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नये विचारों, चिंतन द भविष्य की संभावनाओं की तलाश विश्वविद्यालय की जवाबदेही का अंग

52वें स्थापना दिवस समारोह का आयोजन जुबली हॉल में सोमवार को कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी की अध्यक्षता में हुआ.

दरभंगा. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के 52वें स्थापना दिवस समारोह का आयोजन जुबली हॉल में सोमवार को कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी की अध्यक्षता में हुआ. इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सह राज्यसभा के पूर्व सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि मिथिला ज्ञान, तप और दर्शन की पवित्र भूमि है. इसको भारत ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर गौरव प्राप्त है. विज्ञान और सूचना- प्रौद्योगिकी के दौर में ””””विचार”””” के चिंतन की आवश्यकता सर्वोपरि है. किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति का संचालक विचार है. जब-जब विचारों की न्यूनता होगी, सभ्यता और संस्कृति का ह्रास होगा. कहा कि विश्वविद्यालय सिर्फ भवन नहीं विचारों का केंद्र है. इसीलिए समय व परिस्थिति के अनुरूप विचारों को गढ़ना, संरक्षित एवं संपुष्ट करना हम सब की जिम्मेदारी है. विश्वविद्यालय ज्ञान-यज्ञ का केंद्र है, जहांं उत्तरदायित्व और कर्तव्यनिष्ठा का बोध हर शिक्षक और कर्मचारी में होना आवश्यक है. मात्र रोजगार उपलब्ध कराना या अच्छा नागरिक बनाना ही हमारा ध्येय नहीं होना चाहिए, वरन नये विचारों, चिंतन और भविष्य की संभावनाओं की तलाश यूनिवर्सिटी की जवाबदेही का अंग है. कक्षा में छात्रों के साथ संवाद के अलावा पुस्तकालय का संवर्धन, शिक्षकों में गुणवत्तापूर्ण शोधपरक लेखन को प्रोत्साहन, जाति, लिंग, धर्म के भेद से उपर उठकर समावेशी, समष्टिपरक भारतीय ज्ञान- परंपरा के बीज को बोना सभी का दायित्व है. प्रो. सिन्हा ने भारतीय ज्ञान -परंपरा पर विचार केंद्रित करते हुए कहा कि यह महाकवि विद्यापति, कालिदास, अष्टावक्र का देश रहा है. हमारे देश में विद्या का आत्मा से, चिंतन का दर्शन से और दर्शन का संबंध मानवीय धर्म से है. उन्होंने उपनिषद के ””””नैति- नैति”””” सूत्र वाक्य को भारतीय संस्कृति और विरासत की धरोहर मानते हुए विश्वविद्यालय में आलोचनात्मक चिंतन की पृष्ठभूमि तैयार करने पर बल दिया. कहा कि जो चिंतन की परिधि को लांंघता है, वही नालंदा बनता है. कहा कि बिहार सामान्य नहीं प्रयोग भूमि है. कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी ने कहा कि हमें 1972 से लेकर 2024 तक की अवधि का सम्यक मूल्यांकन करना चाहिए. हम कहांं तक बढ़े हैं और कितना आगे बढ़ना है, इसका बोध हम सबके मस्तिष्क में होना चाहिए. कहा कि हमें सिर्फ प्रोन्नति तक सीमित रहने के बजाय विश्वविद्यालय में एकेडेमिक वातावरण के निर्माण पर बल देना चाहिए. कुलपति ने भविष्य में दिनकर और दीन दयाल उपाध्याय चेयर की स्थापना का आश्वासन दिया. कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन, बिहार गीत और कुलगीत से हुआ.अतिथियों का सम्मान पाग, अंग वस्त्र और सिक्की कला भेंट कर किया गया. कुलसचिव डॉ अजय कुमार पंडित ने अतिथियों का स्वागत किया. कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह, बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कुमारेश प्रसाद सिंह, सिंडिकेट सदस्य डॉ बैद्यनाथ चौधरी, डॉ हरिनारायण सिंह तथा मीना झा ने भी विचार रखा. मौके अवसर पर स्नातकोत्तर छात्र- छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी गई. संचालन प्रो. अशोक कुमार मेहता ने किया. पिछले दिनों हुई खेल प्रतियोगिता के विजेता शिक्षकों को कुलपति और अतिथियों द्वारा मोमेंटो एवं प्रमाण पत्र दिया गया. मौके पर खेल पदाधिकारी प्रो. अजय नाथ झा, डॉ अमृत कुमार झा समेत संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, पीजी विभागों के प्राध्यापक, प्रधानाचार्य, विवि के पदाधिकारी, सीनेट के सदस्य, कर्मचारी और छात्र-छात्राएं उपस्थित थे.

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