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जगदेव लाल गुप्ता : जेल में यातनाएं सह उफ तक नहीं की

अंग्रेजों ने घर से घसीटते हुए जगदेव लाल को गिरफ्तार कर लिया

दाउदनगर. शहर के मुख्य पथ निवासी अनंत लाल के पुत्र जगदेव लाल गुप्ता ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभायी. 1942 में पटना में सात छात्रों की शहादत के बाद जब पूरा देश उद्धैलित था, तो यह शहर भी इतिहास लिखने से नही चुका. पटना गोली कांड के बाद जगदेव लाल व शहर के युवा टोली ने मिलकर डाकघर को लूट लिया. 18 अगस्त 1942 को दाउदनगर में क्रांति हुई. शिफ्टन हाई स्कूल (अब अशोक इंटर स्कूल) में तोड़-फोड़ किया. अंग्रेजी हुकूमत ने सभी युवाओं को गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया. साथ ही घरों की कुर्की-जब्ती का आदेश जारी कर दिया. अंग्रेजों ने उनके परिवारों को घर से घसीट कर बाहर निकाल दिया. अंग्रेजों ने घर से घसीटते हुए जगदेव लाल को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें बक्सर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. जेल में इनके साथ अंग्रेजों ने क्रूरता पूर्वक व्यवहार किया. कोड़े से भी मारा गया. इनसे फरार साथियों का नाम व जगह की पूछ-ताछ होती रही, पर इन्होंने अपने जुबान नही खोले. इनके चचरे भाई केदार नाथ गुप्ता के छिपे ठिकानों के बारे में पूछा जाता रहा. जब छह महीने के बाद जेल से रिहा हुए तो जेल के बाहर महात्मा गांधी की जय और भारत माता की जय का नारा लगाया. अंग्रेजों ने वहीं पर फिर से पकड़ कर उन्हें जेल में डाल दिया. करीब एक साल बाद जेल से निकले तो फिर से आजादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निभाते रहे. 20 नवम्बर 1920 को इनका जन्म हुआ था. इनके पिता अनंत लाल केशरी 1934 से 1937 तक दाउदनगर नगरपालिका के उपाध्यक्ष रहे थे. ज्ञात हो कि दाउदनगर 1885 में गठित नगरपालिका है, जो अब नगर पर्षद बन चुका है. ब्रिटिश काल में डीएम नगरपालिका के अध्यक्ष हुआ करते थे. उनकी पढ़ाई वाराणसी विश्व विद्यालय में हुई थी. वे बचपन से अंग्रेजों के जुल्म देखते आ रहे थे, इनके मन मे अंग्रेजों के प्रति नफरत बढ़ते जा रही थी. जब ये छात्र जीवन मे वाराणसी से दाउदनगर आये थे, तब 11 अगस्त 1942 को पटना गोली कांड हुआ था. जब इनके भाई स्वतत्रंता सेनानी केदारनाथ ने दाउदनगर आ कर गोलीकांड का वाक्या सुनाया तो ये रो पड़े थे. इनके सभी साथी उतेजित हो गये. अपने साथियों के साथ मिलकर सरकारी दफ्तरों में तोड़ फोड़, आगजनी मचा दी थी. जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो ये खुशी से फुले नही समा रहे थे. उस दिन सुबह में भारत माता की जय नारा लगाते हुए अपने साथियों के साथ शहर का भ्रमण किया था. आजादी के बाद वे सहरसा में सेंट्रल कोपरिटिव बैंक में रजिस्टार के नौकरी पर बहाल हो गये. 10 जून 2009 को इनका निधन हो गया.

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