Nag Panchami: नाग पंचमी एक खास त्योहार है जो हिन्दू धर्म में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है. नाग पंचमी का भगवान शिव से गहरा संबंध है। आइए, जानते हैं इस त्योहार के बारे में.
नाग पंचमी का महत्व
नाग पंचमी हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। जो इस बार 9 अगस्त को है. इस दिन नागों को दूध, फूल, और मिठाई चढ़ाई जाती है. माना जाता है कि नाग देवता की पूजा करने से सांपों का डर कम होता है.
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भगवान शिव और नागों का संबंध
भगवान शिव को नागों का देवता माना जाता है. उनके गले में हमेशा एक विशाल नाग, जिसे वासुकी कहा जाता है, लिपटे हुए दिखाई देते है. नाग शिव जी की शक्ति, संतुलन, और धैर्य का प्रतीक हैं।
पौराणिक कथा
मान्यता के अनुसार, एक समय की बात है जब समुद्र मंथन हो रहा था. देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया. इस मंथन के दौरान विष निकला, जिसे किसी ने ग्रहण करने की हिम्मत नहीं की. तब भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए. इस विष के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए नागों ने भगवान शिव के कंठ में लिपटकर उनकी मदद की.
नाग पंचमी की पूजा विधि
नाग पंचमी के दिन लोग सुबह-सुबह स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनते हैं. फिर घर के मुख्य दरवाजे या आंगन में नाग देवता की मिट्टी या गोबर से बनी मूर्ति बनाई जाती है. इस मूर्ति को दूध, फूल, अक्षत और मिठाई चढ़ाई जाती है. पूजा के दौरान नाग देवता की आरती की जाती है और उनसे परिवार की सुरक्षा और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है.
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नाग पंचमी से जुड़े रीति-रिवाज
नाग पंचमी के दिन कई जगहों पर मेले लगते हैं और सांपों के करतब दिखाए जाते हैं. इस दिन खेतों में हल नहीं चलाया जाता ताकि जमीन के अंदर रहने वाले सांपों को कोई नुकसान न हो.
नाग पंचमी के व्रत और उपाय
नाग पंचमी के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं. वे दिनभर अन्न ग्रहण नहीं करतीं और सिर्फ फल या दूध का सेवन करती हैं. घर के आसपास कहीं सांप दिखाई दे तो उसे मारने की बजाय उसे सुरक्षित जगह छोड़ देना चाहिए.
नाग पंचमी के दिन भगवान शिव और नागों का क्या संबंध है और इसकी पौराणिक कथा क्या है?
नाग पंचमी के दिन भगवान शिव और नागों का गहरा संबंध है. शिव के गले में वासुकी नाग लिपटा रहता है, जो उनकी शक्ति और धैर्य का प्रतीक है. पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को शिव ने अपने कंठ में धारण किया. इस विष के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए नागों ने उनके कंठ में लिपटकर मदद की, जिससे शिव नीलकंठ कहलाए. इस दिन नागों की पूजा कर उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.