलाल रविदास, कैसर इमाम कैसर, नवीन कुमार मिश्र ने भी अपनी बातें रखी. हीरालाल मंडल, मो रमीज रजा, रणधीर प्रसाद वर्मा, चंद्रभान यादव, पूनम शुक्ल, नीलम सिंह, राधा सिंह, अरविंद कुमार तिवारी, रवि कुमार यादव, नवीन कुमार सिन्हा, पवन कुमार वर्मा, रामकुमार आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन बलभद्र एवं धन्यवाद ज्ञापन महेश सिंह ने किया.

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